विकास की गति को बढ़ाता शहरीकरण

Afeias
13 Feb 2020
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Date:13-02-20

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अर्थव्यवस्था के तेजी से विकास के लिए तीव्र गति से शहरीकरण, एक अनिवार्य शर्त है। दक्षिण कोरिया और चीन जैसी निम्न आय वाली अर्थव्यवस्थाओं ने शहरीकरण के द्वारा 8-10% की वृद्धि को दो-तीन दशकों से यथावत रखा हुआ है। 1981 के चीन में शहरीकरण की दर 19% थी, जो 2011 में बढ़कर 51.3% हो गई। वहीं भारत में यह बहुत धीमी रही है। 1951 में 17.3% रहने वाली वृद्धि 2011 तक 31.2% ही पहुँच पाई। इसका अर्थ यह है कि यह वृद्धि 2.3% प्रति दशक ही रही। यहाँ तक कि 2001-2011 तक वृद्धि दर को गति मिलने की स्थिति में भी यह 3.4% ही रही।

भारत में श्रमिकों के गांव से शहरों में प्रवास की धीमी गति के अनेक कारण रहे हैं। इनमें एक प्रमुख कारण उचित किराए पर आवास का उपलब्ध न होना है। कुछ प्रमुख बिंदु –

* केंद्र सरकार की नीति नगरों में अपने घर खरीदने पर सब्सिड़ी देने की रही है।

* भारत में किराए संबंधी कानून का झुकाव किराएदारों की तरफ अधिक है। इसलिए मकान मालिक अपने मकानों को किराए पर देने की अपेक्षा खाली रखना बेहतर समझते हैं।

* विश्व के काफी नगरों में, व्यावसायिक स्तर पर किराए के आवास उपलब्ध कराने का चलन है। इसका भारत में भारी अभाव है।

* भारतीय नगरों में भूमि जरूरत से ज्यादा महंगी है। इस तुलना में किराया नहीं मिल पाता है।

अगर भारत की आर्थिक विकास की गति को तेज करना है, तो शहरीकरण तेजी से करना होगा। इसके लिए शहरों की ओर प्रवास को सुविधाजनक बनाना होगा। किराए के मकानों की संख्या बढानी होगी। इस हेतु सरकार को भूमि उपलब्ध करानी होगी। कुछ अन्य तरीकों पर भी ध्यान देना होगा।

1)  राज्य और केंद्र सरकार द्वारा अधिग्रहीत भूमि की बड़ी संख्या है। इस भूमि में से कुछ ही अपने उद्देश्य को पूरा कर रही हैं। अतिरिक्त भूमि को बाज़ार में बेचा जाना चाहिए।

2) अनेक सरकारी स्कूलों के पास बहुत अधिक भूमि है, जिसकी देख-रेख करना उनके लिए मुश्किल हो जाता है।

इसके अलावा रेलवे तथा नागरिक उड्डयन आदि मंत्रालयों के पास बहुत सी अतिरिक्त भूमि है। इनका उपयोग किया जा सकता है।

3) भारत में फ्लोर स्पेस इंडेक्स (एफएसआई) की परंपरागत प्रणाली है। इसके अंतर्गत इमारतों का निर्माण ऊँचाई में नहीं हो पाता। अधिकतर भूमि पर तीन मंजिल से अधिक के निर्माण को मंजूरी नहीं है।

शंघाई में मुंबई से कई गुणा ज्यादा जनसंख्या है। परंतु वहां अभी भी आवासीय भूमि बहुतायत में उपलब्ध है। इसका कारण वहां बनी बहुमंजिला आवासीय इमारतें हैं।

4) भारत में भूमि के उपयोग में बदलाव को लेकर कानूनों को लचीला बनाए जाने की जरूरत है।

5) रियल एस्टेट में लगने वाला काला धन, भूमि के दामों को बढ़ा रहा है। इसे रोका जाना चाहिए, जिससे भूमि खरीदना आसान हो जाए।

6) भारत में भूमि अधिग्रहण कानून में तुरंत सुधार की आवश्यकता है। इसे किराए पर मकान बनाने वाली मध्यम और बड़ी फर्मों को उपलब्ध कराया जाए।

इसके अलावा श्रम आधारित विनिर्माण को बढ़ावा देने से कृषि कर्म में लगे तमाम लोगों को उस हानि वाले व्यवसाय से निकालकर शहरों मे बसाया जा सकता है। आर्थिक विकास की गति को बढ़ाने के लिए यह मूल मंत्र सिद्ध हो सकता है।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया‘ में प्रकाशित अरविंद पन्गढ़िया के लेख पर आधारित। 5 फरवरी, 2020

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