15-02-2023 (Important News Clippings)

Afeias
15 Feb 2023
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Date:15-02-23

More Minnus, Draupadis

Every tribal success story is a reminder how much govts need to do for genuine Adivasi empowerment.

TOI Editorials

That Minnu Mani, a 23-year-old from the Kurichiya tribe in Kerala, secured a contract in the Women’s Premier League auction is both heart-warming and a reminder. Minnu’s success is a rare story for India’s tribal communities. Sports has discovered some talent among tribals and politics has embraced a few. But data tells the real story. The recently released Tribal Development Report 2022 by Bharat Rural Livelihoods Foundation provides damning statistics. They are 8. 6% of the population, and they fare considerably worse than others when it comes to access to sanitation, drinking water, education and proper nutrition.

The report also says that tribal communities have been pushed farther away from alluvial plains and fertile river basins over the decades, which has had a direct impact on their livelihood. Of the 257 Scheduled Tribe districts in the country, 230 or 90% are in either forested or hilly or dry areas. And past policies like the Forest Conservation Act, 1980 illogically pitted the imperatives of environment protection against the needs of Adivasi communities.

While that approach has been modified and today Adivasis are seen as important stakeholders in forest conservation, on-ground contestations continue. Last year’s amendments to the Forest Conservation Rules have been protested by tribal communities on the ground that they undermine the rights of tribes and forest dwellers over forest resources as envisioned in the Forest Rights Act, 2009. Adivasi activists say the changes make it easier for businesses to divert forest land and make obtaining clearances by commercial entities easier. If true, these provisions have serious implications for tribal welfare.

It’s also true that there has been increasing political courting of tribal communities in recent years. From expanding ST status to new communities to the Adivasi vote becoming a sought-after electoral commodity to India getting its first tribal President in Droupadi Murmu, tribals have emerged as a serious political bloc. But their genuine empowerment will lie in creating opportunities. We need thousands more Minnu Manis and Droupadi Murmus.


Date:15-02-23

Women’s IPL, Valued, Virtuous Cycle

ET Editorials

Water seeks its own level, goes the old adage. The truth is that for anything of value to get its due, systems and mechanisms must be in place. The case of Monday’s Women’s Premier League (WPL) auction is a classic case of value being made not ‘automatically’ but by effort. This applies not just to the rising talent of the cricketers who have been snapped up for good money to play in a new cricket tournament, but also to those who see WPL take a hold on this spectator sports nation. The very fact that three established (men’s IPL) franchises — Mumbai Indians, Delhi Capitals and Royal Challengers Bangalore (RCB) — and two new ones — Gujarat Giants (established Pro Kabaddi League side) and UP Warriorz — put their money in the ring for WPL 2023 shows how demand can — and should — be built up on the back of supply.

Numbers, especially when connected to money, matter. They provide the most objective version of value yet known. Which is why, even as ₹50 lakh was the highest base price, the very first bid had India’s superb opener Smriti Mandhana have Mumbai Indians and RCB locked in a bidding war, which the latter won after picking up Mandhana for ₹3. 4 crore. Dependable money was spent on dependable players — ₹3. 2 crore on Australia’s Ashleigh Gardner and England’s Natalie Sciver by Gujarat Giants and Mumbai Indians respectively. UP Warriorz and Delhi Capitals got Deepti Sharma and Jemimah Rodrigues for ₹2. 2 crore each.

Like in any value-based enterprise, investments are key — in players, in infrastructure, in marketing to garner more interest, in the actual quality of show. The five WPL franchise owners are looking for returns. The inaugural auction has set up a valuable, virtuous cycle that should see the pool of teams expand in the future.


