भारत में डिजीटल मुद्रा-अन्तरण
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सरकार द्वारा किए गए 500 एवं 1000 रुपये के नोटों के विमुद्रीकरण के बाद बैंक और एटीएम की कतारों में खड़े लोग सरकार के इस फैसले के बारे में अच्छा-बुरा दोनों ही सोच रहे हैं। इंफोसिस के सह-संस्थापक और आधार कार्ड के निर्माता नंदन नीलकेणि के अनुसार ‘विमुद्रीकरण एक झटका जरूर है, लेकिन यह भारत की अर्थव्यवस्था का डिजटलीकरण कर देगा।इसी प्रकार नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत मानते हैं कि ‘भारत के इस कदम से 2024 तक पूरा भारत मोबाइल फोन के जरिए लेन-देन करने में सक्षम हो जाएगा। अगर हमारे तकनीकी विशेषज्ञ ही ऐसा मानते हैं, तो सकारात्मक दिशा में सोचा जा सकता है। यह सच भी है कि सरकार के इस कदम से बहुत से अच्छे परिवर्तन होंगे।
- विमुद्रीकरण के पहले से ही भारत में प्लास्टिक मनी या जिसे हम क्रेडिट या डेबिट कार्ड कहते हैं, का चलन बढ़ चुका था। आर बी आई ने भी इस बात की पुष्टि की है कि सन् 2015 के नवम्बर से लेकर सितम्बर 2016 तक कार्ड से लेन-देन में 30 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुईं। इसी प्रकार एम वालट या पीपीआई कार्ड का उपयोग भी बहुत बढ़ा है।
- दूसरे आज 25-30 करोड़ लोगों के पास मोबाइल फोन हैं। अप्रैल 2016 में पूूर्व रिजर्व बैंक गवर्नर राजन ने यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस की नींव रखी थी, जिसके प्रसार का समय अब आ गया है।
जहाँ परिवर्तन होते हैं, वहाँ चुनौतियां भी सामने होती हैं। ऐसा ही विमुद्रीकरण के दौर में चल रहा है। यू पी आई का लाभ उन लोगों को मिले, जिनके पास स्मार्ट फोन हैं। बाकी के भारतीयों का क्या होगा? इसके लिए सरकार ने आधार कार्ड उपलब्ध कराया है। माइक्रो ए टी एम और कैशलेस पेमेंट के लिए आधार कार्ड सहायक बनेगा।
दूसरी चुनौती के रूप में ए टी एम और कार्ड मशानों की उपलब्धता कम है। 1.2 अरब की आबादी वाले देश में मात्र 2.12 लाख ए टी एम मशीनें हैं। ऐसे में लोग अगर डिजीटल लेन-देन की तरफ जाने की कोशिश भी करें, तो अनियमित बिजली की सप्लाई एक चुनौती बन जाती है।तीसरे, भारत में इंटरनेट सुविधा पर्याप्त नहीं है। कुछ एक गांवों में 100 में से लगभग 13 लोगों के पास यह सुविधा है। उसमें भी बाधाएं आती रहती हैं।अगर विदेशों में डिजीटल लेन-देन को देखा जाए, तो उरुग्वे जैसा देश अपने व्यापारियों को इसके लिए प्रोत्साहन देता है। स्वीडन भी लगभग पूर्ण रूप से डिजीटल अर्थव्यवस्था वाला देश है। फिर भी वहाँ 20 प्रतिशत लेन-देन मुद्रा से ही किया जाता है।
भारत को भी डिजीटल लेन-देन को पूरी तरह से अपनाने में अभी समय लग सकता है। तात्कालिक राहत के लिए कागजी मुद्रा का प्रचलन पर्याप्त रखा जाए, तो बेहतर होगा।
‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में प्रकाशित नलिन मेहता के लेख पर आधारित।