08-02-2021 (Important News Clippings)

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08 Feb 2021
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Date:08-02-21

Hindutva’s conscience-keepers

Like Republicans against Trumpism, dissenters within BJP must speak up

Rajmohan Gandhi , [ The writer is currently teaching at the University of Illinois at Urbana-Champaign]

During the coming two weeks, the maximum temperature in Urbana, Illinois, will be minus 2 degrees Celsius. That’s the projection. The minimum will go down, it seems, to minus 22. Other places in North America will be even colder.

These readings are a prod for not forgetting the kisans protesting on Delhi’s borders: Their nights and days spent in the open, close to menacing spikes, ditches, barbed wire and concrete blockades, many of them denied water, most of them barred from the internet.

Even if ameliorative attempts are made, this picture of inhumanity will haunt for decades the leaders and supporters of India’s current government. It will paint them in hues of shame in history books. In due course, some members of the current regime will try to explain that they privately tried to soften the regime’s response. It will be too late for their reputations.

Here in the US, at least some leaders of the Republican Party have spoken up in time, and openly, against the excesses of Trump and his hardcore supporters. Two of America’s strongest conservative voices, Kentucky’s Mitch McConnell and Wyoming’s Liz Cheney, have led the way. McConnell, the Senate’s majority leader until the other day, is the man most responsible for turning the Supreme Court conservative. Cheney is the daughter of Dick Cheney, George W Bush’s well-known vice president and a core architect of the Iraq War.

Because she had voted to impeach him, Trump and his henchmen did everything in their power to remove Liz Cheney from her third position in the Republican Party’s hierarchy in the House of Representatives. Putting on direct pressure, Trump made multiple phone calls to members, but the bid was overwhelmingly defeated, 145 to 61, thanks in part to secret balloting.

The party’s Trumpist base is large, loud and intimidating, but its anti-extremist and pro-democracy wing seems finally to be finding its spine.

Those who attacked the US Capitol on January 6 enjoy considerable support across this land. Trumpism has become a cult with fanatical members believing that liberal Americans are traitors who, in alliance with Jews and foreigners, will destroy this country. White supremacy is the cult’s unconcealed purpose, even when the words are not pronounced. Its symbols are the cross, the American flag, the Confederate flag, and the gun — all four joined to one another!

The seeming silence of leaders of America’s popular churches in face of this cult has been a curious element in the American scene. While Black pastors and progressive White clergy have spoken out strongly against Trump and against White supremacy, the strong support for Trump from men like Frank Graham, son of famed evangelist Billy Graham, does little for American Christianity.

In less than two years, the US will have congressional elections, where the usual pattern is for the party controlling the White House to lose seats. While this may well be repeated in end-2022, the Republican schism that has occurred could work in favour of the Democrats.

How Biden will negotiate the old progressive versus moderate divide in his own party is another obvious question, but the pandemic with its troubling variants and Trumpism’s dangers should be two powerful unifying forces for the Democrats and indeed for the US as a whole.

The political impact of the Senate’s trial of Trump is not easy to predict. There are suggestions that Trump’s obsession for re-litigating the electoral verdict will hurt the main defence argument, which is that the legal provision for impeaching “the president” cannot apply to a former president.

While strongly criticising Trump’s refusal to accept his loss and also the insurrection of January 6, McConnell has so far held that an ex-president cannot be impeached, which is also the position taken by the vast majority of Republican senators. Since it requires 67 votes in a 100-member senate, impeachment looks unlikely.

A formal failure to impeach may not necessarily rehabilitate Trump, and a re-enactment during the trial of his hostility towards the democratic process could weaken Trumpism.

While waiting and watching, all of us will keep a steady eye on Delhi, the farmers and the regime. An obvious question is: Who in the BJP or the Hindutva parivaar are the counterparts of McConnell and Liz Cheney? Quiet disapproval of Modi-Shah’s policies and responses must exist within the parivaar. Common sense tells us that. Competitive human nature ensures that.

In due course, whenever that may be, we will find out about the ones secretly questioning.

Meanwhile, as we return our gaze to the borders of Delhi and to the farmers in whose face the doors of humanity and respect have been slammed shut, another question may be asked. It is similar to the one about voices for democracy within America’s churches.

Where are the voices of conscience from exponents of the Hindu faith?


