पशु-पक्षियों के अस्तित्व पर छाया संकट

Afeias
03 Mar 2020
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Date:03-03-20

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हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के प्रवासी प्रजातियों पर समझौते के पक्षों के तेरहवें सम्मेलन में भारतीय पक्षियों की स्थिति, रिपोर्ट 2020 जारी की गई है। रिपार्ट की कुछ खास बातें –

  • इस रिपोर्ट में लगभग आठ सौ सड़सठ भारतीय पक्षियों की प्रजातियों का विश्लेषण किया गया है।इनमें से 261 प्रजातियों में बावन प्रतिशत कमी आने का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है। वहीं अल्पकालिक संदर्भ में एक सौ छियालीस प्रजातियों में से करीब 80% गिरावट की ओर हैं।
  • गौरतलब है कि इस रिपोर्ट को विश्व के दस बड़े संगठनों की मदद से तैयार किया गया है। यह रिपोर्ट वैज्ञानिक समझ और लगभग 15,500 पक्षी प्रेमियों की एक करोड़ टिप्पणियों पर तैयार की गई है।

पक्षियों के अस्तित्व पर छाए इस संकट का प्रभाव न केवल मनुष्यों, बल्कि समूचे पर्यावरण के लिए गंभीर चिंता पैदा करता है। पृथ्वी पर मौजूद सभी प्राणी किसी न किसी रूप में एक-दूसरे के अस्तित्व के लिए जरूरी हैं। लेकिन हमारा समाज अपने हितों को लेकर इतना आत्मकेन्द्रित होता जा रहा है कि पशु सहित पक्षियों पर बढ़ते संकट का कोई संज्ञान नहीं ले रहा है। हालांकि यह संकट केवल भारतीय संदर्भों में ही नहीं है। संयुक्त राष्ट्र में जारी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया भर के जैव-विविधता वाले क्षेत्र के रूप में मशहूर पश्चिमी घाटों में भारी तादाद में पक्षियों की संख्या में कमी आई है। करीब पांच महीने पहले ‘साइंस’ पत्रिका में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पिछले पचास सालों के दौरान उत्तर अमेरिका से तीन अरब से ज्यादा पक्षी लुप्त हो गए हैं।

भारतीय पहल – संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में वन्य पशुओं की तीन प्रजातियों के संरक्षण पर भारत ने कुछ प्रस्ताव रखे हैं। इस प्रस्ताव में एशियाई हाथी, भारतीय बस्टर्ड और बंगाल में पाए जाने वाले फ्लोरीकैन पक्षियों के संरक्षण हेतु उपाय सुझाए गए हैं। इन प्रस्तावों को सर्वसम्मति से स्वीकृत कर लिया गया है।

प्रवासी पशु-पक्षियों के संरक्षण की जरूरत क्यों ?

मौसम में परिवर्तन के साथ ही अनेक पशु-पक्षी भोजन और आश्रय की तलाश में एक से दूसरे देशों में पलायन करते रहते हैं। एशियाई हाथी की रेंज भारत से लेकर बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, म्यांमार आदि देशों तक है। इसी प्रकार बस्टर्ड की रेंज मुख्यतः भारत से लेकर पाकिस्तान तक है। बंगाल फ्लोरीकैन की सीमाएं गंगा और ब्रह्मपुत्र के बाढ़ के मैदानों तक रह गई है।

प्रत्येक देश में हर एक प्रजाति से जुड़े नियम-कानून अलग-अलग है। जिसके कारण ये प्राणी शिकारियों के चंगुल में फंस जाते हैं। इसके अलावा इनके आवास के जल-स्त्रोतों का सूखना, इनके प्रवास के मार्गों में अनेक प्रकार की बाधाओं का होना आदि ऐसे कारण हैं, जो इन्हें खत्म करते जा रहे हैं। यही कारण है कि इन प्रजातियों पर विशेष ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है।

भारत के प्रस्ताव पर आगामी कदम

भारत के प्रस्तावों के स्वीकृत होने पर इन प्राणियों के रेंज-देशों के बीच एक औपचारिक क्षेत्रीय समिति बनाई जाएगी। यह समिति विभिन्न शर्तों के तहत सीमा-पार इनके संरक्षण पर काम करेगी।

बांग्लादेश ने इस प्रस्ताव का स्वागत किया है। हाथी और फ्लोरीकैन के संरक्षण के लिए यह उत्साहवद्र्धक है। पाकिस्तान ने फिलहाल कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

अच्छी बात यह है कि संरक्षण का यह कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों की राय के अनूकुल है। अतः वे भारतीय बस्टर्ड के तथाकथित शिकार को रोकने के लिए पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं।

भारत ने इस 13वें सम्मेलन में भाग लेने वाले अन्य देशों से भी ‘गांधीनगर घोषणा’ को अपनाने की अपील की है, ताकि जगुआर, यूरियल तथा सफेद चोंच वाली शार्क जैसे कई जीव-जंतुओं का संरक्षण करके पारिस्थितिकीय तंत्र को बचाए रखा जा सके।

विभिन्न स्त्रोतों पर आधारित।

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