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आयुष्मान भारत में नवाचार की आवश्यकता
Date:02-03-20 To Download Click Here.
प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के आयुष्मान भारत को लागू हुए लगभग 18 महीने हो चुके हैं। यह योजना 36 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में से 32 में कार्यान्वित की गई है। इससे लाखों गरीबों को लाभ हुआ है। लेकिन योजना को पूर्ण रूप से प्रभावी बनाने के लिए अनेक चुनौतियों का सामना किया जाना है।
चुनौतियों का सामना
सबसे पहली चुनौती असमान कार्यान्वयन और सत्यापन मानकों की है।
भारत में बायोमेडिकल के क्षेत्र के स्टार्ट अप के लिए नियामक अभी बनने की प्रक्रिया में हैं। अतः अस्पतालों को जोखिम वाले उपकरणों के लिए विदेशी मानकों पर ही निर्भर रहना पड़ता है। स्टार्ट अप्स को भी न्यूनतम सत्यापन मानकों की सही जानकारी नहीं है। इसके कारण अलग-अलग राज्यों में मानकों की विभिन्नता में कंपनियां उलझी रहती हैं। सरकार इस ओर काम कर रही है।
दूसरी चुनौती, स्टार्ट-अप्स् को अपने उत्पाद को प्रयोग में लाने की होती है। जोखिम से जुड़े उत्पादों को बनाने, उसकी जांच, सर्टिफिकेट लेने, व्यावसायिक सत्यापन आदि की लंबी प्रक्रिया में बहुत सा समय चला जाता है।
नवाचार को प्रोत्साहित और स्वीकार करने में हमारा देश बहुत पिछड़ा हुआ है। स्वास्थ्य सेवा प्रदाता और चिकित्सकों को स्टार्ट-अप के उत्पादों को उपयोग में लाने के लिए दी जाने वाली छूट बहुत सीमित है।
सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में अपने उपकरण बेचने के लिए स्टार्ट-अप्स को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है। इससे उनकी आर्थिक स्थिति पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है।
स्वास्थ्य या बायोमेडिकल क्षेत्र में चल रहे नवाचार और उनके उपकरणों को एक ऐसा बाजार उपलब्ध कराने की आवश्यकता है, जिनसे उन्हें प्रोत्साहन मिले और उनके उपकरणों को प्रयोग का अवसर दिया जा सके।
विश्व के बाकी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र के स्टार्ट-अप्स् और अस्पतालों के बीच एक बाधारहित पुल बना हुआ है। भारत में भी ऐसे प्रयास करने होंगे।
आगामी योजना
सरकार ने इस योजना के द्वितीय और तृतीय स्तर पर विस्तार का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य के पूरा होने में गुणवत्ता और क्षमता में कमी नहीं आनी चाहिए। अतः साधनों की कमी से निपटने के लिए भारत के बायोमेडिकल स्टार्ट-अप्स् को प्रोत्साहित करना बहुत जरूरी है।
ऐसा होने पर ही एक उच्च गुणवत्तायुक्त सबकी पहुंच वाली और सस्ती स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध हो सकती है।
‘द हिन्दू’ में प्रकाशित अमिताभ कांत और इंदु भूषण के लेख पर आधारित। 19 फरवरी, 2020