Date:08-02-21

आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद का बजट

बजट देश के हर नागरिक हर क्षेत्र हर समुदाय की आकांक्षाओं को पंख देकर नई उड़ान भरने के लिए प्रेरित करने वाला है।

अमित शाह , ( लेखक केंद्रीय गृहमंत्री हैं )

कोरोना की चुनौती और प्रतिकूल परिस्थितियों के बीच आम बजट लाना एक जटिल काम था, परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को सिद्धि तक ले जाने वाला सर्वस्पर्शी एवं सर्वांगीण विकास को समर्पित बजट पेश किया। इस बजट के मूल्यांकन में इसकी मूल भावना को दो बिंदुओं में समझना चाहिए। पहला यह कि महीनों तक लॉकडाउन के कारण ठप आर्थिक गतिविधियों के बावजूद यह बजट चुनौतियों से उबर कर आगे बढ़ने की मजबूत इच्छाशक्ति वाले सशक्त भारत की तस्वीर प्रस्तुत करता है। दूसरा यह कि बजट में भविष्य के आत्मनिर्भर भारत की आकांक्षा रखने वाले देश की संकल्पशक्ति नजर आती है। देश ने महसूस किया है कि यदि नेतृत्व दूरदर्शी और संकल्पवान हो तो आपदा को अवसर में बदला जा सकता है। अनेक चुनौतियों के बावजूद मोदी सरकार ने किसी प्रकार का कोई अतिरिक टैक्स लगाए बिना बजट में जनकल्याण के कार्यों को ‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’ मंत्र के साथ आगे बढ़ाते हुए गरीब, किसान, महिला, युवा को प्राथमिकता दी है। कृषि की बुनियादी संरचना को सुदृढ़ करने और किसानों की आय दोगुनी करने के लक्ष्य के लिहाज से यह बजट विशेष महत्व रखता है। बजट से स्पष्ट है कि किसानों की उपज लागत से डेढ़ गुने अधिक एमएसपी पर खरीदी जाएगी। बीते वर्ष में गेहूं एवं दाल और चालू वर्ष में धान की खरीद में वृद्धि यह दिखाती है कि केंद्र में किसानों के हित में काम करने वाली सरकार बैठी है। पहले जो किसान यूरिया के लिए पुलिस की लाठियां खाते थे, आज सम्मान निधि की राशि सीधे उनके खातों में पहुंचती है। सरकार ने कृषि ऋण के लिए बढ़ोतरी करते हुए 16.5 लाख करोड़ रुपये का प्रविधान किया है। रूरल इंफ्रास्ट्रक्चर फंड को 30 से 40 हजार करोड़ रुपये करने, लघु सिंचाई परियोजनाओं के लिए 10 हजार करोड़ रुपये, 1000 ‘ई-नाम’ के जरिये किसानों को वैश्विक बाजार से जोड़ने और स्वामित्व योजना जैसे अनेक प्रयास किसानों की आय दोगुनी करने के लिए किए गए हैं।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में महामारी के दौरान देशव्यापी टेस्टिंग नेटवर्क, पीपीई किट उत्पादन में भारत की कार्यशैली ने विकसित देशों को भी चकित किया। स्वास्थ्य बजट में 137 प्रतिशत की ऐतिहासिक बढ़ोतरी करते हुए उसे 2.38 लाख करोड़ रुपये किया गया है। बजट में प्रस्तावित आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना से लगभग 75 हजार गांवों के वेलनेस सेंटर्स को मदद मिलेगी। नई लैब-नए संस्थान खुलने से स्वास्थ्य व्यवस्था में व्यापक बदलाव होंगे। बजट में कोरोना वैक्सीनेशन के लिए 35 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है। भारत कोरोना टीके के निर्माण और उत्पादन में अग्रणी बना है। वसुधैव कुटुंबकम की भावना के साथ मोदी जी दुनिया के तमाम देशो में टीका पहुंचा कर भारत को वैश्विक पटल पर सम्मान दिला रहे हैं। बजट में सबके लिए कुछ न कुछ है। उज्ज्वला योजना में आठ करोड़ महिलाओं तक मुफ्त रसोई गैस पहुंचाने के बाद अब एक करोड़ अन्य लाभार्थियों तक पहुंचने का लक्ष्य है। बजट में 75 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठ नागरिकों को टैक्स रिटर्न भरने से छूट का निर्णय सरकार के मानवतावादी नजरिये का प्रतीक है। मत्स्य उद्योग से जुड़े लोगों के हित में पांच नए बंदरगाह बनाने और प्रवासी मजदूरों के डाटा को एकीकृत करने का प्रस्ताव है, जिससे वे एक देश-एक राशन कार्ड का लाभ उठा सकें। मध्यम वर्ग के हित में सस्ते घर के लिए कर्ज में छूट की अवधि एक साल और बढ़ाई गई है। मोदी जी ने गरीबों को आवास, शौचालय, बिजली, रसोई गैस, शुद्ध जल, खाद्य सुरक्षा इत्यादि सुविधाएं देने का जो संकल्प लिया है, उसे यह बजट सिद्धि तक ले जाने में सहायक होगा।

