इतिहास क्या है और क्या नहीं है

Afeias
09 Apr 2019
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Date:09-04-19

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2010 में रामजन्म भूमि पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था। अब उच्चतम न्यायालय में चल रहे इस विवाद को तीन व्यक्तियों के मध्यस्थ समूह को सौंप दिया गया है। मध्यस्थों का निर्णय जो भी हो, राम की ऐतिहासिकता को लेकर उठाए जाने वाले सवालों पर एक दृष्टि अवश्य ही डाली जानी चाहिए।

  • मॉरिस विंटरनिट्ज, ए ए मैकडोनल, ए बी कीथ आदि अनेक संस्कृत विद्वानों ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि ‘रामकथा’ पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व से कही-सुनी जा रही है, जिसे चौथी या तीसरी शती ई.पू. में बाल्मीकी ऋषि ने रचा था।
  • विलियम फिंच और जेसुई जोसेफ जैसे विदेशी पर्यटकों ने 1766 और 1771 के बीच अवध का भ्रमण किया था। इनके विवरण से पता चलता है कि अवध के निवासी रामजन्म भूमि से संवेदनात्मक जुड़ाव रखते हैं।
  • आधुनिक विद्वानों का मानना है कि राम से संबंधित घटनाओं को ‘कथ’ या ‘एपिक’ के रूप में वर्णित किया गया है। यही कारण है कि वैष्णव बाल्मीकी कथा, बौद्ध दशरथ जातक और जैन पौमाचरियम् जैसे तीन प्रारंभिक संस्करणों में राम को अलग-अलग रूप में चित्रित करके, उसके माध्यम से भिन्न-भिन्न संदेश देने का प्रयत्न किया गया है।

इनके बाद आए अनेक संस्करणों में से हर एक के बीच में अंतर देखने को मिलता है और यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि बौद्ध, ईसाई या जैन जैसे धर्मों के प्रवर्तकों की जीवनियों में ऐसा कोई अंतर देखने को नहीं मिलता।

  • राम कथा का विवरण देने वाले प्रारंभिक ग्रंथों में घटनाओं से जुड़े स्थानों आदि के बारे में कुछ खास नहीं बताया गया है। न ही इनमें अयोध्या को रेखांकित किया गया है। रामकथा से अयोध्या को दूसरी सहस्राब्दी ई. के मध्य में जोड़ा गया, जब अयोध्या महात्म्य की रचना हुई। इसके बाद अयोध्या के अनेक स्थानों को राम की जीवनी के साथ जोड़कर देखा जाने लगा। 18वीं शताब्दी के बाद से लेकर अब तक इन स्थानों की पवित्रता का गान चला आ रहा है।

भारत-भ्रमण पर आए अनेक पर्यटकों ने राम की पूजा-अर्चना से जुड़े प्रसंग देखे हैं। अनेक साक्ष्य यह भी बताते हैं कि राम-पूजन की परंपरा 300 वर्ष से ज्यादा पुरानी नहीं है।

पूजा-अर्चना का मामला आस्था से जुड़ा होता है और इसका खंडन नहीं किया जा सकता। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि इस आस्थापूर्ण रामकथा को इतिहासकार एक साक्ष्य मान लें। ऐतिहासिकता का प्रमाण और आस्था दो भिन्न-भिन्न मुद्दे हैं।

राम मंदिर के निर्माण के लिए अनेक मुस्लिम संप्रदाय के लोग भी सकारात्मक हैं। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले ही इस पर अपना निर्णय दे दिया है। अब विवाद वहाँ स्थित भूमि के एक टुकड़े को लेकर चल रहा है। इसे हिंदू-मुस्लिम विवाद का रूप देना सर्वथा गलत है।

द इंडियन एक्सप्रेसमें प्रकाशित विभिन्न लेखों पर आधारित।