भारत की डिजीटल नीति में सुधार का सही समय

Afeias
20 Jul 2020
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Date:20-07-20

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कोविड़-19 के प्रसार के साथ ही प्रत्यक्ष विदेशी निवेश घटता जा रहा है। यूनाइटेड नेशन्स कांफ्रेंस ऑन ट्रेड एण्ड् डेवलपमेंट ने हाल ही में वैश्विक निवेश रिपोर्ट जारी की है। रिपोर्ट के अनुसार विकासशील एशियाई देशों में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के 45% तक घटने की आशंका है।

संकट के इस दौर में डिजीटल सेवाओं का क्षेत्र सबसे अधिक मांग का क्षेत्र रहने वाला है। इस समय देश-विदेश में व्यापार के परंपरागत तरीकों पर मार पड़ी है। इन सबका विकल्प ई-कॉमर्स में ढूंढा जा रहा है। स्वास्थ्य सेवाएं हों या रिटेल व्यापार , सभी के लिए डिजीटल सेवाएं , अनिवार्य हो गई हैं।

यही कारण है कि महामारी के दौर में भी पूरे विश्व  में सबसे ज्यादा निवेश डिजीटल सेवा क्षेत्र में हुआ है। भारत में इस प्रकार के निवेश के लिए अनुकूल स्थितियां हैं। यहाँ की जनता में तकनीक का तेजी से प्रसार हो रहा है। साथ ही कई स्टार्ट अप हैं , जो तकनीकी नवाचार के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। सरकारी नीतियों पर निर्भर करता है कि उनको कितनी शीघ्रता से निवेश आकर्षित करने के अनुकूल बनाया जाए।

फिलहाल तीन ऐसे सुधारों की आवश्यकता है , जो डिजीटल सेवाओं के क्षेत्र में भारत को अग्रणी बना सकते हैं। (1) पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन विधेयक , 2) ई-कामर्स नीति तथा , (3) सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन अधिनियम।

इन तीनों ही विनियमन सुधारों का उद्देश्य , भारत के घरेलू बाजार को घरेलू कंपनियों के लिए सुरक्षित रखने , और डेटा पर सरकार की पकड़ बनाए रखने को प्राथमिकता देना है। चूंकि भारत स्वयं ही डेटा की गोपनीयता का बड़ा समर्थक रहा है , अपने लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा करना चाहता है , प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना चाहता है, और सूचना प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता का स्थान रखता है , इसलिए भारत को इन सुधारों पर सोच-समझ कर कदम उठाना होगा। उपरोक्त दृष्टिकोणों में सामंजस्य की मुश्किल को देखते हुए एक अनिश्चितता का वातावरण है।

फिर भी , अगर भारत डिजीटल सेवा के क्षेत्र में एक नए ढांचे के साथ अपने कदम बढ़ाता है , तो सरकार और इसके समस्त  हितधारकों को दीर्घकालीन प्रभावों पर विचार करके चलना चाहिए।

सन् 2022 में भारत को जी-20 देशों के सम्मेलन की मेजबानी करनी है। यह स्पष्ट  रूप से कहा जा सकता है कि कोविड़-19 के पश्चात् के इस सम्मेलन में डिजीटल प्रभामंडल के अंतर्गत अंतरराष्ट्री य सहयोग और दृष्टिकोण ही चर्चा के प्रमुख विषय होंगे। इसकी तैयारी के लिए भारत को अभी से तत्पर हो जाना चाहिए।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित मार्क लिन्सकॉट के लेख पर आधारित। 2 जुलाई , 2020

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