बीते सात दशकों में अनेक सरकारें आईं, किंतु वैश्विक पटल पर भारत की साख को बढ़ाते हुए युगानुकूल आर्थिक सुधारों के साथ सामान्य जन के कल्याण के प्रति इतनी प्रतिबद्ध सरकार पहले कभी नहीं आई। आज देश आर्थिक महाशक्ति बनने को तैयार है, किंतु मुझे कई बार दु:ख होता है कि कुछ विपक्षी दल देशहित के मसलों पर भी नकारात्मक विचारों से राजनीति करते हैं। ऊपर जिन कार्यों का मैंने उल्लेख किया, वे सभी आमजन के जीवन में बेहतर बदलाव लाने वाले हैं। क्या यह सब तब संभव है जब देश आर्थिक रूप से कमजोर हो?

मैं बधाई देना चाहता हूं प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व को, जिन्होंने देश को समृद्ध करने के अभियान को आर्थिक सुधारों से गति देने का काम किया है। महामारी के बाद रिसेटिंग मोड में चल रही वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत के लिए नए अवसर हैं। इस बजट में इन अवसरों को परिणाम में बदलने की नीतिगत योजना दिखती है। आज देश को आर्थिक विकास में अपनी संपूर्ण ऊर्जा और क्षमता के साथ जुटना होगा। निजी क्षेत्र भी हमारी इसी ऊर्जा का हिस्सा है। मोदी सरकार ने पारदर्शी और सुगम व्यवस्था देकर आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है और आधारभूत संरचना के विकास के लिए भी ठोस कदम उठाए हैं। परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के 1.18 लाख करोड़ रुपये के बजट से राजमार्गों के विस्तार को नई गति मिलेगी। रेलवे को अगले एक दशक की जरूरतों के अनुरूप तैयार करने के लिए रिकार्ड 1.10 लाख करोड़ रुपये का बजट दिया गया है। इसके साथ जलमार्गों, बंदरगाहों के विकास हेतु पूंजी निवेश और पीपीपी मॉडल के जरिये अनेक कदम उठाए गए हैं। आर्थिक विकास को गति देने के लिए पूंजीगत व्यय में 34.5 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है। यह पिछले वर्ष के 4.21 लाख करोड़ से बढ़कर 5.54 लाख करोड़ रुपये हो गया है। सरकार ने स्टार्ट-अप को प्रोत्साहन देते हुए उन्हें 31 मार्च 2022 तक टैक्स जमा करने से राहत दी है। अर्थव्यवस्था की धुरी और करोड़ों लोगों को रोजगार देने वाले लघु एवं मध्यम उद्योगों की मजबूती के लिए भी कई कदम उठाए गए हैं। साथ ही बैंकिंग तंत्र में सुधार, ऋण प्राप्ति की सुगमता एवं आर्थिक विवादों के निपटारे के कदम उठाकर आर्थिक उन्नति को सुगम बनाया गया है। इन कदमों का ही परिणाम है कि विदेशी निवेश तेजी से बढ़ा है। गत तिमाही में यह 24.6 अरब डॉलर तक पहुंचा।

नए दशक में लाया गया यह पहला बजट आत्मनिर्भर भारत के संकल्प को पूरा करने की बुनियाद रखने वाला है। बजट देश के हर नागरिक, हर क्षेत्र, हर समुदाय की आकांक्षाओं को पंख देकर नई उड़ान भरने के लिए प्रेरित करने वाला है। यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ के विकास की बुनियाद रखने वाला बजट है।


Date:08-02-21

चिकित्सा तंत्र में बदलाव की जरूरत

अपेक्षित समर्थन के अभाव में फिजियोथेरेपी जैसी प्रभावी प्रणाली का वांछित लाभ नहीं मिल सका है।

डॉ. अजय खेमरिया , ( लेखक लोक नीतियों के जानकार हैं )

