क्रोध एवं क्षमा

Afeias
13 Feb 2018
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Date:13-02-18

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  • आज हम क्रोध के युग में जी रहे हैं। राष्ट्रवादी राजनीति ने पूरे विश्व के साथ-साथ भारत को भी लपेटे में ले लिया है। हम आए दिन अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा से उपजी हिंसा, और राष्ट्रवादिता के विषाक्त स्वरूप से जूझ रहे हैं। न केवल दक्षिणपंथी खफा हैं, बल्कि विशिष्ट दर्जा छिन जाने से वामपंथियों का मानसिक स्वास्थ्य भी डगमगा गया है। दक्षिण चरमपंथियों द्वारा की जाने वाली हिंसा की तुलना कुछ-कुछ उदारवादियों के उस दंभ से की जा सकती है, जब वे सहिष्णुता के नाम पर अपने से भिन्न विचार रखने वालों के प्रति असहिष्णु हो जाया करते हैं।
  • आज का भारत परेशान और असंतुष्ट है। बुद्धिजीवी वर्ग को ऐसा लगता है कि हमारे प्रधानमंत्री भारत को हिंदुओं के पाकिस्तान में तब्दील करने की कोशिश कर रहे हैं। हिंदू इस बात से नाराज हैं कि उनको हिंदू होने पर शर्मसार होना पड़ रहा है। दूसरी ओर हिंदुत्व के आह्वान के कारण मुस्लिमों में असुरक्षा की भावना है। दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों में इसलिए रोष है, क्योंकि वे बीजेपी के उच्च वर्णीय एजेंडे से अपने को उपेक्षित और अपमानित महसूस करते हैं। मध्यम वर्ग का क्रोध सरकार की नीतियों को लेकर है, जिसके कारण हम पूर्वी एवं दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों से पिछड गए हैं। जिनके पास कुछ नहीं है, वे इसलिए क्रोधित हैं, क्योंकि मोदी ने अपने वायदे के अनुसार उन्हें नौकरी और अच्छे दिन नहीं दिए। इन सब प्रकार के क्रोध का एक बना बनाया अस्त्र अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए चलाए जा रहे पाटीदार, जाट, गुज्जर और असम के अहोम जाति के आंदोलनों में दिखाई देता है।
  • क्रोध में बदले की भावना अंतर्निहित होती है; एक ऐसी भावना, जो गलत करने वाले को कष्ट देने से जुडी होती है। ऐसी भावना बहुत ही तर्कहीन है। कष्ट देने से कष्ट बढ़ता ही है। मार्था नुस्बाम ने अपनी नई पुस्तक में क्रोध और क्षमा की ही बात कही है। क्रोध का अंत तभी हो सकता है, जब उसके खत्म होने तक उस पर हँसा जाए, या दया भाव से पूर्ण महात्मा गाँधी, मार्टिन लूथर किंग या नेल्सन मंडेला जैसा कोई नेता मिल जाए, जो लोगों को क्षमा के महत्व का पाठ पढ़ा सके। नुस्बाम यह भी कहती हैं कि क्रोध पर काबू पाना न केवल हमारी मानवीयता, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य का भी परिचायक बनता है।
  • भारत जैसे महत्वाकांक्षी समाज में राजनैतिक गुस्से का लाभ वोट देने की हमारी मजबूरी के रूप में सामने आता है। लेकिन इस क्रोध की राजनीति को रास्ते पर लाने का क्या तरीका हो सकता है ? महाभारत में युधिष्ठिर ने इसका उत्तर क्षमा दिया था। अतः आस्तिकों को न केवल अन्य धर्म के श्रद्धालुओं बल्कि नास्तिकों के प्रति भी सहिष्णु होना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता के पक्षधर नास्तिकों को, धार्मिक जनता को दोषी करार देने और भारत की राजनीति को मुस्लिमों के प्रति हिंदुओं की घृणा के चश्में से देखना बंद करना चाहिए। हिंदुओं से अनुचित व्यवहार करके वे असंतोष को ही बढ़ावा देते हैं, और एक प्रकार से हिंदुओं में हिंदुत्व की भावना को और प्रबल कर देते हैं।
  • प्रमुख बात यह है कि हर किसी को अपने जीवन-दर्शन को ही सर्वश्रेष्ठ मानने के भ्रम को तोड़ना होगा। सरकार को चाहिए कि वह किसी भी सांप्रदायिक घटना के प्रति असहिष्णु रहते हुए, रोजगार के अवसर बढ़ाने पर ध्यान दे।क्रोध के नियंत्रण के बारे में बौद्ध धर्म से शिक्षा लेनी चाहिए। म्यांमार जैसा बौद्ध देश भी रोहिंग्याओं के प्रति क्रोधित है। परंतु वह बुद्ध के इस ब्रह्य वाक्य को अपनी नीति का हिस्सा बनाकर चलता है कि ‘आप अपने क्रोध के लिए चाहे दंडित न भी किए जाएं, तब भी आपका क्रोध ही आपको दंड दे देगा।‘

टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित गुरचरण दास के लेख पर आधारित।

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