आपदा-प्रबंधन का विज्ञान

Afeias
20 Sep 2019
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Date:20-09-19

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पूरे विश्व में जलवायु परिवर्तन के मद्देनजर प्राकृतिक आपदाएं और उनसे जुड़ी आपातकाल की समस्या बढ़ती जा रही हैं। इसके साथ ही हमें वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं को समझते हुए प्राकृतिक खतरों के लिए पहले से तैयारी कर लेनी चाहिए।

इस दिशा में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण सही मार्ग पर प्रशस्त है। मौसम की तीव्रता और जलवायु परिवर्तन की घटनाओं के सटीक पूर्वानुमान ने भूकंप और भूस्खलन के दुष्प्रभावों से निपटने में मदद की है। जनता के घनत्व, राजकीय सम्पत्ति और आर्थिक गतिविधियों के क्षेत्रगत डाटा के सहयोग से प्राकृतिक घटनाओं के चलते होने वाली हानि का अनुमान लगाकर उसे सुरक्षित रखने का भी प्रयास किया जा रहा है।

      प्रणालीगत स्तर से जुड़े इस विकास के बावजूद कुछ चुनौतियां सामने खड़ी हुई हैं।

  1. उपलब्ध वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमताओं का सही समय पर घटनास्थल पर प्रयोग अभी संभव नहीं हो पाया है। उदाहरण के लिए, कुछ ही अवसर ऐसे आए हैं, जब आपदा के पश्चात् इस तकनीक से हानि का सही आंकलन किया जा सका हो।

रक्षा क्षेत्र में अनेक ऐसी तकनीकें विकसित की जा चुकी हैं, जिनसे आपदा के समय लाभ उठाया जा सकता है,  परन्तु इनका संचालन कठिन है।

  1. दूसरी चुनौती वैज्ञानिक विकास की है। हमें अपने अनुसंधान को वास्तविक स्थितियों की दिशा में ले जाना होगा।

भारत में हमने भू-विज्ञान मंत्रालय से जुड़ी अनेक वैज्ञानिक गतिविधियों को एक छत के नीचे इकट्ठा किया था। अंतरिक्ष आधारित तकनीकों के माध्यम से भी हमने आपदा-प्रबंधन क्षेत्र में काम किया है। अब हमें अगली पीढ़ी के वैज्ञानिक प्रयासों की प्राप्ति हेतु आगे बढ़ना है। इसके लिए तीन चुनौतियां हमारे सामने हैं।

  1. आपदा से जुड़े खतरों की एक ऐसी गहन परिभाषा पर जाने की जरूरत है, जो वैज्ञानिक प्रयास को प्रगति की ओर ले जाए। भारत में आपदा-प्रबंधन परिपक्व स्तर पर पहुँच चुका है। अब उसे जरुरतों के अनुसार विशेषज्ञता प्रदान करना है।
  2. स्थानीय स्तर पर आपदा प्रबंधन के लिए हमें मापयोग्य, किफायती और धारणीय समाधान तक पहुँचने की आवश्यकता है। समस्या की तीव्रता को समझते हुए कदम उठाए जाने चाहिए।
  3. बहु-विषयक पहुँच की चुनौती है। जैसे-भूकंप विज्ञानी को भूस्खलन विज्ञानी के साथ मिलकर काम करना होगा। इसी प्रकार वर्तमान और भविष्य की जनसंख्या, सम्पत्ति और आर्थिक गतिविधियों के जोखिम के बीच तालमेल बैठाकर काम करना होगा।

पिछले कुछ वर्षों में आपदा-प्रबंधन के क्षेत्र में बिग डाटा, मशीन लर्निंग और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस में काम हो रहा है। परन्तु हमें यह समझने की जरुरत है कि ये अत्याधुनिक हथियार, प्रभावित वर्ग की सामाजिक और आर्थिक समस्याओं की गहन मानवीय संवेदना को छू पाने में सक्षम नहीं हैं। अतः हमें जमीनी स्तर पर काम करना होगा।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित पी.के.मिश्रा के लेख पर आधारित। 30 अगस्त, 2019

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