चिकित्सकों की कमी देश में एक प्रभावी स्वास्थ्य तंत्र की राह में बड़ी बाधा है। ऐसे में मोदी सरकार ने डेंटल और आयुष चिकित्सकों को एक ब्रिज कोर्स के साथ एलोपैथिक परामर्श का रास्ता खोला है। हालांकि एलोपैथ लॉबी ने इसका कड़ा विरोध किया जा रहा है। वहीं देश में चिकित्सकों की उपलब्धता और आवश्यकता के आंकड़े बताते हैं कि आगामी दो दशकों में भी मानक उपलब्धता के आसार नहीं है। लोकसभा की प्राक्कलन समिति ने इस समस्या के मद्देनजर एक महत्वपूर्ण अनुशंसा की है। इसके अंतर्गत ‘फिजियोथेरेपी’ को उपचार की अहम प्रणाली के तौर पर अपनाने की बात है। फिलहाल देश में इस विधा का केंद्रीय नियामक संस्थान भी नहीं है। गत सप्ताह आए बजट में नर्सिंग के लिए नए मिडवाइफरी बिल का जिक्र तो हुआ, पर फिजियोथेरेपी को लेकर कोई उल्लेख नहीं हुआ जबकि देश में स्नातक, परास्नातक और पीएचडी तक इसकी पढ़ाई कराई जाती है।

प्राक्कलन समिति ने फिजियोथेरेपी को एक पूर्णत: विकसित एवं स्वतंत्र विभाग के रूप में मान्यता देने की आवश्यकता पर जोर दिया है। समिति के अनुसार फिजियोथेरेपी प्रामाणिक चिकित्सा प्रणाली है जिसका उपयोग पीडियाट्रिक्स से लेकर जेरियाट्रिक्स तक कई क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह र्कािडयोवेस्कुलर रोग, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनेरी डिसीज (सीओपीडी), मधुमेह, ऑस्टोपायरोसिस, मोटापा और हाइपरटेंशन आदि के उपचार में अहम भूमिका निभा सकती है। समिति ने इस पर नाराजगी व्यक्त की है कि केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पास फिजियोथेरेपी शिक्षा और सार्वजनिक आरोग्य में इसकी भूमिका से जुड़ी कोई प्रामाणिक जानकारी ही नहीं है। समिति के अनुसार फिजियोथेरेपी सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं को एक नया आयाम प्रदान कर सकती है। समिति की राय है कि फिजियोथेरेपी को आर्थोपेडिक से विलग कर स्वतंत्र विषय के रूप में उभारना चाहिए। साथ ही प्रभावी फिजियोथेरेपी सेवाओं के लिए उपकरणों के अलावा उपचारात्मक प्रक्रिया के आधुनिकीकरण पर भी ध्यान देने की आवश्यकता को समिति ने रेखांकित किया है। पहली बार किसी संसदीय समिति ने यह सिफारिश की है कि अंग्रेजी दवाओं पर निर्भरता घटाने के लिए प्राथमिक उपचार के रूप में फिजियोथेरेपी विकल्प अपनाने के अधिकार दिए जाने चाहिए ताकि यह एक स्वतंत्र प्रणाली के रूप आकार ले सके।

कुछ राज्यों में फिजियोथेरेपी के जरिये प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराने पर कार्य शुरू हो गया है। इस दिशा में झारखंड, हरियाणा और छत्तीसगढ़ में फिजियोथेरेपी परिषदों का गठन कर राज्य में उपलब्ध फिजियोथेरपिस्ट का उपयोग सरकारी अस्पतालों में किया जा रहा है। हालांकि इसमें मेडिकल कमीशन या प्राकृतिक चिकित्सा कमीशन जैसी किसी केंद्रीय नियामक संस्था का अभी भी अभाव है। इस कारण यह आंकड़ा भी उपलब्ध नहीं कि भारत में कितने ऐसे विशेषज्ञ उपलब्ध है और उनकी जन आरोग्य में क्या भूमिका है। मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश सहित तमाम राज्यों में ऐसी परिषदों के गठन के लिए समय-समय पर आंदोलन होते रहते हैं। कुछ समय पूर्व नीति आयोग ने भी सामुदायिक चिकित्सा आधारित छह माह के एक विशिष्ट ब्रिज कोर्स के बाद प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर पदस्थापना की अनुमति प्रदान की थी। छत्तीसगढ़ सरकार ने हाल में आयुष्मान भारत हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर फिजियोथेरपिस्ट को भौतिक चिकित्सा अधिकारी के रूप में नियुक्त किया है। वैसे भी फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में पुनर्वास विज्ञान के साथ-साथ एलोपैथिक चिकित्सा के अधिकांश विषय एमबीबीएस स्तर तक पढ़ाए जाते हैं जो स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए पर्याप्त है।

