ग्रीन हाइड्रोजन का हब बन सकता है भारत

Afeias
23 Aug 2022
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भारत की ऊर्जा अर्थव्यवस्था में बिजली का योगदान एक चौथाई से भी कम है, जबकि हमारे पास नवाचार और हरित हाइड्रोजन या ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकी है। इसके बावजूद हम प्रतिवर्ष 160 अरब डॉलर की ऊर्जा आयात करते हैं। अगर हम इस दिशा में कोई सुधार नहीं करते हैं, तो अगले 15 वर्षों में आयात के दुगुना होने की संभावना है। ऐसे तीन कारक हैं, जो भारत को ग्रीन हाइड्रोजन हब बना सकते हैं –

  1. सक्रिय और व्यावहारिक नीति-सौर और बैटरी प्रौद्योगिकियो के विपरीत, ग्रीन हाइड्रोजन के लिए एक्शन लेने में भारतीय नीति, वैश्विक गति के साथ चली है। यह ग्रीन हाइड्रोजन की लागत को कम करने के लिए लगातार काम कर रही है। अल्पावधि में यह रिफाइनिंग और फर्टिलाइजर सेक्टर, मीडियम टर्म में सिटी गैस ब्लेंडिंग, लंबी अवधि में परिवहन और इस्पात में इसकी मांग को फोकस करके चल रही है।
  1. ग्रीन हाइड्रोजन के पीछे इंडिया इंक है। ग्रीन हाइड्रोजन के लिए अपनाई जा रही सरकारी नीतियों से प्रेरित होकर बड़े-बड़े निजी समूहों ने इसमें कई अरब डॉलर की निवेश योजनाओं की घोषणा की है।
  1. हाइड्रोजन और इलेक्ट्रोलाइजर उत्पादन केंद्र के रूप में भारत की उपयुक्तता काफी है। भारत में पवन, सौर और पंप किए गए भंडारण संसाधन हैं। ये स्वच्छ बिजली के लिए सस्ती सामग्री प्रदान करते हैं।

ग्रीन हाइड्रोजन में एक हाइटेक और लो-कार्बन भारतीय ब्रांड के निर्माण के लिए आवश्यक कदम –

  • घरेलू खपत के लिए 2030 तक दुनिया की सबसे बड़ी इलेक्ट्रोलिसिस क्षमता का निर्माण।
  • 2030 तक हरित इस्पात की सबसे बड़ी उत्पादन क्षमता का निर्माण।
  • 2028 तक 25 गीगावाट के सबसे बड़े इलेक्ट्रोलाइजर वार्षिक निर्माण क्षमता तैयार करना।
  • 2030 तक निर्यात के लिए हरित अमोनिया उत्पादन में अग्रणी बनना।
  • उद्योग आधारित हाइड्रोजन अनुसंधान एवं विकास में एक अरब डॉलर का निवेश करना।

भारत के नवप्रवर्तकों, उद्यमियों और सरकार के बीच का सक्रिय सहयोग नेट जीरो उत्सर्जन की ओर ले जाया जा सकता है। इससे भारत को उच्च मूल्य वाले हरित उत्पादों के निर्यात में भी मदद मिल सकती है। अतः भारत को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अमिताभ कांत के लेख पर आधारित। 12 जुलाई, 2022

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