राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की स्वायत्त्ता पर प्रश्नचिन्ह
Date:12-02-20 To Download Click Here.
विश्वसनीय और व्यापक आँकड़ों को सार्वजनिक किया जाना सर्वोतम नीति कही जा सकती है। ये आँकड़े सूचना आधारित नीति-निर्माण में सहायक होने के साथ-साथ निजी फर्मों के निवेश संबंधी निर्णयों के लिए महत्वपूर्ण सूत्रधार का काम करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में भारत की सांख्यिकीय प्रणाली और डेटा को अस्त-व्यस्त किया जा रहा है। आवश्यक आर्थिक डेटा को सार्वजनिक करने से पहले या तो स्थगित किया जा रहा है, या छोड़ दिया जा रहा है।
सरकार ने धूमिल होती अपनी विश्वनीयता की रक्षा के लिए आर्थिक आंकड़ों से जुड़ी एक स्थायी समिति बनाई है। एक राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की स्थापना के लिए मसौदा कानून को सार्वजनिक किया गया है, जिससे कि लोगों की प्रतिक्रिया को जाना जा सके।
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग (एनएससी)
इस आयोग की स्थापना 2005 में एक स्वायत्त्ता संस्था के रूप में की गई थी। इस संस्था का उद्देश्य देश भर की डेटा एजेंसियों को डेटा एकत्र करने में आ रही असुविधाओं को दूर करना है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय और नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनिज़शन ऐसी दो मुख्य एजेंसिया हैं, जो राज्य और केंद्र सरकार के अनेक विभागों से डेटा एकत्र करने का काम करती हैं।
इनके ऊपर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को बैठाया गया है, जो डेटा के निष्पक्ष एकत्रीकरण को सुनिश्चित करके, सरकार द्वारा जारी किए गए आँकड़ों की विश्वसनीयता की रक्षा करता है।
मसौदा कानून का औचित्य –
आयोग की स्वायत्त्ता को बरकरार रखने के उद्देश्य से स्थायी समिति और मसौदा कानून बनाए गए हैं। इस कानून की जड़ें लगभग दो दशक पहले एक विशेषज्ञ समूह द्वारा सुझाए गए सुधारों में है।
इस कानून की कुछ सकारात्मक विशेषताएं यह है कि सरकार इसकी सलाह लेगी, जिसका महत्व होगा। आयोग की स्वायत्त्ता की दिशा में एक कदम सरकार द्वारा प्रारंभिक निधि दिए जाने के रूप में होगा।
फिर भी, अभी आयोग की स्वायत्त्ता पर लगातार संदेह बना हुआ है। उम्मीद की जा सकती है कि आयोग के लिए सर्वश्रेष्ठ सांख्यिकीविदों का निष्पक्ष चयन करके इसकी विश्वसनीयता के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।
समाचार पत्र व अन्य स्रोतों पर आधारित।