भारत सरकार का कोई सांविधिक निकाय न होने के चलते भौतिक चिकित्सा की इस प्रभावशाली प्रणाली का वांछित लाभ नागरिकों को नही मिल पा रहा है। हालांकि छतीसगढ़, झारखंड और हरियाणा में बीते दिनों कानून बनाकर इस क्षेत्र को सरकारी नियमन के दायरे में लाया गया है, लेकिन सच्चाई यह है कि अखिल भारतीय स्तर पर एमएनसी या आयुष की तर्ज पर राष्ट्रीय भौतिक चिकित्सा आयोग की स्थापना भी की जानी चाहिए। नियामक तंत्र के अभाव में फर्जी भौतिक चिकित्सक भी देश भर में सक्रिय हैं। वैसे केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा हर जिले में राज्य सरकारों एवं एनजीओ के साथ मिलकर ‘जिला दिव्यांग पुनर्वास केंद्र’ संचालित किए जा रहे है। इनमें एक पद फिजियोथेरपिस्ट का भी होता है। हालांकि यह सुविधा जिला मुख्यालय पर ही है और यहां परामर्श भी केवल दिव्यांग जनों के लिए उपलब्ध कराया जाता है। बेहतर होगा छतीसगढ़ की तरह कस्बाई और ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर भी स्वास्थ्य अधिकारी की तरह इनकी नियुक्तियों पर विचार किया जाए। वहीं केंद्र सरकार के सभी स्वास्थ्य केंद्रों, रेलवे, खेल परिसरों, पीएसयू, ईएसआई, मेडिकल कॉलेजों के अलावा सभी बड़े निजी अस्पतालों में फिजियोथेरपिस्ट के पद रहते हैं जिनका वेतनमान द्वितीय श्रेणी के अधिकारी के समान है।

आजकल की भागमभाग भरी जीवन शैली में शारीरिक रुग्णता ने एलोपैथी दवाओं पर निर्भरता को अतिशय बढ़ाने का काम किया है। भौतिक चिकित्सा प्रणाली को लोकप्रिय बनाने से इस समस्या का समाधान संभव है। भारतीय योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा के बुनियादी अनुप्रयोग भी व्यायाम और शारीरिक संचेतना पर आधारित हैं। मोदी सरकार ने होम्योपैथी, आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा और नर्सिंग सेक्टर की आधुनिक आवश्यकताओं के दृष्टिगत अद्यतन बनाने के निर्णय लिए हैं तो भौतिक चिकित्सा को क्यों अनदेखा छोड़ दिया गया है? वह भी तब जब यह वैज्ञानिक और पारंपरिक दोनों स्तरों पर किफायती एवं प्रभावी प्रणाली है।


Date:08-02-21

आत्मनिर्भरता की तरफ बढ़ते कदम

अश्विनी कुमार चौबे , ( लेखक केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्यमंत्री )

वैश्विक महामारी कोरोना के बीच आम जनमानस के कल्याण के लिए प्रतिबद्ध नरेन्द्र मोदी सरकार ने वित्तीय वर्ष 2021-2022 का बजट देश के समक्ष रख दिया है। कोरोना से उपजी परिस्थितियों के बीच यह बजट हौसला प्रदान करने वाला है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बजट के बाद अपने वक्तव्य में इस बजट को आत्मविश्वास को जगाने वाला बजट बताया है।

