बढ़ते तापमान को शांत कैसे करें ?

Afeias
07 Aug 2019
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Date:07-08-19

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पेरिस जलवायु परिवर्तन सम्मेलन 2015 में शामिल प्रत्येक देश ने अपने स्तर और अपने तरीके से जलवायु से जुड़ी समस्याओं के समाधान के प्रयास का संकल्प लिया था। इसे ही बाद में नेशनली डिटर माइंड कांट्रीब्यूशन्स (एन डी एम एस) कहा गया।

भारत ने भी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने और उनका शमन करने का वचन दिया है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के अनुकूल जन-जीवन को अभ्यस्त बनाने हेतु विभिन्न उपायों पर काम करने की भी हामी भरी है। ये ऐसे उपाय हैं, जिन पर काम करके जलवायु अनुकूल धारणीय विकास किया जा सकेगा।

इनमें पहला काम तो 2030 तक ऊर्जा के स्रोतों के रूप में गैर-जीवाश्म ईंधन की खोज करके उसे व्यवहार में लाना है। और दूसरा काम 2030 तक 2.5 से 3 अरब टन कार्बन डाय ऑक्साइड के अवशोषण हेतु अतिरिक्त वनीकरण करना है।

प्रश्न उठता है कि कार्बन अवशोषण के लक्ष्य को कैसे पाया जाये।

भारत वन संरक्षण की एक रिपोर्ट बताती है कि वन और हरित क्षेत्र में क्रमशः बढ़ोत्तरी हो रही है। एन डी सी के अतिरिक्त लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बेकार पड़ी भूमि का वनीकरण; हरित पट्टी का विकास, कृषि-वानिकी, रेल्वे, नहरों, सड़कों और नदियों के किनारे पौधारोपण तथा शहरों के हरित क्षेत्र को बनाए रखना होगा।

इसमें से तीन-चैथाई बढ़ोत्तरी वनों की सुरक्षा और बेकार भूमि पर वनीकरण करके की जा सकती है। बिगड़े और खुले पड़े वनों को बहाल करने की प्राथमिकता से भी बहुत कुछ संभाला जा सकता है।

प्राकृतिक वनों की उपयोगिता

एक ताजा अध्ययन के अनुसार वायुमंडल की कार्बन को पेड़ों, वनस्पतियों और मृदा में अवशोषित करके वातावरण को शुद्ध बना लेना सबसे सुरक्षित तरीका है। इसके अलावा वनों से जल की गुणवत्ता सुधर सकती है, मृदा क्षरण में कमी आ सकती है, जैव विविधता की रक्षा हो सकती है और रोजगार के नए अवसर भी प्राप्त हो सकते हैं। अध्ययन करने वालों ने इस तथ्य का भी खुलासा किया है कि पड़ती भूमि को वन की तरह विकसित करने से पौधारोपण के लिए भूमि के इस्तेमाल की तुलना में 42 गुणा अधिक कार्बन, वन अवशोषित कर सकते हैं।

एक अन्य अध्ययन बताता है कि पूरे विश्व में 0.9 अरब हेक्टेयर की कैनोपी को बढ़ाकर ग्रीन गैस उत्सर्जन के 2/3 प्रभाव को कम किया जा सकता है।

वनों के उद्धार से प्राप्ति

अध्ययनों से यह तथ्य उजागर होता है कि केवल वनों को ठीक करने से जलवायु परिवर्तन पर अपेक्षित प्रभाव नहीं पड़ सकता। इसके लिए वनों के प्रकार भी महत्व रखते हैं। इसके लिए वनों का प्राकृतिक पुनरूत्थान ही सर्वोत्तम तरीका है। भारत समेत अनेक देशों में बड़े स्तर पर वृक्षारोपण के ऐसे मोनो कल्चर प्रस्तावित किए जा रहे हैं, जो बहुत कम कार्बन अवशोषित करते हैं। जब ये काटे जाते हैं, तब इनकी लकड़ी के जलने से कार्बन फैलता है। वृक्षारोपण के लिए चुने गए कुछ पौधे इस प्रकार के हैं, जो जलवाही स्तर को प्रभावित करते हैं। इनका कोई लाभ नहीं होता।

अगर जलवायु परिवर्तन को वाकई नियंत्रित करना है, तो तीन बातों का ध्यान रखना होगा।

  1. वनों की कटाई को रोकना होगा।
  2. बिगड़े और खुले वनों के अलावा वनीकरण के लिए चुने हुई पड़ती भूमि को पूरी तरह से प्राकृतिक वनीकरण और कृषि वानिकी के लिए छोड़ना होगा।
  3. स्थानीय लोगों की मदद से पेड़ों के स्थानीय प्रकार से ही वनीकरण को संभव बनाया जाना चाहिए।

प्राकृतिक वनों के उद्धार के बाद उनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है। भारत में स्थानीय समुदायों द्वारा वनों के संरक्षण का कार्यभार बखूबी किया जाता रहा है। इस परंपरा को बनाए रखा जाना चाहिए।, बल्कि इसका विस्तार जलवायु, पर्यावरण और सामाजिक न्याय के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भी किया जाना चाहिए।

‘द हिन्दू में प्रकाशित सुजाता बिरावन के लेख पर आधारित। 11 जुलाई 2019

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