आयात प्रतिस्थापन से ‘मेक इन इंडिया’ नहीं चल सकता

Afeias
28 Sep 2021
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Date:28-09-21

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वर्ष 2015 में, व्यापार उदारीकरण से मुँह मोड़ते हुए भारत ने आयात कम करके, देशी मोबाइल फोन उद्योग को बढ़ावा देने का फैसला लिया था। इस प्रतिस्थापन का उद्देश्य ‘मेक इन इंडिया फॉर द वर्ल्ड’ को सफल बनाना था। जानना यह है कि क्या यह सफल हो पाया ? क्या आयात प्रतिस्थापन के माध्यम से देशी उद्योगों को बढ़ावा देने की केंद्र सरकार की नीति उपयुक्त रही ?

कुछ तथ्य –

  • 2014 में जहां टेलीफोन का आयात 750 करोड़ डॉलर था, वह 2020 में गिरकर 220 करोड़ डॉलर रह गया।
  • इसी प्रकार निर्यात के क्षेत्र में 2014 में जो आंकड़ा 60 करोड़ डॉलर था, वह 2020 में बढकर 300 करोड़ डॉलर हो गया।
  • भारत के हिस्से के बराबर के देश वियतनाम से यदि इस निर्यात बढ़ोत्तरी की तुलना करें, तो यह बहुत कम लगती है। 2014 में वियतनाम ने टेलीफोन निर्यात का 2150 करोड़ डॉलर का लक्ष्य प्राप्त किया था। 2020 में इसे 3120 करोड़ डॉलर तक ले जाया गया।

भारतीय नीतियों में कमी

  • भारत सरकार मुक्त व्यापार समझौतों में अधिक विश्वास नहीं रखती है, जबकि वियतनाम ने चीन और यूरोपीय संघ जैसे आर्थिक दिग्गजों से भी मुक्त व्यापार समझौते किए हैं।
  • एक स्मार्टफोन में लगने वाले 1600 पार्टस् की आपूर्ति 43 देशों में फैली 200 कंपनियां करती हैं। अगर विभिन्न देशों से आपका मुक्त व्यापार समझौता नहीं है, तो सीमा शुल्क के साथ इनकी कीमत बढ़ती जाती है। 20% सीमा शुल्क के साथ सरकार ने स्मार्ट फोन की भारत में असेंबली गतिविधि को 200% की भारी सुरक्षा प्रदान की है
  • हमारे नेताओं ने ‘मेक इन इंडिया’ का हवाला देते हुए स्मार्टफोन के घटकों के घरेलू उत्पादन पर ही जोर देना शुरू किया। इससे लागत भी बढ़ी और स्मार्टफोन पर मार्जिन भी कम रह गया। इससे असेम्बलिंग करके फोन बनाने वाले व्यवसायी अप्रतिस्पर्धी हो गए। अब कोई भी सरकार असेम्बलिंग व्यवसायियों को आयातित घटकों तक इसलिए पहुँच बनाने नहीं देगी, क्योंकि सरकार की नीति की विफलता उजागर हो जाएगी।
  • उपभोक्ता को भी ऐसे फोन के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी।
  • ऐसे में घटकों के उत्पादन में आए व्यवसायी नुकसान में ही रहेंगे। लाभ का सौदा उन्हीं के पास होगा, जो वैश्विक बाजार पर नजर रखते हुए, जोखिम लेते हुए स्मार्टफोन तैयार करें, भले ही उत्पादन न करें।

सरकार को तुरंत ही अपनी आयात प्रतिस्थापन नीति पर विचार करना चाहिए। वियतनाम जैसे देशों से सीख लेते हुए मुक्त व्यापार समझौतों की ओर कदम बढ़ाना चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित अरविंद पनगढ़िया और दीपक मिश्रा के लेख पर आधारित। 15 सितंबर, 2021

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