20-05-2025 (Important News Clippings)

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20 May 2025
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Date: 20-05-25

Understanding India’s relationship with Turkey and Azerbaijan

Nitika Francis, Sambavi Parthasarathy and Vignesh Radhakrishnan

Following Turkiye and Azerbaijan’s support for Pakistan after India’s military confrontation in the wake of the Pahalgam massacre, many online travel platforms reported a sharp spike in cancellations of tour bookings to these countries. Many Indian tour operators withdrew offers and promotional packages for trips to Turkiye and Azerbaijan. On social media, calls to “boycott” both countries gained traction. Institutions such as IIT Bombay, IIT Roorkee, and Jawaharlal Nehru University suspended MoUs with some Turkish universities.

Data show that the relationship between Pakistan and Turkiye has been strengthened by arms trade. The two countries have also shown reciprocal support during past geopolitical standoffs. For instance, Turkiye has backed Pakistan on the Kashmir issue, while Pakistan has supported Turkiye in disputes related to Cyprus.

Similarly, in 2020, it was with Turkish backing that Azerbaijan captured much of the Armenian- populated enclave from Armenia. Though Azerbaijan regained full control of the region in 2023, Turkiye denied any direct involve ment in that year’s operation.

Data from the Stockholm International Peace Research Institute (SIPRI) shows that Turkiye has been exporting arms to Pakistan since the 1990s. Chart 1 shows Turkiye’s arms exports to Pakistan between 1995 and 2023 by category and volume. A significant share of this trade comprised artillery – defined as naval, fixed, self-propelled guns, howitzers, and multiple rocket launchers. Pakistan also received armoured vehicles from Turkiye, including tanks, armoured cars, and personnel carriers.

India has supplied weapons to Armenia (Chart 2). Most of these exports comprise surface-to-air missile systems and a few multiple rocket launchers. In contrast, SIPRI data shows no official arms transactions between India and Azerbaijan, or India and Turkiye.

Last week, some Indian trader associations passed resolutions to boycott all forms of trade and commercial engagement with Turkiye and Azerbaijan. However, data suggests that even if this escalates into an official trade ban, India stands to lose little. Crude oil is the primary import from both countries, but their combined share in India’s total crude imports has remained below 1% over the past six years (Chart 3). In contrast, Azerbaijan could face a greater impact, as India was its third largest destination for crude oil as of 2023.

Another major import from Turkiye is machinery and mechanical appliances, including nuclear reactors, boilers, and related parts. But even in this category, Turkiye accounts for only about 1% of India’s total imports (Chart 4). India remains far more dependent on countries such as China and Germany for such equipment.

While calls to boycott Turkiye and Azerbaijan have led to “mass cancellations” of travel bookings from India, data shows that Indian tourists formed less than 1% of all tourists to Turkiye in 2024. That said, the number of Indian visitors to Turkiye has been rising steadily in recent years (Chart 5).

In 2023, Indians made up less than 6% of all tourists in Azerbaijan, but this share rose to around 10% in 2024. The boycott calls, therefore, come at a time when Indian travel to both these countries was on the rise (Chart 6).

The number of Indian students pursuing higher education in Turkey and Azerbaijan has also increased in recent years. In 2017, the number of Indian students in these countries was less than 100. As of January 2024, it increased by at least seven times (777).

Interests in conflict

The data for the charts were sourced from SIPRI, the Lok Sabha, Turkey’s Ministry of Culture and Tourism, the Azerbaijan Tourism Board, UN Comtrade, the Ministry of Commerce, and the Azerbaijan State Statistical Committee.


 

