चीनी आक्रमकता का जवाब आर्थिक विरोध से न दिया जाए

Afeias
28 Jul 2020
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Date:28-07-20

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विगत दिनों चीन से चल रहे विवाद ने देशवासियों के मन में भी बदले की भावना को प्रबल कर दिया है। सरकार ने चीन के 59 एप पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसके साथ ही जनता भी चीनी सामान के बहिष्कार , चीनी खाद्य पदार्थों के विरोध के लिए तैयार खड़ी है। भारत के जन-जन में व्याप्त ऐसे विरोध की भावना प्रतीकात्मक हो सकती है , परन्तु यथार्थ के धरातल पर देखें , तो यह न केवल निरर्थक है , बल्कि देश को हानि पहुँचा सकती है।

  • आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए जो ताकत होनी चाहिए , वह भारत में नहीं है। अमेरिका का ईरान की अर्थव्यवस्था को हानि पहुँचाना ; भारत-चीन मामले से बिल्कुल अलग है। चीन से भारतीय आयात कुल चीनी निर्यात का 5% से भी कम है। चीन को किया जाने वाला भारतीय निर्यात इस आयात का एक छोटा-सा हिस्सा है।
  • भारत व्दारा चीन को निर्यात की जाने वाली कोई भी वस्तु आवश्यक या सामरिक प्रकृति की नहीं है। इसलिए चीन भारत के किसी भी आर्थिक हथियार के प्रभाव को आसानी से पचा सकता है।
  • कहीं अगर चीन ने भारत को निर्यात की जाने वाली सामग्री को रोक दिया , तो भारत में हलचल मच जाएगी। वास्तव में , चीन फिलहाल भारत को निर्यात करने वाले देशों की सूची में सबसे ऊपर है। हम उपभोक्ता ड्यूरेबल्स ऑटो-मोबाइल पार्टस् से लेकर दवाओं के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल आयात करते हैं। अगर इनका आयात रोक दिया गया तो ये सामान अधिक कीमत पर कोरिया या जापान से लेने पड़ेंगे। इस आयात से भारत में पेरासिटामोल और कई जीवन रक्षक एंटीबायोटिक्स बनाई जाती हैं।
  • उत्पादन की लागत बढ़ने की भी पूरी आशंका रहेगी। आपूर्ति श्रृंखला के ठप पड़ने से पूरी व्यवस्था तहस-नहस हो सकती है।

एक आत्मर्भर अर्थव्य़वस्था , बिना किसी बाहरी खतरे के अपनी आपूर्ति श्रृंखला को सुचारू रूप से चलाने का दूसरा नाम है। वस्तुाओं का आयात; सामान्य  रूप से उनकी कम कीमत या उच्च गुणवत्ता के कारण से किया जाता है। अत: इन मानदण्डों पर खरे उतरे बिना अगर हम आयात पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करते हैं, तो हमें या तो कीमत ज्यादा चुकानी पड़ेगी या गुणवत्ता से समझौता करना पड़ेगा।

व्यावहारिक स्तर पर देखें , तो कोई भी देश पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन सकता। उपभोग की जाने वाली सभी वस्तुओं का देश में ही उत्पादन हो पाना असंभव है। इसका सबसे अच्छा उपाय यही है कि हम अपनी अर्थव्यवस्था को सक्षम और विश्वस्तरीय बनाएं।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित भास्कर दत्ता के लेख पर आधारित। 11 जुलाई , 2020