आज के भारत की आवश्यकताओं को और भविष्य के आत्मनिर्भर भारत के निर्माण को मजबूत आधार देने वाले इस बजट को लेकर जाने-माने विशेषज्ञ अपनी राय सकारात्मक दे रहे हैं, लेकिन मूल बात यह है कि आत्मनिर्भर भारत के स्वप्न को साकार और स्वस्थ भारत को बनाने में यह बजट सहायक सिद्ध होगी। भारत सहित पूरे विश्व ने पिछले वर्ष कोरोना का भयावह दौर देखा है। इस पूरे संक्रमण काल के दौरान एक महत्त्वपूर्ण तथ्य रहा कि हमारे देश के मुकाबले तकनीक और स्वास्थ्य सुविधाओं में उन्नत देशों की स्थिति हमसे बुरी रही है। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमसे बेहतर हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर वाले देशों पर भी कोरोना कहर बनकर टूट पड़ा। वहीं हमारे देशवासियों के संयम और हमारी व्यवस्था ने भी प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में कोरोना का मुकाबला दृढ़ संकल्पित होकर किया। इस बजट में सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र को प्राथमिकता में रखा है। इस बजट के प्रस्ताव में जिन छह स्तंभों को बताया गया है, उसमें सबसे पहले स्वास्थ्य को रखा गया है और प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना की शुरुआत की गई है, जिसके लिए सरकार ने 64,180 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। गौरतलब है कि कोरोना वायरस का दुनिया के जिन चुनिंदा देशों ने टीका बनाया है, उसमें भारत अग्रणी भूमिका में है। स्वास्थ्य के क्षेत्र की जब हम बात करते हैं तो हमें भूलना नहीं चाहिए कि आयुष्मान जैसी योजनाएं देश के वंचित तबकों के कल्याणार्थ सुचारू रूप से जारी हैं। हमारे यहां देश के विभिन्न हिस्सों में विस्तरीय स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त नये एम्स और मेडिकल कॉलेज का निर्माण तेज गति से चल रहा है। प्रधानमंत्री जन-औषधि केंद्र के माध्यम से सस्ती दवाएं मिल रही हैं। इन सबका जिक्र इसलिए करना आवश्यक है क्योंकि हम स्वास्थ्य के क्षेत्र में जो अभूतपूर्व प्रगति कर रहे हैं, उसकी मजबूत बुनियाद रखना प्रधानमंत्री ने छह वर्ष पहले ही शुरू कर दिया था। इस बजट के प्रावधानों को देखते हुए मेरा ही नहीं अपितु देशवासियों को भी यह दृढ़ विश्वास हो रहा है कि आने वाले वर्षों में हमारा हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर विश्व में अग्रणी होगा। अब हम कोरोना के बाद के भारत को जब देखते हैं तो हमने यह तय किया है कि देश के स्वास्थ्य ढांचे को और भी मजबूती देनी है। गत वर्ष की तुलना में इस बार हमारी सरकार ने स्वास्थ्य के बजट में 137 फीसद का अभूतपूर्व इजाफा किया है। 94 हजार करोड़ के बजट को 2.23 लाख करोड़ तक निर्धारित किया गया है। बीमारियों की टेस्टिंग, रिपोर्टिग और मॉनिटरिंग की प्रणाली बनाने पर जोर दिया जाएगा। सरकार ने इस बजट के द्वारा एक संदेश दिया है कि आमजनता के स्वास्थ्य से जुड़े मामलों को लेकर वह कितनी संवेदनशील है। ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य की स्थिति और बेहतर करने के लिए करीब 18 हजार हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोले जाएंगे। अब गंभीर बिमारियों की चपेट में आना वाला व्यक्ति कहीं पर बिमारी को जाकर इलाज करा सकेगा, वहीं शहरी क्षेत्रों में 11 हजार से ज्यादा हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर खोले जाएंगे। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सद्प्रयास जारी है। इसलिए ‘प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत योजना’ के तहत देश भर के 602 जिलों में क्रिटिकल केयर हॉस्पिटल और 17 नये पब्लिक हेल्थ यूनिट खोले जाएंगे। इसके माध्यम से स्वास्थ्य का जो आधुनिक ढांचा तैयार होगा, उससे देश के अलग-अलग भागों में फैलने वाली बीमारियों पर नजर भी रखी जा सकती है और तत्काल नियंत्रित करने के उपाय भी किए जा सकेंगे।

जब कोरोना की शुरुआत भारत में हुई थी, तब एकमात्र नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी पुणो में था। इसको देखते हुए सरकार ने 4 क्षेत्रीय राष्ट्रीय विषाणु संस्थान की स्थापना करने जा रही है। डब्लूएचओ दक्षिण पूर्ण एशिया क्षेत्र के लिए एक क्षेत्रीय अनुसंधान प्लेटफार्म, एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य संस्थान की भी घोषणा की गई है। इस तरह देखें तो बजट में आत्मनिर्भर स्वस्थ भारत बनाने के सभी पहलुओं को रेखांकित किया गया है। सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया पर आधारित इस जन कल्याणकारी बजट के लिए प्रधानमंत्री मोदी और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के प्रयास अभिनंदनीय हैं।


Date:08-02-21

ग्लेशियर का टूटना

संपादकीय

उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही जितनी दुखद है, उतनी ही चिंताजनक भी। शुरुआती रिपोर्ट से पता चलता है कि नुकसान ज्यादा हुआ है। तबाही का समग्र आकलन आने वाले दिनों में होगा, लेकिन जो शुरुआती सूचनाएं प्राप्त हो रही हैं, उनसे पता चलता है कि सैकड़ों लोग लापता हो गए हैं। कितने बड़े इलाके को क्षति पहुंची है, इसका पता आने वाले एक-दो दिनों में ज्यादा बेहतर ढंग से चलेगा। इस हादसे के चलते अलकनंदा और धौली गंगा उफान पर हैं। पानी के तेज बहाव में मानव बस्तियों के बहने की आशंका है। जिन इलाकों पर असर पड़ सकता है, उन्हें खाली कराया जा रहा है। आने वाले दिनों में मौसम प्रतिकूल नहीं रहेगा, लेकिन जो हादसा हो चुका है, उसकी भरपाई कभी नहीं हो सकेगी। बड़ा सवाल है कि क्या मौसम विभाग ने इस हादसे की पूर्व सूचना दी थी। अगर ऐसे हादसों की पूर्व सूचना नहीं मिल सकती, तो फिर बचाव के उपाय क्या हैं? लोगों से सुरक्षित इलाकों में पहुंचने की अपील जारी है। इस आपदा में सौ से ज्यादा लोगों के मारे जाने की आशंका जताई जा रही है। प्रधानमंत्री अगर इस घटना की निगरानी कर रहे हैं, तो कोई आश्चर्य नहीं। सरकार की ओर से हर संभव मदद उन लोगों तक पहुंचनी चाहिए, जो इस हादसे से प्रभावित हैं।

