वियतनाम से सीखें

Afeias
17 Jul 2020
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Date:17-07-20

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कोविड-19 से पहले पूरे विश्व  की आर्थिक धुरी का केन्द्र चीन हुआ करता था। परन्तु अब अनेक कंपनियों ने चीन को पीछे छोड़कर ऐसे नए देशों की ओर रूख कर लिया है , जो उनको उत्कृष्ट बुनियादी ढांचा और सरल नियमन कानून उपलब्ध करा सकें। इन 56 कंपनियों में से वियतनाम को 26 कंपनियों ने चुना है। वहीं ताईवान को 11 , थाईलैण्ड को 8 और भारत को मात्र 3 कंपनियों ने चुना है।

भारत में मानव पूंजी की बहुतायत है। सरकार ने चीन से विस्थापित कंपनियों के लिए अपेक्षित सुधारों , बुनियादी ढांचों और नेतृत्व क्षमता का अभाव दिखाकर एक सुनहरे अवसर को खो दिया है। वहीं वियतनाम ने अपने सशक्त प्रबंधन के बल पर बाजी को जीत ली। यह सीखने वाली बात है कि कैसे कुल 9.7 करोड़ जनसंख्या वाले छोटे से देश ने अपनी कमियों को न्यूनतम करते हुए अपनी शक्तियों को बढ़ाया है।

इसे दो प्रकार से समझा जाना चाहिए –

  1. कोविड़ के विरूध्द जंग में वियतनाम के पास अपने पड़ोसी देशों की अपेक्षा बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं नहीं रहीं। यहाँ के प्रधानमंत्री ने जनवरी में ही कोरोना के विरूध्द नागरिकों को तैयार कर दिया था। चीन की सूचनाओं की प्रतीक्षा न करते हुए वियतनाम ने कई साइबर अटैक के व्दारा संक्रमण की सूचना एकत्र की , और तदनुरूप नीतियां तैयार कीं। ऐसे समय में एकल पार्टी व्दारा संचालित इस समस्त देश की राष्ट्रभक्ति ने अहम् भूमिका निभाई।
  1. वियतनाम ने दूसरी जीत आर्थिक जगत में प्राप्त की है। देश में विदेशी निवेश को आकृष्ट करने हेतु बुनियादी ढांचे की कमी की पूर्ति की जा रही है। इसका मुख्य उद्देश्य अपनी कंपनियों को ग्लोबल वैल्यू चेन के स्तर का बनाना भी है। इसके लिए वहाँ बड़ी-बड़ी नई योजनाओं की शुरूआत की गई है। इसके चलते 2016-18 के दौरान विश्व बैंक के लॉजिस्टिक परफार्मेंस इंडेक्स में वियतनाम का स्थान 64 से 39 पर आ गया। दूसरे , हाल ही में वियतनाम ने यूरोपियन यूनियन के साथ मुक्त व्यापार समझौते को अंजाम दिया है।

वहीं भारत ने यूरोपियन यूनियन और अमेरिका के साथ मुक्त‍ व्यापार समझौते को टाल रखा है। मुक्त व्यापार समझौते में दोनों देशों के बीच की आपूर्ति श्रृंखला को कर मुक्त बनाया जाता है। वियतनाम के लिए ऐसी आपूर्ति एक चुनौती है , क्योंकि वह अपने माल के लिए चीन पर निर्भर करता है। इसके बावजूद उसने इसे स्वीकार किया है।

भारत ने हाथ आए अवसरों को गंवा दिया है। इसका परिणाम यह होगा कि जिस प्रकार वर्तमान पीढ़ी चीन के उन्नत जीवन-स्तर से पिछड़ापन अनुभव करती है , अब हमारी भविष्य की पीढ़ी वियतनाम से वैसी ही हीनता अनुभव करेगी।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित रेणुका बिष्ट के लेख पर आधारित। 2 जुलाई , 2020

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