बलात्कार को कैसे रोकें ?

Afeias
31 May 2018
A+ A-

Date:31-05-18

To Download Click Here.

बच्चों के साथ लगातार बढ़ती बलात्कार की घटनाओं को देखते हुए सरकार ने गत माह एक अध्यादेश जारी कर 12 वर्ष तक की लड़कियों से बलात्कार करने वालों के लिए मौत की सजा का विधान कर दिया है। इस अध्यादेश को लैंगिक समानता पर आधारित किया जाना था, क्योंकि लड़के भी बलात्कार का शिकार बनते हैं। परंतु ऐसा नहीं हुआ। फिर भी, हाल की कुछ ऐसी घटनाओं को उच्चतम न्यायालय ने ‘दुर्लभ‘ मानते हुए मृत्युदंड दिया है।

      भारत में कभी-कभी इस प्रकार के दण्ड दे दिए जाते रहे हैं। परंतु नए अध्यादेश में इस प्रकार का कोई प्रावधान नहीं है कि न्यायालय में दोष सिद्ध हुए बिना ही अपराधी को दण्ड दे दिया जाए। यहाँ न्यायालय में दोष सिद्ध होने का मामला ही बड़ा पेचीदा है, और अधिकांश अपराधी पुलिस-व्यवस्था की कमियों, बेतरतीब अभियोग एवं न्यायालय मे लंबित मामलों तथा पीडित एवं परिवारजनों द्वारा बलात्कार की रिपोर्ट न करने के कारण बच निकलते हैं।

      माना कि ऐसे मामलों की संख्या बढ़ रही है। इसे या तो यह मान लिया जाए कि बलात्कार के मामले बढ़ रहे है, या यह भी हो सकता है कि समाज का आत्मविश्वास बढ़ रहा हो। चाहे कुछ भी हो, भारत में इतने कम मामलों में दोषी का अपराध सिद्ध हो पाता है कि वह निराशाजनक है।

      बलात्कार के मामले चाहे वास्तव में बढ़ रहे हों या नहीं, लेकिन लोगों की जागरूकता से इनकी रिपोर्ट दर्ज की जाने लगी है, अब सरकार का दायित्व है कि इन मामलों में जल्द-से-जल्द न्याय दिलवाने की व्यवस्था करे।

      ऐसे तीन क्षेत्र हैं, जो त्वरित न्याय के लक्ष्य में मददगार सिद्ध हो सकते हैं। (1) न्यायिक (2) अभियोजन पक्ष में सुधार और (3) पुलिस की भूमिका। यहाँ हम पुलिस की भूमिका से जुडे़ कुछ पहलुओं पर चर्चा कर रहे हैं।

  • हाल ही में कॉमलवेल्थ मानवाधिकार अध्ययन में इस बात को ऊजागर किया गया है कि भारत में 2006 में उच्चतम न्यायालय ने पुलिस सुधार के लिए सात दिशानिर्देश दिए हैं।

          कर्मचारी चयन आयोग का गठन करने वाले राज्यों ने भी, इसकी निर्धारित बाध्यताओं का ध्यान नहीं रखा है। ओड़ीशा और जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों ने कर्मचारी चयन आयोग का गठन ही नहीं किया है। इसके कारण यहाँ 2014 और 2016 में बच्चों के विरूद्ध अपराध के मामले बहुत बढ़े हैं।

  • इस मामले में ब्रिटेन का उदाहरण लिया जा सकता है। अपने 2002 के पुलिस सुधार अधिनियम के द्वारा उन्होंने शक्तियों को गृह विभाग, स्थानीय पुलिस और फोर्स के मुख्य कांस्टेबल में बांट दिया है।
  • कनाडा के पुलिस सुधारों में एक तो प्रत्येक विभाग का अपना पुलिस बल होना है और दूसरा, सुपरवाइजरी बोर्ड और आयोग में नागरिकों को शामिल किया जाना है। ऐसा करके पुलिस को राजनीतिज्ञों की भेद भावपूर्ण नीति से बचाया जा सकेगा। साथ ही नागरिकों की मदद से पुलिस विभाग में सुधार लाया जा सकेगा।

      भारत में इतने पुलिस सुधार तो किए ही जा सकते हैं। माना कि संयुक्त राष्ट्र की सिफारिशों के अनुसार प्रति एक लाख की जनसंख्या पर 222 पुलिस कर्मचारियों की अनिवार्यता को बनाए रखना भारत के लिए खर्चीला हो सकता है, लेकिन ऐसा निवेश सरकार और समाज, दोनों के लिए ही लाभदायक हो सकता है। फिलहाल कम खर्चीले प्रावधानों को अपनाकर भी पुलिस प्रशासन को बेहतर बनाया जा सकता है।

‘द टाइम्स आफ इंडिया‘ में प्रकाशित वैजयंत जय पंडा के लेख पर आधारित। 9 मई, 2018