महाराष्ट्र का सामाजिक बहिष्कार कानून

Afeias
01 Aug 2017
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Date:01-08-17

 

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हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने किसी भी प्रकार के सामाजिक बहिष्कार को रोकने के लिए अधिनियम पर राष्ट्रपति की मुहर प्राप्त कर ली है। आधुनिक प्रजातंत्र में सरकार और नागरिकों के मध्य एक तरह का सामाजिक समझौता होता है। इसलिए दंड का अधिकार भी सरकार और नागरिक के बीच का मामला होना चाहिए। ऐसा मानते हुए महाराष्ट्र सरकार ने जाति पंचायतों या गविक द्वारा समाज के किसी व्यक्ति पर किए जाने वाले अत्याचारों पर रोक लगा दी है।

महाराष्ट्र सरकार के वर्तमान कानून में पहले से मौजूद कानूनों की उन दरारों को भी बंद करने का ध्यान रखा गया है, जिनके सहारे समाज के अत्याचारी लोग अपराध करके भी बच जाया करते थे।

  • यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी घटना की रिपोर्ट फाइल होने के छः माह के भीतर ही उस पर कार्यवाही पूरी हो जाए।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत उन लोगों को दंड देने का प्रावधान है, जो किसी व्यक्ति को पूजा स्थल से दूर रखने का प्रयत्न करते हैं, किसी व्यवसाय को करने से रोकते हैं, वेशभूषा पर प्रतिबंध लगाते हैं या किसी के सामाजिक व्यवहार पर चोट करते हैं। कुल-मिलाकर यह कानून किसी समुदाय विशेष से जुड़े व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करता है। इस कानून में जुर्माने और जेल के रूप में दंड दिए जाने का प्रावधान है।
  • इस कानून में अल्पसंख्यकों या समुदाय की पवित्रता के नाम पर खानपान या वेशभूषा पर होने वाले अत्याचारों से निपटने के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं हैं।

भारत के इतिहास में सन् 1949 में भी धर्म से बहिष्कृत करने के खिलाफ कानून बनाया गया था। परन्तु 1962 में दाउदी बोहरा समाज के विरोध के बाद इसे खत्म कर दिया गया था। संविधान का अनुच्छेद 17 एवं नागरिक अधिकार सुरक्षा अधिनियम भी इसी से संबंद्ध हैं। हालांकि संविधान ने प्रत्येक नागरिक को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दे रखा है, परन्तु किसी एक सामाजिक समूह के द्वारा इसे आसानी से दबा दिया जाता है। सामाजिक अन्याय, धर्म-निरपेक्षता, स्त्री अधिकार एवं सामाजिक स्थानों पर प्रवेश के अधिकार पर होने वाली बहसों में व्यक्तिगत सोच की जगह आरोपित व्यक्तित्व बोलता दिखाई पड़ता है। महाराष्ट्र सरकार को अब आगे बढ़कर इस प्रकार के सामूहिक संभाषणों के सुर को बदलने का भी प्रयत्न करना चाहिए। गौरक्षा और सामाजिक संवेदनाओं के नाम पर किसी के खानपान पर प्रतिबंध लगाने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए अगला कदम उठाया जाना चाहिए।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित।

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