किसानों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन?
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देश में किसानों की स्थिति लगातार गिरती जा रही है। पिछले 20 वर्षों में लगभग तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है। यही कारण है कि आज जगह-जगह किसानों के उग्र आंदोलन छेड़े जा रहे हैं।
आखिर किसानों की दुर्दशा के कारण क्या हैं?
- इसका मुख्य कारण हरित क्रांति और उससे जुड़ी नीतियों को माना जा सकता है। हरित क्रांति ने कृषि की दिशा को रासायनिक खाद, कीटनाशक, बड़े बांधों पर निर्भरता एवं अन्य सिंचाई परियोजनाओं की ओर मोड़ दिया। इन सब प्रयासों से बम्पर पैदावार होने लगी। यही कारण है कि इस काल को ‘‘हरित क्रांति’’ का नाम दिया गया। इस दौरान अनेक संकर बीजों की किस्में आने लगीं।
- रासायनिक उर्वरक और संकर बीजों की सहायता से उगने वाली फसल में लगने वाले कीड़े कीटनाशक-प्रतिरोधी थे। इन्हें रोकने के लिए कीटनाशकों का अधिक प्रयोग होने लगा। उच्च क्षमता वाले कीटनाशकों के प्रयोग से पैदावार में एक तरह का जहर घुलने लगा। इसे छिड़कने वाले किसानों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ने लगा। कीटनाशकों के कारण किसान का खर्च बढ़ गया। दूसरी ओर, भूमि की उर्वरता में कमी आई। इन कीटनाशक में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी थी और ये मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं को भी खत्म करने लगे।
- नहरों से सिंचाई के कारण जल-भराव की समस्या आने लगी। इसके कारण भूमि का कुछ भाग बेकार होने लगा। जहाँ नहरों से सिंचाई नहीं हो पाती थी, वहाँ भूमिगत ट्यूबवेल लगाने से जल स्तर कम होता गया।
- बड़े-बड़े बांधों के निर्माण को भारत की कृषि के लिए वरदान बताया गया। इसी तर्ज पर गुजरात में सरदार सरोवर परियोजना लाई गई। इस परियोजना में गुजरात के पिछले 50 वर्षों के सिंचाई बजट का 90 प्रतिशत खप गया और अब यह मात्र 2 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई कर पा रहा है। अनुमानित भूमि का यह महज 10 प्रतिशत सिंचित कर रहा है।
- अगर वर्षा जल की हार्वेस्टिंग में इस परियोजना में लगाई गई राशि का आधा भाग भी खर्च किया जाता, तो गुजरात की कृषि भूमि के हर इंच की सिंचाई हो सकती थी।
- वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के कारण बाढ़ और सूखे की समस्या बढ़ती जा रही है।
- सरकार ने केवल चावल और गेहूं पर ही न्यूनतम समर्थन मूल्य निश्चित कर रखा है। अन्य फसलों पर यह निश्चित नहीं होता।
स्वामीनाथन समिति ने इसे सभी फसलों के लिए निश्चित किए जाने की सिफारिश की थी। साथ ही इसे किसानों की कुल औसत लागत से 50 प्रतिशत अधिक दिए जाने की बात कही थी। वर्तमान सरकार ने इसे लागू नहीं किया है। बल्कि मनरेगा एवं अन्य योजनाओं की निधि में भी कटौती कर दी है।ऋण संबंधी छूट की घोषणाओं के बाद भी पूर्ण रूप से यह नहीं दिया जाता। सूखे या बाढ़ की चपेट में आई फसलों का हर्जाना नहीं दिया जाता।
दरअसल, ऋण संबंधी छूट वगैरह से कोई स्थायी परिवर्तन नहीं होने वाला। पूरी कृषि नीति को ही बदलने की जरूरत है। हमें जैव खेती, रेन वाटर हार्वेस्टिंग, माइक्रो जल सिंचाई, रासायनिक खाद के बजाय जैव-उर्वरक की ओर बढ़ने की आवश्यकता है। इनसे कीटनाशकों की जरूरत कम हो जाएगी।भारत में आज भी 50 प्रतिशत जनता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है। अगर हमने जल्द ही कोई कदम नहीं उठाया, तो हम अन्न-संकट का सामना करेंगे।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित प्रशांत भूषण के लेख पर आधारित।