Date: 20-05-25

प्रवासियों के लिए केरल का अनुकरणीय प्रयास

संपादकीय

केरल में कक्षा 6 के पाठ्यक्रम में दरभंगा के एक प्रवासी मजदूर परिवार की बेटी की मलयालम में अपनी सहेली को लिखी चिट्ठी को शामिल किया गया है। इसमें दरकशां परवीन ने अपने साथ कुछ वर्ष पहले (कक्षा 6-7) में पढ़ने वाली सहेली- जो बाद में अभिभावकों के साथ यूपी चली गई- को अपनी प्रेरणादायक कहानी बताई है। केरल सरकार ने रोशनी नामक स्कीम के तहत प्रवासी मजदूरों के बच्चों के लिए अन्य पाठ्यक्रमों के साथ मलयालम की शिक्षा की व्यवस्था की है। इस बच्ची की सिलाई में रुचि देखते हुए एक शिक्षक ने आर्थिक मदद देकर उसे सिलाई मशीन खरीद दी। वह न केवल आत्मनिर्भर हुई बल्कि पोलिटेक्निक में फैशन डिजाइन का कोर्स करने के बाद स्नातक की शिक्षा ले रही है। अब वह राज्य सरकार के प्रवासी हित के प्रयासों का चेहरा बनकर कई स्कूलों में प्रवासी बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के उपाय बताती है। साथ ही मलयालम में कहानियां भी लिखती है। वह रोशनी योजना की स्वयंसेविका के रूप में आर्ट और क्राफ्ट की शिक्षा देती है। इस राज्य में 24 हजार प्रवासी बच्चे शिक्षा पा रहे हैं। सरकार की कोशिश है कि इन बच्चों की ड्रॉपआउट दर न बढ़े और ये केरल में ही अपना योगदान दें। जहां कई राज्यों में प्रवासियों को क्षेत्रवाद, जातिवाद, साम्प्रदायिकता के आधार पर प्रताड़ित किया जाता हो, वहां केरल का यह प्रयास क्या अनुकरणीय नहीं है?


Date: 20-05-25

क्षमा अस्वीकार

संपादकीय

राजनेताओं में यह प्रवृत्ति पिछले कुछ समय से काफी तेजी से पनपी है कि वे सार्वजनिक मंचों से अशोभन, अमर्यादित और भड़काऊ बयान देना अपनी शान समझते हैं। अगर उन पर आपत्ति दर्ज कराई जाती है, तो अक्सर वे उस पर टालमटोल का रुख अख्तियार करते हैं ज्यादा दबाव बनता है, तो यह कहते हुए वे क्षमा मांग लेते हैं कि अगर उनके बयान से किसी को ठेस पहुंची है, तो वे अपनी बात वापस लेते हैं। मगर सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद शायद राजनेताओं को कुछ सबक मिले। मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी के बारे में जैसी भद्दी टिप्पणी की, उसे लेकर स्वाभाविक ही लोगों में रोष पैदा हुआ। मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने उस पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मंत्री के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। पुलिस ने उस पर भी टालमटोल का रवैया अख्तियार किया, जैसा कि रसूखदार लोगों के मामले में वह अक्सर करती है तब उच्च न्यायालय ने दुबारा सख्त प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया। फिर, मंत्री महोदय ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष क्षमा याचना की। मगर सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें कड़ी फटकार लगाते हुए स्पष्ट कर दिया कि आपका कृत्य क्षमा योग्य नहीं है। इस मामले की जांच के लिए बाहरी राज्य के तीन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का एक विशेष कार्यबल गठित करने का आदेश दिया, जिसमें एक महिला अधिकारी भी होगी। न्यायालय इस जांच पर नजदीक से नजर रखेगा।

सर्वोच्च न्यायालय के इस रुख से जाहिर है कि मंत्री के खिलाफ कड़ा फैसला आ सकता है। किसी निष्ठावान सैन्य अधिकारी का संबंध आतंकवादियों से जोड़ना न केवल उसका अपमान करना, बल्कि पूरी सेना का मनोबल गिराने का प्रयास कहा जा सकता है। इस पर स्वाभाविक ही पूरे देश में रोष जाहिर हुआ, मगर विचित्र है कि विजय शाह के बयान के बचाव में भी कुछ लोग उतर आए। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस पर अभी तक खामोश है। इससे विपक्षी दलों को बैठे बिठाए निशाना साधने का मौका मिल गया है अब तो राजग के कुछ सहयोगी भी इस मामले की कड़ी निंदा करने लगे हैं। कुछ मामले व्यक्तिगत नहीं होते, कि जिन पर पार्टी चुप्पी साध सके। अनेक मामलों में देखा जाता रहा है कि जब भी कोई बड़ा नेता इस तरह अपने किसी बयान के कारण विवादों में घिरता है, तो पार्टी उससे अपने को अलग कर लेती है। मगर विजय शाह के मामले में ऐसा नहीं किया जा सकता। वे एक राज्य सरकार में जिम्मेदार मंत्री पद का निर्वाह कर रहे हैं।

