मंदिर प्रशासन में सरकारी दखल की सकारात्मकता

Afeias
27 Sep 2021
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Date:27-09-21

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हाल ही में तमिलनाडु सरकार ने हिंदू रिलीजस एण्ड चैरीटेबल एण्डाउमेन्ट एक्ट 1959 के अंतर्गत 24 प्रशिक्षित अर्चकों (पुजारी) की नियुक्ति की है। अधिनियम और अर्चकों की यह नियुक्ति महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके द्वारा मंदिर प्रशासन के मामलों में घुसी जातिवादी, रूढिवादिता और पितृसत्तात्मक को एक साथ समाप्त किया जा सका है।

कुछ मुख्य बातें –

  • हिंदू रिलिजस एण्ड चैरीटेबल एण्डाउमेन्ट एक्ट या एच आर एंड सीई अधिनियम 1959, हिंदू मंदिरों और धार्मिक संस्थानों के प्रशासन हेतु बनाया गया कानून है।
  • वंशानुगत पुजारी परंपरा को समाप्त करने के लिए 1971 में अधिनियम की धारा 55 में संशोधन किया गया था।
  • 2006 के संशोधन से सरकार को हिंदू मंदिरो में जातिगत भेदभाव से परे प्रशिक्षित अर्चक की नियुक्ति का अधिकार दे दिया गया था।
  • इस पर न्यायालय में अनेक याचिकाएं दायर की जा चुकी हैं। उच्चतम न्यायालय ने शेषम्मल बनाम भारत संघ के 1972 के मामले में स्पष्ट भी कर दिया है कि वंशानुगत पुजारी पदों की समारित का अर्थ यह नही है कि सरकार मंदिर के संस्कारों और प्रथाओं में कोई परिवर्तन करना चाहती है।
  • 2015 के आदि शैव बनाम तमिलनाडु सरकार के मामले मे न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी भी प्रकार की धार्मिक आस्था या प्रथा, संवैधानिक मूल्यों से ऊपर नहीं हो सकती है।
  • न्यायालय ने स्थापित किया है कि नियुक्तियों का परीक्षण अलग-अलग मामलों के आधार पर किया जाना चाहिए। कोई भी नियुक्ति जो आगम के अनुरूप नहीं है, वह संविधान के अनुच्छेद 25 और 26 के तहत निहित संवैधानिक स्वतंत्रता के खिलाफ मानी जाएगी।

पिछले तीन वर्षों में न्यायालय ने अधिकारों की रक्षा पर आधारित जो निर्णय दिए हैं, वे सराहनीय हैं। इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य और जोसेफ शाइन बनाम भारत संघ (2018) में उच्चतम न्यायालय ने “ऐतिहासिक भेदभाव’’ को समाप्त करने की आवश्यकताओं को दोहराया है।

निष्कर्ष

  • इन सभी मामलों में न्यायालय ने विभिन्न संवैधानिक अधिकारों के न्यायिक संतुलन को प्राथमिकता दी।
  • सबरीमाला मामले में माना गया कि “प्राथमिकताओं के संवैधानिक क्रम में, धार्मिक स्वतंत्रता व्यक्तिगत अधिकार पर हावी भले ही न हुआ हो, परंतु यह समानता, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे भाग तीन में वर्णित प्रावधानों पर स्वसिद्ध हो रहा था।”
  • हालांकि हमारा संविधान धार्मिक स्वतंत्रता और उससे जुड़ी प्रथाओं की रक्षा करता है, परंतु न्यायालय, संविधान के मूल्यों की गरिमा, स्वतंत्रता और समानता को बनाए रखने के प्रयास से ही निर्देशित होगा।

सबरीमाला पर दिए गए न्यायालय के इस निर्णय ने मंदिरों के प्रशासन संबंधी मामलों में एक उदाहरण प्रस्तुत कर दिया है, जिसे संवैधानिक नैतिकता और  वास्तविक समानता के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित किया जाता रहेगा।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित मनुराज शनमुगासुंदरम के लेख पर आधारित। 14 सितंबर, 2021

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