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बुनियाद को मजबूत करें
Date:17-02-20
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काफी समय से भारत में आकांक्षओं और वास्तविकता के बीच एक दरार बनी हुई है। हाल के कुछ वर्षों में हमने इसे बड़ा कर दिया है। 70 वर्षों से हम अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा नहीं दे पाए हैं, जिससे उनकी स्वतंत्र सोच, आत्मविश्वास और नवाचारी दृष्टिकोण विकसित हो सके। भारत में शिक्षा से जुड़े कुछ तथ्यों को जानना और उनके आधार पर उसका विश्लेषण करने की आवश्यकता है।
कुछ तथ्य –
- विज्ञान और गणित के अंतरराष्ट्रीय पीसा टेस्ट के 74 देशों में भारत का 73वां स्थान रहा।
- 2011 से 2015 के बीच सरकारी स्कूलों में पंजीकरण 1.1 करोड़ गिरा, जबकि निजी स्कूलों में 1.6 करोड़ बढ़ा है।
- इसके अनुसार 2020 तक हमें 1,30,000 अतिरिक्त निजी स्कूलों की जरूरत होगी।
इन स्कूलों के खुलने की संभावना नहीं के बराबर होगी, क्योंकि इसके लिए 30-45 प्रकार की अनुमति चाहिए। दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं, और रिश्वत भी देनी पड़ती है।
- निजी स्कूलों के न पनपने का दूसरा कारण शिक्षा का अधिकार अधिनियम है। सरकारी स्कूलों की विफलता को देखते हुए सरकार ने निजी स्कूलों में गरीब वर्ग के लिए 25% सीट रिजर्व कर दी। विडंबना यह है कि राज्य सरकारें इन सीटों के एवज में निजी स्कूलों को पर्याप्त धनराशि नहीं देती हैं। इसमें 75% बाकी बच्चों की फीस में वृद्धि की जाती है, जिसका बोझ माता-पिता नहीं उठा पाते। फीस को नियंत्रित रखने के लिए स्कूलों को खर्चें घटाने पड़ते हैं। इससे शिक्षा की गुणवत्ता पर लगातार खराब प्रभाव पड़ रहा है।
- स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकों का अनिवार्य किया जाना भी एक बड़ा कारण है, जिसने शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रभाव डाला है। स्कूलों में ये पुस्तकें समय पर नहीं पहुँच पाती हैं। इसके अलावा शिक्षाविदों को लगता है कि स्कूलों को पुस्तकों के चयन में स्वायत्तता न देकर, हम अपने देश के विद्यार्थियों को सीखने के लिए चल रही डिजीटल क्रांति से वंचित कर देंगे।
1980 में ही चीन ने नेशनल टैक्स बुक पॉलिसी को छोड दिया था, और वास्तविक जीवन रूचियों और अनुभवों से जुड़ी विभिन्न पुस्तकों के अध्ययन को बढ़ावा दिया था। एशिया के बहुत से देशों में इसी प्रणाली को अपनाया गया है।
- कई वर्षों से एकत्रित शिक्षा उपकर सरकार की समेकित निधि में व्यर्थ पड़ा हुआ है। दूसरी ओर, सार्वजनिक शिक्षा क्षेत्र बुनियादी ढांचे, शिक्षकों की कमी, गुणवत्ता में सुधार, पोषण एवं अन्य अभावों से जूझ रहा है।
सरकारी प्रयास –
- सरकार को चाहिए कि वह निजी स्कूलों की स्वायत्तता को बनाए रखे। देश की प्रतिभाओं को जन्म देने में निजी स्कूलों की बहुत भागीदारी है। उनके बने रहने के लिए लाभ की जरूरत है। तभी वे शिक्षा की गुणवत्ता को बनाए रख सकेंगे।
- निजी स्कूलों के नियमन के साथ ही सरकारी स्कूलों की स्थिति को सुधारा जाए। इसके लिए सरकार को निजी और सार्वजनिक क्षेत्र के मानदंडों को समान रखना होगा।
देश की उन्नति और विकास के लिए शिक्षा का क्षेत्र बुनियाद है। इसे मजबूत करना, सरकार का दायित्व है।
समाचार पत्रों पर आधारित।