वैज्ञानिक इस हादसे की पड़ताल करेंगे, लेकिन इस हादसे से जुड़ी कुछ बातें बहुत स्पष्ट हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ऐसे प्राकृतिक हादसों की आशंका पहले भी जताई गई थी, लेकिन यह अपने आप में अचरज की बात है कि जाड़े के मौसम में ग्लेशियर टूटा है। जब पहाड़ों पर कड़ाके की ठंड पड़ रही है, बर्फबारी का आलम है, तब ग्लेशियर का टूटना किसी गंभीर संकट का संकेत है।

हमें इस दुखद घड़ी में फिर एक बार प्रकृति के साथ हो रहे खिलवाड़ पर विचार करना चाहिए। यह बार-बार कहा जाता रहा है कि धरती गर्म हो रही है। ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन हमें चुनौती दे रहा है। हिमालय को वैसे भी बहुत सुरक्षित पर्वतों में नहीं गिना जाता। पिछले दशकों में यहां ग्लेशियर तेजी से पिघलते चले जा रहे हैं। नदियों के अस्तित्व पर सवाल खड़े होने लगे हैं।

इसमें कोई शक नहीं कि ग्लेशियर को पिघलने से रोकने के लिए जितनी कोशिश होनी चाहिए, नहीं हो पा रही है। इतना ही नहीं, पहाड़ों पर उत्खनन और कटाई का सिलसिला लगातार जारी है। पहाड़ों पर लगातार निर्माण और मूलभूत ढांचे, जैसे सड़क, सुविधा निर्माण से खतरा बढ़ता चला जा रहा है। बहुत दुर्गम जगहों पर मकान-भवन निर्माण से जोखिम का बढ़ना तय है। जब पहाड़ों पर सुविधा बढ़ रही है, तब वहां रहने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ रही है। हमने मैदानों का परिवेश बिगाड़ दिया है, तो लोग पहाड़ों पर बसने को लालायित हैं। इसका असर पहाड़ों पर साफ तौर पर दिखने लगा है। जहां पहाड़ों पर हरियाली हुआ करती थी, वहां कंक्रीट के जंगल नजर आने लगे हैं, नतीजा सामने है। समय-समय पर पहाड़ और ग्लेशियर हमें रुलाने लगे हैं। इस हादसे के बाद हमें विशेष रूप से पहाड़ों और प्रकृति के बारे में ईमानदारी से सोचने की शुरुआत करनी चाहिए। पर्यावरण रक्षा के नाम पर दिखावा अब छोड़ देना चाहिए। ग्लेशियर को बचाने के लिए जमीन पर उतर कर काम करना होगा, तभी हम ऐसे प्राकृतिक, लेकिन दर्दनाक हादसों से बचे रहेंगे।


Date:08-02-21

कैसे तय और दर्ज किया जाए गृह कार्यों का मोल

सौम्या कपूर मेहता, वरिष्ठ अर्थशास्त्री

जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने एक बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि वह बीमा राशि का निर्धारण करते हुए उस गृहिणी के उन तमाम अवैतनिक कार्यों को ध्यान में रखे, जो वह जीवित रहते करती थी। यह एक स्वागतयोग्य कदम था, लेकिन सवाल है कि हम महिलाओं के अवैतनिक कार्यों को कैसे मापेंगे? निश्चित रूप से महिलाओं द्वारा निभाई जाने वाली घरेलू और देखभाल संबंधी भूमिकाओं से मौद्रिक मूल्य को जोड़ा जा सकता है।