Date:15-02-23

उद्योगों की जरूरत और तकनीकी शिक्षा में गैप

संपादकीय

नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश के आईटीआई केन्द्रों (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान) में प्लेसमेंट की दर एक प्रतिशत से भी कम है। नीति आयोग का मानना है कि ये युवा उस किस्म का प्रशिक्षण नहीं पा रहे हैं, जिनकी उद्योगों को जरूरत है। दरअसल जिस रफ्तार से तकनीकी बदल रही है, उसके मुकाबले संस्थान के अध्यापक खुद उसमें दक्षता हासिल नहीं कर पा रहे हैं। आजादी के बाद औद्योगिक विकास के लिए देश में तकनीकी शिक्षा त्रि-स्तरीय करने की योजना बनी- डिग्री, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्सेज। लेकिन कालांतर में ट्रेनिंग संस्थाएं तकनीकी की रफ्तार के साथ नहीं चल सकीं। एक आईटीआई प्रशिक्षु पर सरकार करीब 1.32 लाख रुपए खर्च करती है। एक अन्य चौंकाने वाला पहलू और देखें । एक प्रमुख अध्ययन संस्था की ताजा रिपोर्ट के अनुसार देश के सबसे मशहूर बॉम्बे आईआईटी से पढ़े अधिकांश इंजीनियर्स जिस कोर्स में शिक्षा पा रहे हैं, उससे अलग गैर-तकनीकी क्षेत्रों की नौकरियों में रुचि ले रहे हैं। या यूं कहें कि औद्योगिक दुनिया उनके ब्रेन का प्रयोग तो कर रही है लेकिन उस क्षेत्र में नहीं, जिनमें उन्हें चार-पांच साल शिक्षा दी जाती है। आईआईटी में प्रवेश के लिए इन युवाओं को जेईई जैसी बेहद कड़ी प्रतियोगी परीक्षा से गुजरना होता है। एक आईआईटी छात्र की चार साल की पढ़ाई पर सरकार का करीब 30 लाख रुपया खर्च होता है। आज टेक्निकल एजुकेशन में मौलिक परिवर्तन की जरूरत है ताकि ये लाखों युवा उद्योगों में प्रयुक्त तकनीकी के अनुरूप शिक्षा पाएं। बेहतर यह होगा कि उद्योगों की सलाह पर और उनके नियंत्रण में ही प्रशिक्षण की रूपरेखा बने और उद्योग के लोग ही उन्हें प्रशिक्षित करें। टीचर्स को भी अपनी उपादेयता के लिए बदलना होगा।


Date:15-02-23

दुनिया के लिए संकटमोचक बनता भारत

श्रीराम चौलिया, ( लेखक जिंदल स्कूल आफ इंटरनेशनल अफेयर्स में प्रोफेसर और डीन हैं )

छह फरवरी को तुर्किये और सीरिया मे आए विनाशकारी भूकंप से हुए विध्वंस से पूरा विश्व मर्माहत है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे इक्कीसवीं सदी की सबसे बड़ी आपदाओं मे से एक घोषित किया है। हादसे में जान-माल की क्षति और मानवीय पीड़ा इतनी गंभीर है कि शब्दों में उसका वर्णन संभव नहीं लगता। ऐसे विपत्ति काल में दुनिया के कई देशों ने राहत एवं बचाव अभियान में योगदान शुरू किया है। संकट में तो छोटा सा योगदान भी बहुत बड़ा होता है, परंतु जिस प्रचंड आपदा से तुर्किये और सीरिया दो-चार हुए, उसमें आवश्यकता इतनी अधिक थी कि केवल सक्षम देश ही त्वरित एवं प्रभावी सहायता प्रदान कर पाते। गर्व की बात यही है कि ऐसे देशों की सूची में भारत का नाम प्रमुखता से शामिल है। ‘सच्चा मित्र वही, जो समय पर काम आए’ की कहावत को चरितार्थ करते हुए भारत ने तुर्किये के आपदाग्रस्त क्षेत्रों में शुरुआती तीन दिनों में ही 201 बचाव कर्मी और 170 चिकित्सा कर्मी उतारे। केवल अजरबैजान, इजरायल और फ्रांस ने ही बचाव कार्य में भारत से अधिक कर्मी भेजे, जबकि चिकित्सा दलों के मामले में भारत शीर्ष पर रहा। जहां तक भौगोलिक दूरी की बात है तो भारत, तुर्किये और सीरिया से 4,600 किलोमीटर दूर है, जबकि बाकी बड़े मददगार पश्चिम एशिया के या करीबी यूरोप से थे। इसके बावजूद भारत ने जिस तादाद में राहत सामग्री उपलब्ध कराई, अस्थायी अस्पताल स्थापित किए और मलबे मे फंसे पीड़ितों को जीवित निकाला, इससे एक समानुभूतिक, मजबूत और निपुण देश का परिचय मिला। भारत के ‘आपरेशन दोस्त’ ने बिना किसी पंथ, राष्ट्रीयता या राजनीतिक पूर्वाग्रह से ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के विचार को साकार करते हुए न केवल प्रभावित जनता, बल्कि सरकारों का भी दिल जीता।

