शिक्षा के क्षेत्र में जवाबदेही

Afeias
16 Sep 2016
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Date: 16-09-16

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  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा जारी कर दिया गया है। यह मसौदा बहुत पारंपरिक लगता है। शिक्षा क्षेत्र से जुड़ी शिक्षकों की जवाबदेही, भ्रष्टाचार एवं शिक्षकों की संघबाजी पर कोई ठोस कदम इस शिक्षा नीति में नहीं उठाए गए हैं।
  • इस मसौदे में अगर शिक्षकों की जवाबदेही की बात कही भी कई है, तो वह बड़े कमजोर ढंग से कही गयी है।
  • शिक्षा में जवाबदेही बढ़ाने के लिए भारत को भी विश्व में चल रही उत्तम शिक्षा प्रणालियों से सीखना होगा।
  • अधिकतर विकसित देशों में प्रत्येक विद्यार्थी के हिसाब से अनुदान दिया जाता है। इससे विद्यालय एवं शिक्षकों; दोनों की ही यह जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि वे अच्छी शिक्षा देकर ज्यादा-से-ज्यादा विद्यार्थियों की भर्ती करें एवं उन्हें रोके रखें, क्योंकि प्रत्येक विद्यार्थी के साथ विद्यालय के अनुदान का कुछ भाग दांव पर लगा होता है।
  • इसी प्रकार कुछ देशों में अभिभावकों को एक वाउचर दिया जाता है। वाउचर के माध्यम से अनुदान देने की प्रक्रिया में अभिभावक विद्यालय की शिक्षा-पद्धति पर कड़ी निगरानी रखते हैं। विद्यालय के संतोषजनक परिणाम न देने पर अभिभावक अपने बच्चे को अन्य विद्यालय में स्थानांतरित कर देने को स्वतंत्र होते हैं और उनके पास का वाउचर दूसरे विद्यालय को मिल जाता है।
  • वाउचर पद्धति से बीपीएल कार्डधारी बच्चों के लिए भी निजी स्कूलों में दाखिला संभव हो सकेगा। अभी भी 2009 के शिक्षा के अधिकार के अंतर्गत उन्हें निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीट मिलने का प्रावधान है। परंतु उनके लिए दाखिला लेना बहुत मुश्किल होता है।
  • राजनीति में शिक्षकों की बढ़ती भूमिका को देखते हुए उसे रोके जाने की आवश्यकता है। चुनाव आयोग को भी चुनाव के दौरान शिक्षकों की भागीदारी कम करनी चाहिए। राजनीतिक दलों में यह धारणा बन गई है कि चुनावी बूथ पर काम कर रहे शिक्षक उस बूथ पर किसी खास राजनैतिक दल को विजयी बना सकते हैं। बदले में ये दल उनकी नौकरी को बहाल रखने के लिए उन्हें राजनैतिक शरण देते हैं।
  • अंतर्विद्यालयीन प्रतियोगिताओं के जरिए विभिन्न विद्यालयों के बच्चों के शैक्षणिक स्तर को जाँचा जा सकता है। इन प्रतियोगिताओं की समस्त जानकारी को पे्रस या वेबसाइट के माध्यम से अभिभावकों तक पहुँचाया जाना चाहिए।

नई शिक्षा नीति की प्रस्तावना वर्तमान सरकार का अच्छा प्रयास है। परंतु जवाबदेही तय किये बिना इसमें सुधार की कोई उम्मीद रखना बेकार है।

टाइम्स ऑफ़ इंडिया में गीता गांधी किड़न के लेख पर आधारित

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