बंगाल की खाड़ी के निकट देशों से जुड़े पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन में भारत की पहल

Afeias
31 Oct 2017
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Date:31-10-17

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हाल ही में भारत ने बे ऑफ बेंगाल इनिशिएटिव फॉर मल्टी-सैक्टोरल टैक्निकल एण्ड इकॉनॉमिक को आपरेशन डिजास्टर मैनेजमेंट एक्सरसाइज (BIMSTECDMEX2017) की मेजबानी की है। इस संस्था का यह पहला सम्मेलन था। इसका गठन इस क्षेत्र के देशों के बीच पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन से आने वाली समस्याओं तथा राजनैतिक एवं सुरक्षा संबंधी तनावों के लिए एकजुट होकर काम करने की रणनीति बनाने के लिए किया गया है।

  • बीम्सटेक क्षेत्र में विश्व की 22% जनसंख्या निवास करती है। यह संपूर्ण क्षेत्र बढ़ती प्राकृतिक आपदाओं के संकट से समस्याग्रस्त है।
  • इस क्षेत्र के देशों के एकजुट होकर काम करने से प्राकृतिक आपदाओं की आवृति और उसके दुष्प्रभावों को कम करने में मदद मिलेगी।
  • अलग-अलग देशों की सरकारों के बीच आपसी संबंधों में तादात्म्य बैठाने के लिए डिजाजस्टर रिस्क रिडक्शन (DRR) की एक क्षेत्रीय कार्ययोजना तैयार किए जाने की बात है। इसकी रूपरेखा में इस बात के स्पष्ट संकेत होने चाहिए कि सभी सदस्य देशों के विकास कार्यों में वे सभी तत्व शामिल हों, जो प्रशासन के सभी स्तरों पर संस्थागत साझेदारी के माध्यम से आपदाओं से जुड़े कार्यों को प्रतिबिंबित करते हों।
  • क्षेत्रीय खतरों की संभावनाओं को देखते हुए, इनका अनुमान लगाने एवं उसके बाद की गतिविधियों की रणनीति को निश्चित करने के लिए क्षेत्रीय संस्थागत क्षमता बढ़ाए जाने की आवश्यकता है।
  • आपदाओं के लिए तैयार रहने हेतू सर्वप्रथम विभिन्न देशों में इनसे जुड़ी जानकारी का प्रसार अत्यंत आवश्यक है।
  • बीम्सटेक के माध्यम से देशों के आपसी सहयोग से जलवायु परिवर्तन एवं पर्यावरण के खतरों को जानने-समझने के लिए शोधकर्त्ताओं का टास्कफोर्स बनाया जा सकता है।
  • आपातकाल स्थिति में प्रबंधन की कार्ययोजना तैयार करने के लिए यह संस्था प्रतिबद्ध है। इसके लिए कम खर्च वाले माध्यम ढूंढे जाने का प्रयत्न किया जाएगा।
  • पर्यावरण एवं प्राकृतिक आपदाओं से जुडे़ एजेंडे का नेतृत्व भारत कर रहा है। चूंकि उसे सार्क एवं एसियन समूहों से अनुभव प्राप्त हो चुके हैं, इसलिए इस क्षेत्र में वह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
  • बीम्सटेक के माध्यम से भारत को एक सुअवसर प्राप्त हुआ है, जब वह अपने क्षेत्रीय एजेंडे पर कुछ सार्थक कार्य कर सकता है।

भारत के सामने इस क्षेत्र से जुड़े दो मुद्दे तो वर्तमान में ही हैं। पहला, बांग्लादेश के साथ तिस्ता जल समझौता तथा दूसरा म्यांमार के साथ रोहिंग्या शरणार्थियों का मामला।सदस्य देशों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि इस क्षेत्र में उनकी भौगोलिक निकटता एवं सुरक्षा एक-दूसरे के लिए प्रासंगिक है। अतः पर्यावरण एवं प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित प्रबंधन को उन्हें समान सुरक्षा एजेंडे की तरह प्राथमिकता देनी होगी।

हिंदू में प्रकाशित अपर्णा रॉय के लेख पर आधारित।

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