कुपोषण से जुड़ी विडंबना
Date:06-08-19 To Download Click Here.
भारत सरकार और संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम की सहभागिता से भारत की खाद्य सुरक्षा और पोषण पर तैयार की गई 2019 की रिपोर्ट, भारत के कई क्षेत्रों में भुखमरी और कुपोषण की भयावह तस्वीर दिखाती है। इस रिपोर्ट से अनेक नैतिक प्रश्न खड़े हो जाते हैं कि आखिर आर्थिक विकास की गति इतनी तेज होने, गरीबी में कमी आने, निर्यात के लिए अथाह खाद्य सामग्री होने और पोषण पर अनेक सरकारी कार्यक्रम चलाए जाने के बावजूद भी हम कहाँ खड़े हैं।
रिपोर्ट बताती है कि पोषण और गरीबी की समस्या पीढ़ी दर पीढ़ी चलती चली जाती है। भुखमरी और कुपोषण का शिकार महिलाएं औसत से कम वजन , बौने और दिमागी रूप से कमजोर बच्चों को जन्म देती हैं। ऐसे बच्चे सामान्य मानवीय क्षमता के अनुरूप आउटपुट नहीं दे पाते हैं। इसके चलते वे गरीबी और अवसरों की कमी से आजीवन जूझते रहते हैं।
रिपोर्ट में कोई नई बात नहीं बताई गई है, क्योंकि भारत एक लंबे समय से कुपोषित बच्चों का बोझ लिए चला आ रहा है। यद्यपि 2005-06 से 2015-16 के बीच कुपोषण, कम वजन और रक्ताल्पता के मामलों में कमी आई है, परन्तु यह न्यूनतम है।
सरकारी योजनाएं और उनकी वास्तविकता
सरकार ने बौनेपन की समस्या से निपटने के लिए पोषण अभियान चलाया है। इसके अंतर्गत प्रतिवर्ष बौनेपन में 2 प्रतिशत की कमी लाते हुए 2022 तक 25 प्रतिशत की कमी करने का लक्ष्य रखा गया है। इस न्यूनतम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वर्तमान वार्षिक कमी की दर को लगभग दो गुना करने की जरूरत है।
इस अभियान की शुरूआत के एक वर्ष बाद भी इस हेतु आवंटित राशि का मात्र 16 प्रतिशत उपयोग में लाया जा सका था।
इस वर्ष मार्च तक प्रत्येक राज्य के एक जिले में फोर्टीफाइड चावल और दूध का वितरण प्रारंभ होना था, जो नहीं हुआ है। माँ और बच्चों के लिए पोषक खाद्य सामग्री का वितरण आंगनबाड़ियों के माध्यम से किया जाता है। परन्तु कुपोषण के सबसे ज्यादा मामलों वाले बिहार में आंगनबाड़ी चलाना ही मुश्किल हो रहा है। ऐसे में पोषण की सुध कौन लेगा?
कारण क्या हैं?
- झारखंड, मध्यप्रदेश, बिहार, ओडिशा, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे कुछ राज्यों में बच्चों के कुपोषण और कम वजन की समस्या सबसे ज्यादा है।
- ऐसा लगता है कि पुराने समय में सामाजिक रूप से बहिष्कृत कुछ विशेष जातियों में इस प्रकार की संभावना अधिक होती है। अनुसूचित जाति-जनजाति के 40 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे बौनेपन से ग्रस्त हैं।
अन्य पिछड़ी जातियों के भी लगभग इतने ही बच्चे बौने हैं। इन सभी वर्गों की माताओं में पोषण की कमी होना बच्चों के बौनेपन, कम वजन और सीखने की क्षमता में कमी का मुख्य कारण है।
- प्रमुख अर्थशास्त्री अमत्र्य सेन का मानना है कि भुखमरी का मुख्य कारण खाद्यान्न की कमी नहीं है, बल्कि इसकी प्राप्ति में असमानता होना है।
गरीबों और वंचितों के लिए खाद्यान्न की उपलब्धता में अनेक सामाजिक, प्रशासनिक और आर्थिक रोड़े आते हैं। इसे हम राज्य सरकार, जिला या स्थानीय प्रशासन की लापरवाही या उपेक्षा का नतीजा कह सकते हैं। वे गरीबों और वंचितों को बराबरी का नागरिक ही नहीं समझते। न ही उन्हें गरीबी से बाहर निकालना चाहते हैं।
देश की जनसंख्या का 2/5वां भाग बहुत निर्धन है। इसे अन्य नागरिकों की तरह की कोई सुविधाएं प्राप्त नहीं हैं। समाज का एक वर्ग अति आधुनिक आर्थिक वातावरण में रह रहा है, तो दूसरा अगले दिन के सूरज तक जीवित रहने के लिए भोजन जुटाने का संघर्ष कर रहा है। ऐसी विषमता के साथ क्या हम 2024 तक पाँच खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बन सकते हैं?
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित थॉमस अब्राहम् के लेख पर आधारित। 10 जुलाई, 2019