अगर विजय शाह के खिलाफ अदालत कोई कड़ा कदम उठाती है, तो इससे पार्टी की किरकिरी और बढ़ेगी ही इस तरह के बयान देने वाले नेताओं को संरक्षण देकर आखिरकार पार्टियों की साख पर ही धब्बा लगता है। अपने नेताओं को अनुशासन का पाठ पढ़ाना पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का दायित्व होता है। फिर, सवाल मध्यप्रदेश सरकार पर भी उठे ही हैं कि आखिर मुख्यमंत्री किन दबावों में एक विवादित नेता को मंत्री पद पर बरकरार रखे हुए हैं। किसी भी राजनीतिक दल के लिए यह अच्छी बात नहीं मानी जाती कि उसके किसी नेता को अनुशासित करने के लिए अदालत को कदम उठाने पड़ें इतना कुछ हो जाने के बाद विजय शाह को खुद भी शायद इस बात का अहसास नहीं हो पाया है कि उन्होंने गैरजिम्मेदाराना बयान देकर अपने और पार्टी के लिए मुसीबत खड़ी कर दी है।


Date: 20-05-25

तुर्किये पर भारत की ‘ट्रेड स्ट्राइक’

कुलदीप सिंह भाटी

पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद आतंकियों को सबक सिखाने और आतंकवाद के प्रति भारत की असहिष्णुता की नीति के तहत भारत ने पड़ोसी देश पाकिस्तान में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। इससे बौखलाए पाकिस्तान ने भारत पर सैन्य कार्रवाई शुरू कर दी थी। हालांकि बाद में पाकिस्तान ने घबराकर संघर्ष – विराम का प्रस्ताव रखा जिसे भारत ने सशर्त स्वीकार कर लिया। पाकिस्तान के साथ इस सैन्य संघर्ष में भारत के विरुद्ध प्रतिक्रिया देने और नापाक इरादों वाले पाकिस्तान का साथ देने वाले देशों विशेषतः तुर्किये और अजरबैजान के लिए भारत में बहुत नाराजगी देखी जा रही है।