बीते कुछ वर्षों के दौरान भारत ने दूसरे देशों में घटित आपदाओं से निपटने में जो दक्षता दिखाई है, उसे विश्व ने सराहा है। 2022 में ‘आपरेशन गंगा’ के तहत भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध के आरंभिक दिनों में ही वहां फंसे तकरीबन 25,000 भारतीयों सहित 18 अन्य देशों के 147 नागरिकों को सुरक्षित बाहर निकाला। उससे पहले 2015 में यमन युद्ध के दौरान भारत ने ‘आपरेशन राहत’ के अंतर्गत कुल 4,640 भारतीय नागरिकों और 41 देशों के 960 विदेशियों को सुरक्षित जगहों तक पहुंचाया। 2011 में लीबिया युद्ध के आरंभिक दौर में ‘आपरेशन सेफ होमकमिंग’ के जरिये 15,000 भारतीय नागरिकों को चंद हफ्तों में ही बचाकर स्वदेश लाया। पड़ोसी देशों में भी जब-जब कोई आपदा आई है, तब-तब भारत संकटमोचक रूप धारण करके बचाव एवं राहत कार्य में अव्वल रहा है। 2004 में हिंद महासागर की सुनामी के समय भारत ने श्रीलंका में ‘आपरेशन रेनबो’, मालदीव में ‘आपरेशन कास्टर’ और इंडोनेशिया मे ‘आपरेशन गंभीर’ जैसे अभियान चलाकर तत्काल राहत पहुंचाकर अपनी सदाशयता का परिचय दिया। इसी प्रकार 2015 में नेपाल में आए भूकंप के छह-सात घंटों के भीतर ही भारत ने ‘आपरेशन मैत्री’ के माध्यम से भरसक सेवा की और 43,000 भारतीयों की सफल निकासी करवाई। यही कारण है कि हिंद महासागर क्षेत्र में भारत को राहत में सबसे पहले पहल करने वाले देश की ख्याति प्राप्त है, क्योंकि आपदा में समय बहुत महत्वपूर्ण होता। जितना समय गंवाया, क्षति उतनी ही अधिक पहुंचती है।

भारत की ऐसी उपलब्धि और प्रतिष्ठा में हमारे सैन्य बलों के अनुकरणीय तालमेल और आपदा से निपटने की पूर्व तैयारियों एवं अभ्यास का अहम योगदान है। देश में जब भी कोई आपदा आती है तो सेना के सभी अंग अपने धैर्य, निपुणता और उत्कृष्ट सेवा भाव से राहत एवं बचाव का दारोमदार संभालते हैं। इसी अनुभव एवं दक्षता के दम पर अंतरराष्ट्रीय आपदाओं में हमारे सैन्य बल अन्य मददगार देशों के मुकाबले एक कदम आगे होते हैं। दूरस्थ देशों में भारतीय सैन्य बल योजनाबद्ध ढंग से मानवीय सहायता प्रदान करते हैं। हालांकि हमारी सेना के तीनों अंगों के बीच ‘संयुक्त कमान’ का गठन अभी शेष है, लेकिन किसी भी आपदा में ये सभी गजब की एकजुटता और तालमेल से काम करते हैं।

मानवीय सहायता और आपदा राहत के मैदान में भारत इसलिए भी अग्रणी देशों में एक है, क्योंकि हमने आपदाओं में ‘नागरिक-सैन्य समन्वय’ के सिद्धांत को अपनाकर उसे लागू किया है। राष्ट्रीय आपदा मोचन बल यानी एनडीआरएफ में पुलिस और अर्धसैनिक बल अक्सर सेना और स्थानीय प्रशासन एवं नागरिकों के साथ तालमेल बनाकर प्रभावी हस्तक्षेप करते हैं। आपदाओं में लाखों लोगों की जान बचाने का श्रेय हमारी इन्हीं संस्थाओं को जाता है, जिन्होंने समाज को साथ लेकर कार्य संचालन की बढ़िया शैली विकसित की है। एक शक्तिशाली लोकतांत्रिक देश होते हुए भारत ही आपदाओं से निपटने के लिए ऐसा अनोखा संयोजन तैयार कर सकता है। चीन स्वयं को मानवीय संकटों में दुनिया के मददगार के रूप में पेश करता है, लेकिन अपने तानाशाही दृष्टिकोण के कारण उसका प्रभाव भारत के मुकाबले कम है।

अंतरराष्ट्रीय आपदाओं में राहत प्रदान करने के मोर्चे पर भारत के शीर्ष पर रहने का एक कारण साफ्ट पावर को लेकर हमारे राजनीतिक नेतृत्व की समझ भी है। किसी दूरदराज के देश में पीड़ितों को बचाकर, उन्हें आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराकर हमें क्या मिलेगा? इस प्रश्न का उत्तर साफ्ट पावर और अंतरराष्ट्रीय जनमत में हमारे देश की छवि के विस्तार में निहित है। प्रधानमंत्री मोदी ने तुर्किये और सीरिया को ‘हरसंभव सहायता’ का वादा यह जानते हुए किया कि ऐसी आपदाओं में ‘अच्छे वैश्विक नागरिक’ बनकर दिखाने का मौका मिलता है। आपदा प्रतिक्रिया के सामरिक लाभ भी हैं। अगर किसी देश ने पूर्व में भारत की अनदेखी की या भारत के विरुद्ध रुख अपनाया हो, तो आपदा में मानवीय दृष्टिकोण से राहत प्रदान कर उसके साथ नए सिरे से रिश्ते बनाने का अवसर मिलता है। एक उदार मानवीय शक्ति के तौर पर भारत आज जिस मुकाम पर है, वह एक भावी महाशक्ति का लक्षण ही है। दुनिया भर में फैले ढेर सारे दोस्तों के आधार पर ही भारत अपने विस्तारशील हितों की रक्षा कर सकता है।


 

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