महिलाओं की आर्थिक भागीदारी का अभाव
Date:21-03-18 To Download Click Here.
अन्य देशों की तुलना में भारत में युवा वर्ग की अधिकता के आर्थिक लाभ की बात अक्सर की जा रही है। इस सकारात्मकता के बीच हमारे देश में चला आ रहा लैंगिक अंतर एक ऐसा गंभीर मुद्दा है, जिसके कारण हम एक राष्ट्र की दृष्टि से आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हुए हैं।
हमारे देश की लगभग आधी जनसंख्या यानी 48.5 प्रतिशत जनता महिलाओं की है। परन्तु विश्व बैंक के अनुसार इस जनसंख्या में 15 वर्ष से ऊपर का केवल 25 प्रतिशत कामकाजी है। 1991 में यह 34 प्रतिशत था, जो लगातार गिरता जा रहा है। चीन में यह 60 प्रतिशत है। अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन की महिला श्रमिक सूची के 131 देशों में भारत का स्थान 121वां है। भारत में कम महिलाओं के कामकाजी होने के अनेक कारण हैं।
- भारत का समाज एक सामंतवादी, संकीर्ण और लिंगभेद वाला समाज है। यहाँ पुरूष का स्थान बाहरी कामकाज और स्त्री का स्थान घरेलू कामकाज तक सीमित माना जाता है। बहुत से परिवारों में तो स्त्री का बाहर निकलकर काम करना शर्मनाक माना जाता है। इस बात का भी भय रहता है कि आर्थिक रूप से स्वतंत्र महिला घर पर राज करने लगेगी और किसी के दबाव में नहीं आएगी। महिलाओं के अंदर भी कामकाजी न होने की आदत को बल दिया जाता है। यहाँ तक कि शहरी और शिक्षित परिवारों में भी जीवन-स्तर में सुधार के साथ ही महिलाओं को घर पर ही रहने को प्राथमिकता दी जाती है।
- राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वेक्षण से इस बात का खुलासा होता है कि आधी से अधिक स्त्रियों या लड़कियों को अकेले कहीं आने-जाने की छूट नहीं है। ऐसे में महिलाओं के कामकाजी होने की बात सोची ही नहीं जा सकती।
- सुविधाजनक बुनियादी ढांचे का अभाव है। कामकाजी महिलाओं को कार्यस्थल तक पहुँचने के लिए ही कई बार अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक परिवहन की भारी कमी है।
- कृषि में आय की घटती संभावना के चलते गांव के लोग शहरों की ओर पलायन करते जा रहे हैं। इनमें से अधिकतर पुरूष ही अकेले पलायन करते हैं। स्त्रियों को बच्चों व बुजुर्गों की देखरेख के लिए घर पर ही छोड़ दिया जाता है।
- अधिकतर महिलाएं, बच्चों की देखरेख में बाहर जाकर काम नहीं कर पाती हैं। पालनागृह वगैरह की पर्याप्त सुविधा के अभाव में महिलाएं पूरे दिन काम नहीं कर पाती हैं। देर रात तक काम करने के लिए महिलाओं के अनुकूल वातावरण का अभाव है।
- कार्यस्थल पर महिलाओं को अनेक प्रकार से प्रताड़ित किया जाता है।
इस क्षेत्र में हमारे पड़ोसी देश, पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका बेहतर कर रहे हैं। इन देशों के कपडा उद्योग, अनेक महिलाओं को रोजगार देते हैं। भारत का सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग बहुत बड़ा है एवं अनेक शिक्षित महिलाओं को रोजगार देता है। परन्तु यहाँ के निर्माण उद्योग में निर्यात कंपनियों की कमी है, जो इस क्षेत्र में दक्ष महिलाओं को रोजगार दे सकें।
पिछले चार वर्षों में रोजगार के अवसरों में वैसे ही बहुत कमी हो रही है। इन स्थितियों में महिलाओं के लिए काम करने की उचित संभावना कैसे हो सकती है? हमें महिलाओं की भागीदारी केवल बोर्ड कक्षों में नहीं, वरन् दुकानों, फैक्टरियों और काम की हर जगह पर चाहिए। भारत की प्रगति में इसी से चार चाँद लगेंगे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित उदयन मुखर्जी के लेख पर आधारित।