भारतीय प्रशासनिक सेवा के नए अवतार की आवश्यकता है।

Afeias
01 Nov 2017
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Date:01-11-17

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बदलते विश्व के साथ आज भारत भी नए एशिया के उदय और डिजीटलीकरण की संगमस्थली बना हुआ है। इस आधुनिक युग में विशेषज्ञता का बहुत महत्व है। इस मांग ने मैकाले के विचारों पर तैयार की गयी भारतीय प्रशासनिक सेवा के लिए अनेक चुनौतियां खड़ी कर दी हैं। यहाँ आकर कुछ प्रश्न उठ खड़े होते हैं, जैसे कि-क्या हमारी नौकरशाही इन चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार हो है ? क्या हमारी भारतीय प्रशासनिक सेवा की अवधारणा बदलते परिदृश्य के अनुकूल है? क्या प्रशासनिक सेवा का आकर्षण आज भी उत्कृष्ट लोगों को इस ओर खींच पा रहा है? समय के साथ बढ़ती विशेषज्ञता की मांग क्या इन सेवाओं के द्वारा पूरी की जा रही है? क्या प्रशासनिक सेवा से चयनित अधिकारियों को उन सभी विभागों का पर्याप्त अनुभव होता है, जिनमें उनकी नियुक्ति कर दी जाती हैं?

सन् 1991 में उदारीकरण की शुरुआत के साथ ही भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के प्रति युवाओं के आकर्षण में निश्चित रूप से कमी आई है। इसके कुछ कारण हैं –

  • लाइसेंस जैसे अन्य क्षेत्रों में उनकी शक्ति में कमी आ गई है।
  • उदारीकरण के साथ ही निजी क्षेत्र में रोजगार के ऐसे अवसर आ गए, जहाँ वेतन बहुत अच्छा है।
  • सन् 1991 के बाद से नौकरशाहों एवं राजनेताओं के बीच के संबंध बदल गए। नेताओं का दबदबा बढ़ गया।

वर्तमान में भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में परिवर्तन की बात क्यों की जा रही है? इसके पीछे क्या कारण हैं और कैसे निपटा जा सकता है?

  • इन सेवाओं की परीक्षा किसी एक विशेषज्ञता को लक्ष्य करके आयोजित नहीं की जाती हैं। अलग-अलग क्षेत्र से जुड़े लोगों को एक ही तरह की परीक्षा देनी होती है। चयनित उम्मीदवारों की नियुक्ति उनकी पृष्ठभूमि या अर्जित ज्ञान को देखकर नहीं की जाती, वरन् यह परीक्षा में अर्जित उनके अंकों के आधार पर की जाती है। सोचने की बात है कि एक विज्ञान के विद्यार्थी को सांख्यिकीय विभाग के बारे में कितनी जानकारी होगी?
  • दूसरे, सभी चयनित उम्मीदवारों का प्रशिक्षण-काल एवं तरीका लगभग एक सा होता है। जबकि जिन विभागों में उनकी नियुक्ति की जानी है, उसके अनुकूल उनको ज्यादा या कम प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए।
  • रोजगार के बाजार में दक्षता के आधार पर वेतन या कमाई निर्धारित होती है, जबकि प्रशासनिक सेवाओं के चयनित उम्मीदवारों को लगभग समान वेतन दिया जाता है।
  • प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को कुछ समय राज्यों में ही काम करना होता है। परन्तु केन्द्र में अच्छे अवसर एवं वेतन की अधिकता को देखते हुए वे कुछ वर्षों के कार्यकाल के बाद ही केनद्र में आने का प्रयत्न करने लगते हैं। इससे राज्यों के विभागों के लिए अपेक्षित अधिकारी उन्हें नहीं मिल पाते। एक योग्य जिलाधिकारी केन्द्र में आकर संयुक्त सचिव के रूप में उन विकास कार्यों को अंजाम नहीं दे सकता, जितना कि वह जिले के उत्थान के लिए कर सकता है।

अब समय आ गया है, जब भारत की नौकरशाही में आमूलचूल परिवर्तन के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया जाए एवं उनके सुझावों पर जल्द ही कार्यवाही की जाए।

‘द इंडियन एक्सपे्रस’ में प्रकाशित जनमेजय सिन्हा के लेख पर आधारित।

 

 

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