शहरीकरण के बारे में चीन से सीखा जा सकता है

Afeias
14 Dec 2018
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Date:14-12-18

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भारत में शहरी विकास के लिए स्थानीय प्रशासन कर और उपभोक्ता-शुल्क पर ही निर्भर रहता है। यह राशि प्रशासन के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त नहीं होती। शहरी निकायों की आय का मुख्य स्रोत संपत्तिकर होता है। इसके अलावा, निगम या पालिका अपनी संपत्ति को लीज़ पर भी देती हैं। इसके बावजूद उन्हें अन्य स्रोतों की आवश्यकता होती है।

इस मामले में अगर चीन जैसे देश का उदाहरण लें, तो हम देखते हैं कि 1988 में वहाँ कुछ भूमि सुधार कानून लाए गए थे, जिन्होंने वहाँ की स्थानीय सरकारों को बुनियादी ढांचों के विकास में बहुत मदद की। 1994 में कर असाइंमेंट सिस्टम में सुधार करके, बीजिंग को अधिक राजस्व स्थानांतरित कर दिया गया। स्थानीय सरकारों के लिए अधिक व्यय वाली जिम्मेदारियों को बढ़ा दिया गया था। विकास शुल्क के माध्यम से इन स्थानीय निकायों ने अतिरिक्त बजटीय वित्त-पोषण विकसित करने की अपनी आवश्यकता में वृद्धि की।

इसी श्रृंखला में 1997 और 2002 में भी कुछ सुधार हुए। इनके द्वारा प्रांतों, काउंटी और टाऊनशिप को अपने साधनों से ही अपने व्यय निपटाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इन सुधारों ने राजकोषीय राजस्व में अपार वृद्धि की। केन्द्रीय राजस्व के एक बड़े भाग को ट्रांसफर पेमेंट के तौर पर उपनगरीय सरकारों को हस्तांतरित कर दिया गया।

चीन की स्थानीय सरकारें, केन्द्र सरकार के साथ ऑन-बजट राजस्व साझा करके, और औपचारिक ऑफ-बजट राजस्व के मेल से अपने व्यय पूरे करती हैं। ये सरकारें, गैर-प्राधिकृत शुल्क और करों से भी राजस्व प्राप्त करती हैं।

2007 में, स्टेट कांउसिल ऑफ चाइना ने पट्टे पर भूमि से प्राप्त राजस्व को ऑन-बजट अकाउंट के भाग के रूप में दिखाने की जरूरत महसूस की।

चीन में, शहरी विकास और निवेश कंपनियां बुनियादी ढांचों के वित्त पोषण के लिए मुख्य आधार बनी हुई हैं। ये ऐसी सहायक कंपनियां हैं, जिनका गठन स्थानीय सरकारों ने किया है। स्थानीय सरकारों की ऋण चुकाने की गारंटी पर ये कंपनियां निवेश करती हैं। इन निवेश कंपनियों के अलावा अपना राजस्व बढ़ाने के लिए स्थानीय सरकार भूमि का विक्रय भी करती हैं।

भारत के शहरों में अनेक ऐसी संपत्तियां हैं, जिनसे न तो कर मिलता है, और न ही इनका मूल्यांकन किया जा सका है। ऐसी संपत्तियों को कर दायरे में लाया जाना चाहिए। कम होते जल जैसे संसाधनों पर भी पर्याप्त शुल्क लिया जाना चाहिए।

जब सरकारी विभाग अधिक सेवाएं देने को तत्पर हो जाएंगे, तब नागरिकों के अधिकार, उससे भी बढ़कर उनके दायित्व, भारतीय नगरों के विकास और रखरखाव में महती भूमिका निभा सकेंगे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित विशाल आर और कला एस श्रीधर के लेख पर आधारित। 10 नवम्बर, 2018

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