बुनियाद को मजबूत करे सरकार

Afeias
01 Oct 2019
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Date:01-10-19

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भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1.2 करोड़ युवा रोजगार के लिए तैयार हो रहे हैं। संभवतः इसी के चलते सरकार ने 2030 तक भारत को 05 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था तक पहुँचाने का स्वप्न देख लिया है। समस्या हमारी शिक्षा व्यवस्था से जुड़ी है, जो इस स्वप्न की राह रोके खड़ी है। जब तक हम स्कूली स्तर पर सार्वभौमिक गुणवत्ता वाली शिक्षा मुहैया नहीं कराते हैं, तब तक भारत के विकास की गाथा पूरी नहीं हो सकती है।

कुछ तथ्य

  • पिछले दस वर्षों में, शिक्षा के अधिकार कानून के बाद छः से 14 वर्ष तक की उम्र के 26 करोड़ से अधिक बच्चों का स्कूलों में नामांकन हुआ।
  • स्कूलों में नामांकन मात्र से बच्चों के पढ़ने-लिखने की क्षमता में विकास हुआ हो, ऐसा जरूरी नहीं है।

2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार तीसरी कक्षा के केवल एक-चैथाई बच्चे ही कक्षा दो की पुस्तकेें पढ़ने और दो अंको वाले समीकरण करने में सक्षम थे।

राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण के अनुसार भी अपने प्रारंभिक वर्षों में बच्चे महत्वपूर्ण कौशल से लैस नहीं हो पा रहे हैं।

  • उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा व्यवस्था का लाभ तभी है, जब वह स्कूल पूरा करने वाले बच्चों में बुनियादी नींव को मजबूत कर दे।

ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के प्रादुर्भाव के साथ ही नई चुनौतियां आ खड़ी हुई हैं। अशिक्षित और अकुशल कार्यबल के साथ हम इसका मुकाबला नहीं कर सकते। प्राथमिक स्तर पर दी जाने वाली कमजोर शिक्षा के कारण उच्च शिक्षा और कौशल विकास में अनेक कठिनाइयाँ आती हैं।

  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति के मसौदे में बुनियादी साक्षरता और संख्या गणित को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया है। पढ़ने, लिखने और छोटे गुणा-भाग आदि को आवश्यक शर्त माना गया है। अगर हम इस स्तर को प्राप्त करने में असफल रहते हैं, तो जनसंख्या के एक बड़े भाग के लिए किए जाने वाले हमारे प्रयास व्यर्थ समझे जाएंगे।
  • शोध बताते हैं कि शिक्षा के प्रारंभिक वर्षों में कक्षा तीन एक महत्वपूर्ण मोड़ होता है। इस उम्र तक आते-आते बच्चों को पढ़ना आ जाना चाहिए, तभी उनमें आगे सीखने की समझ विकसित हो पाएगी। इस उम्र से आगे निकल जाने पर बच्चों को बुनियादी ज्ञान देना बहुत मुश्किल हो जाता है।

आंध्र प्रदेश में 40,000 बच्चों पर किया गया सर्वेक्षण बताता है कि कक्षा एक से पाँच तक के अधिकतर बच्चे, बुनियादी कौशल की कमी से पिछड़ते जा रहे हैं।

  • बुनियादी शिक्षा और कौशल की सबसे अधिक कमी गरीब परिवारों और परिवार में शिक्षा प्राप्त करने वाली पहली पीढ़ी होने वाले बच्चों में देखने को मिलती है। प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षक पाठ्यक्रम और आसानी से समझ जाने वाले बच्चों पर अधिक ध्यान देते हैं। इस सोच और पद्धति के कारण पीछे छूटे बच्चे और अधिक पीछे छूटते चले जाते हैं।
  • हमारे देश में गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान करना अत्यंत जटिल है। हमारे पास तमाम चीजों को प्राप्त करने के लिए संसाधन भी नहीं हैं।

इन सब कमियों को दूर करके एक प्रभावशाली शिक्षा व्यवस्था को चार स्तंभों पर खड़ा किया जा सकता है।

1.सरकार को बुनियादी शिक्षा पर पूरा ध्यान देना चाहिए। इसके लिए मुख्य कारणों पर ध्यान दिया जाना चाहिए। लिखने-पढ़ने की कुशलता तथा गणितीय योग्यता के लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास किया जाना चाहिए।

2.कक्षाओं में दी जाने वाली शिक्षा की कमी को दूर करना दूसरा स्तंभ है। इसके लिए एक समग्र दृष्टिकोण चाहिए। शिक्षा देने और सीखने के लिए जरूरी सामग्री, उपकरण, प्रशिक्षण और शिक्षकों को सहयोग आदि पर काम किया जाना है।

3.शिक्षकों के प्रशिक्षण की व्यवस्था करना अत्यंत आवश्यक है। तभी वे प्राथमिक स्तर पर प्रभावशाली तरीके से बच्चों में पढ़ने-लिखने और सीखने की समझ विकसित कर पाएंगे।

4.पूरे तंत्र में सुधार के लिए निरीक्षण और पैमाइश को बढ़ाना देकर सुधार किया जा सकता है।

पेरु में कक्षा 2 के छात्र से एक मिनट में 40 शब्द व कक्षा 3 के छात्र से 60 शब्द पढ़ने की अपेक्षा रखी जाती है। यह उनका गुणवत्ता जाँच का निश्चित पैमाना है।

वैश्विक नेतृत्व के लिए शिक्षा व्यवस्था में सुधार करना आवश्यक है। बुनियादी शिक्षा में सुधार करना समय की मांग है।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित आशीष धवन के लेख पर आधारित। 13 सितम्बर, 2019

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