स्कूली शिक्षा में जवाबदेही
Date:24-11-17
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स्कूली शिक्षा में जवाबदेही तय करने के लिए अक्सर विद्यार्थियों के परीक्षा के अंकों को मापदंड बनाया जाता है। इसके आधार पर शिक्षकों को जिम्मेदार भी ठहराया जाता है। परन्तु क्या शिक्षा प्रणाली के मूल्यांकन का यह आधार उपयुक्त ठहराया जा सकता है? क्या विद्यार्थियों के कम अंकों के लिए केवल शिक्षकों को ही दोषी ठहराया जाना चाहिए?
संयुक्त राष्ट्र के धारणीय विकास लक्ष्य 4 में शिक्षा की गुणवत्ता के स्तर में सुधार हेतु जवाबदेही तय करने के लिए यूनेस्को न्यू ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2017 में कहा गया है कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए केवल शिक्षक जिम्मेदार नहीं हैं। सरकार, स्कूल, शिक्षक, अभिभावक, समाज, मीडिया, अंतरराष्ट्रीय संगठन और निजी क्षेत्र आदि सभी इसके लिए जिम्मेदार हैं।
शिक्षा प्रणाली की जटिल कड़ी में शिक्षक तो मात्र एक ईकाइ है। अतः विद्यार्थियों के अंक कम आने या उनकी अनुपस्थिति के लिए किसी भी प्रकार से उन्हें दोष नहीं दिया जा सकता। इस आधार पर अगर शिक्षकों को दंडित किया जाए, तो इसके परिणाम बहुत नकारात्मक होंगे। एक तो शिक्षक केवल परीक्षा में अच्छे अंक लाने की दृष्टि से ही पढ़ाएंगे। ज्ञान देने और ज्ञानार्जन की प्रक्रिया को वैसे भी परीक्षा के अंकों में बांध देना कोई सही तरीका नहीं है। इससे कमजोर विद्यार्थी बहुत ही पीछे छूट जाते हैं। कुशाग्र विद्यार्थियों का भी दृष्टिकोण व्यापक नहीं हो पाता।
शिक्षकों की अनुपस्थिति को गुणवत्ता से जुड़ा दूसरा कारण माना जाता है। अजिम प्रेमजी फांऊडेशन ने 619 स्कूलों का सर्वेक्षण किया। इनमें लगभग 18.5 प्रतिशत शिक्षक अनुपस्थित पाए गए। इनमें से कुछ तो सरकारी ड्यूटी पर कहीं गए हुए थे, या फिर सही कारण से छुट्टी पर थे। अगर कामचोरी की दृष्टि स देखें, तो मात्र 2.5 प्रतिशत शिक्षक ही अनुपस्थित थे।
शिक्षकों की कमी एक बड़ी समस्या है। यही वह समय है, जब हम शिक्षा व्यवस्था में जवाबदेही के लिए उसके प्रत्येक हितधारक को जिम्मेदार ठहराएं और सकारात्मक प्रयास करें।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित उमा महादेवन-दासगुप्ता के लेख पर आधारित।