इस संघर्ष में तुर्किये ने जिस तरीके से भारत के खिलाफ वाक – युद्ध छेड़ा, यह संप्रभु भारत के लिए असहनीय व अस्वीकार्य था । तुर्किये ने न केवल मीडिया व अन्य मंचों पर भारत के विरुद्ध बयान दिए बल्कि पाकिस्तान को इस संघर्ष में सैन्य संसाधन उपलब्ध करवा कर सहायता भी की। 14 मई को तुर्किये प्रधानमंत्री अर्दोआन ने पाकिस्तान को अपना दोस्त बताते हुए भारत के खिलाफ विष वमन किया। संघर्ष के दौरान भारत पर हुए ड्रोन हमलों में प्रयुक्त कहा 3 और असीसगार्ड सोंगर नामक ड्रोन भी तुर्किये ने ही उपलब्ध कराए। इसके बाद भी जब पाक-सेना इनको ठीक से प्रयोग करने में अक्षम रही तो तुर्किये ने अपने तकनीकी विशेषज्ञों तक को सहायता के लिए पाकिस्तान भेजा था। भारत ने पाकिस्तान के प्रति तुर्किये के इस समर्थन व सहयोग को परोक्ष रूप से आतंकवाद व इसकी समर्थक सत्ताओं के लिए प्रोत्साहक माना। पाकिस्तान से सीजफायर के बाद भारत ने तुर्किये पर महत्त्वपूर्ण कार्रवाई करते हुए कूटनीतिक तरीके से इसके भारत के साथ हो रहे विदेशी व्यापार को लक्ष्य बनाया । तुर्किये ने पाकिस्तान को अपना महत्त्वपूर्ण मित्र राष्ट्र तो बताया पर वह यह भूल गया कि भारत ही वह देश है जिसने 2023 में उसके देश में आए भूकंप पर ऑपरेशन दोस्त के तहत सबसे पहले व सबसे तेज 12 घंटे में राहत सामग्री, बचाव उपकरण, सेना व एनडीआरएफ की टीम भेजी थी। दगाबाज तुर्किये का यह दुष्कृत्य न केवल सरकार बल्कि यहां के जनमानस के लिए भी अस्वीकार्य था । अतः हमारी सरकार द्वारा विरोधस्वरूप तुर्किये के विरुद्ध कुछ प्रतिबंधात्मक कदम उठाए जाते, इससे पहले ही हमारी राष्ट्रवादी जनता ने स्वतः संज्ञान लेकर स्वविवेक से तुर्किये से आयातित उत्पादों का बहिष्कार कर उनके विरुद्ध मोर्चा खोल दिया । सर्वप्रथम देशवासियों ने तुर्किये के पर्यटन व्यवसाय पर चोट की और वहां घूमने जाने वाले भारतीयों ने बड़ी संख्या में अपने टिकिट रद्द करवाए। ट्रैवल एजेंट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया और ट्रैवल एजेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने 9 मई को घोषणा की कि वे अब तुर्की और अजरबैजान के लिए पैकेजों का प्रचार या बिक्री नहीं करेंगे। इससे तुर्किये को होने वाले आर्थिक नुकसान का अनुमान लगाया जा सकता है। वर्ष 2024 में लगभग 3.30 लाख भारतीय पर्यटकों ने तुर्किये की यात्रा की, जिसका वहां की अर्थव्यवस्था में करीब 3000 करोड़ रुपये का योगदान था । विरोध के इस रास्ते को धीरे-धीरे अन्य उद्योगों ने भी अपनाया। देश के फल व्यापारियों ने तुर्किये से आयात होने वाले सेबों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया। पर्यटन और बागवानी फसल सेब के बाद तुर्किये के मार्बल उद्योग पर भी भारत ने प्रहार किया है। तुर्किये से भारत विभिन्न प्रकार के मार्बल जिसमें ब्लॉक और स्लैब शामिल है, का आयात करता है । अब मार्बल आयात को पूर्णतः प्रतिबंधित कर दिया है। भारत में विभिन्न देशों से आयात होने वाले कुल मार्बल का 70 प्रतिशत आयात अकेले तुर्किये से होता है। राष्ट्र हित व देश के प्रति उद्योग जगत की प्रतिबद्धता का ही परिणाम है कि इसके बाद भारत ने तुर्किये से आयात होने वाले ज्वेलरी उद्योग पर भी स्ट्राइक कर दी है।

पिछले कुछ समय से भारत में तुर्किये में बनी कम वजन की ज्वेलरी खूब प्रचलन में आई है। इसने हमारे स्थानीय बाजारों में धूम मचा रखी है। फलतः बाजार में इसकी मांग भी तेजी से बढ़ने लगी। अब तुर्किये को घुटनों पर लाने के लिए अखिल भारतीय रत्न एवं आभूषण घरेलू परिषद (जीजेसी) के अध्यक्ष ने देश के सभी आभूषण विक्रेता, निर्माता, व्यापारी और थोक विक्रेता से तुर्किये से सभी लेन-देन बंद करने की अपील की है। इसके अतिरिक्त इन मुख्य आयातकों वस्तुओं या उत्पादों के साथ ही सब्जियों, चूना, सीमेंट, खनिज तेल, रसायन, प्राकृतिक या संवर्धित मोती, लोहा और इस्पात आदि के आयात पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ना शुरू हो गया है। इसके साथ ही भारत के ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म भी इसके उत्पादों को अपने पोर्टल से हटा रहे हैं। निष्कर्षतः भारत ने तुर्किये को पाकिस्तान का साथ देने के लिए रणनीतिक रूप से घेरा है । तुर्किये के व्यापार और वाणिज्य पर भारत की यह एक सफल ट्रेड स्ट्राइक है जिसके परिणाम वर्तमान के साथ निकट भविष्य में और बेहतर रूप से निकलकर आएंगे। यह क़दम विश्व के दूसरे विरोधी देशों के लिए भी एक चेतावनी है कि भारत अब न केवल पाकिस्तान बल्कि उसके दुष्कृत्यों में उसका साथ देने वालों को भी अपने तरीके से सबक सिखाएगा।