जब महिलाएं देखभाल या घरेलू कार्य के लिए समय निकालती हैं, तब किसी तरह के भुगतान से वंचित हो जाती हैं। साथ ही, घर के काम में लगने से सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों में उनकी भागीदारी भी बाधित होती है। उनके अवकाश का समय भी कम हो जाता है। इसके अलावा ऐसे प्रमाण हैं कि घरेलू जिम्मेदारियों के चलते महिलाओं को असंगठित क्षेत्र में कम-गुणवत्ता वाली नौकरियां मिलती हैं। अनेक अनुमान बताते हैं कि लगभग 94 प्रतिशत महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं। महिलाओं और लड़कियों द्वारा किए गए अवैतनिक कार्य मौलिक रूप से उनके जीवन में आए मौकों को जाया कर देते हैं।

हालांकि, महिलाओं को अवैतनिक कार्य के लिए क्षतिपूर्ति करने की दिशा में कम से कम पांच चुनौतियां हैं। पहली, घरेलू काम के लिए समझौते का क्या मूल्य है? एक विकल्प यह है कि ऐसे काम के लिए बाजार दर के हिसाब से मूल्य तय किया जाए। यहां चुनौती बड़ी है, उदाहरण के लिए, क्या हम एक मां को बच्चे की देखभाल के लिए बाजार दर से मजदूरी दे सकते हैं? देखभाल के अनेक पहलू हैं, जो मूल्यांकन के दौरान छूट सकते हैं।

दूसरी, जब समय-समय पर सर्वेक्षण किए जाते हैं, तब महिलाओं की अनेक घरेलू गतिविधियां दर्ज नहीं हो पाती हैं। खुद महिलाएं गृह कार्य को काम के रूप में नहीं लेती हैं (क्योंकि उन्हें इसके लिए भुगतान नहीं किया जाता)। तीसरी, महिलाएं अवैतनिक और भुगतान वाले कार्य साथ-साथ करती रहती हैं। एक महिला अपने बच्चे की देखभाल भी कर रही होती है और लगे हाथ मछली भी तैयार कर रही होती है, ताकि उसका पति हाट में बेच सके। सर्वेक्षण में जब पूछा जाता है, तब महिलाएं अपने दो तरह के कार्यों के बीच अंतर नहीं कर पाती हैं।

चौथी, गृह कार्य को एक महिला के लिए नौकरी घोषित करने में भी समस्या है। इससे गृहिणी की पहचान घरेलू कामगार के रूप में और पुरुषों की पहचान रोटी कमाने वाले के रूप में बनने का जोखिम है। आज यह महत्वपूर्ण नीतिगत चिंता है कि बहुत महिलाएं श्रम बल से बाहर हैं, ऐसे में, स्थिति सुधारने के लिए किसी भी पितृसत्तात्मक ढांचे से मदद नहीं मिल सकती।

पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे के आंकड़े बताते हैं कि भारत में एक चौथाई से भी कम महिलाएं काम के लिए उपलब्ध हैं या काम कर रही हैं। महामारी के बाद इसमें और गिरावट आई है। सवाल है कि अवैतनिक गृह कार्य की भरपाई कौन करे? एक दशक पहले यह मांग थी कि पति अपनी पत्नी को घर काम के लिए भुगतान करे। इस मांग को महिला और बाल विकास मंत्रालय ने अस्थिरता की वजह से नामंजूर कर दिया था। घर में पति से पत्नी को पैसे का हस्तांतरण आसान नहीं हो सकता। इसके लिए अधिक सावधानी से बनाई गई राज्य समर्थित नीति के बारे में सोचना पड़ सकता है।

तो क्या कर सकते हैं? पहला कदम यह हो कि घरेलू और देखभाल कार्य के लिए उचित मूल्य निर्धारण के तरीके सोचे जाएं। गृह कार्य में लगी महिलाओं के आंकड़े उपलब्ध हों। इससे विशेष रूप से महिलाओं के हित में श्रम बाजार की नीतियां बनाने में मदद मिलेगी। सरकार को भी गैर-बाजार हाउसहोल्ड अर्थव्यवस्था की गणना में मदद मिलेगी। ऐसे सर्वेक्षण और डाटा में निवेश की जरूरत पड़ेगी, ताकि श्रम बल को मजबूती मिले और महिलाओं के कार्य सबको दिखें। भारतीय महिलाओं पर देखभाल कार्य का भारी बोझ है और वे तब तक इससे मुक्त नहीं हो सकतीं, जब तक मातृत्व अधिकारों को सार्वजनिक रूप से सार्वभौमिक नहीं बनाया जाता। घरेलू कार्य के मुद्रीकरण से ज्यादा जरूरी है महिलाओं के घरेलू दायित्वों को साझा करना। उनके अधिकार व सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए यह महत्वपूर्ण है।