सह-अस्तित्व में ही जीवन है

Afeias
09 Sep 2020
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Date:09-09-20

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कोविड-19 महामारी ने अनेक प्रवासी मजदूरों को उनके स्थायी निवास लौटने को मजबूर कर दिया है। इनमें से अनेक ऐसे हैं , जो वनवासी हैं। ऐसे मजदूर वन के भीतर या अनेक अभ्यारण्य और राष्ट्रीय उद्यानों की सीमाओं पर निवास करते हैं। अब जब वे वहां आजीविका के लिए प्रयास शुरू कर रहे हैं , तो वन विभाग और स्थानीय समुदायों के बीच एक नई लड़ाई सामने आ रही है। यह क्रिटिकल वाइल्ड लाइफ हैबिटेट (सी डब्ल्यू एच) की घोषणा से संबंधित है , जिसके लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय में विभाग को तत्काल अधिसूचित करने की जनहित याचिका दायर की गई है।

सी डब्ल्यू एच – वन अधिकार अधिनियम , 2006 के तहत सी डब्ल्यू एच एक प्रावधान है।

  • यह मुख्य रूप से वनों और उनके उपयोग व प्रबंधन के लिए वनवासियों के ऐतिहासिक रूप से अस्वीकृत अधिकार को मान्यता देने पर केन्द्रित है।
  • कभी आवश्यक होने पर यह प्रावधान वन्य जीव संरक्षण के हित में वन-वासियों को स्थानांतरित किए जाने की अनुमति देता है।
  • वन क्षेत्रों के घोर संरक्षणवादियों का मानना है कि कभी-कभी वन्यजीवों को पूरी तरह से एकाकी क्षेत्र की आवश्यकता होती है। उसमें मानव और मानव गतिविधियों का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

वनाधिकार अधिनियम के अंतर्गत सी डब्ल्यू एच की वास्तविकता

  • इसमें स्थायनीय समुदायों के प्रतिनिधियों सहित एक बहु-विभागीय विशेषज्ञ समिति की स्थापना की आवश्यकता है।
  • “वैज्ञानिक और वस्तुपरक मानदंड’’ और परामर्शी प्रक्रियाओं का निर्धारण करने की आवश्यकता है।
  • यह निर्धारित करने की आवश्यकता है कि अधिकारों या प्रबंधन के माध्यम से सह-अस्तित्व संभव है या नहीं।

अगर विशेषज्ञ समिति इस पर सहमत नहीं होती , तो वनवासियों के विस्थापन को ग्राम सभा के साथ रखा जाना आवश्यक है। इन सभी प्रक्रियाओं की शुरूआत के लिए वनाधिकार कानून के अंतर्गत सभी अधिकारों को मान्यता दी जानी चाहिए।

वनाधिकार कानून के अंतर्गत की जा रही अवैध प्रक्रियाएं –

  1. वनाधिकार कानून के अंतर्गत दिए गए अधिकारों को मान्यता न दिया जाना।

न्यायालय के जोर देने के बावजूद ग्रामवासियों को उनके वाजिब अधिकार प्रदान किए बिना ही विस्थापित किया जा रहा है।

  1. विशेषज्ञ समिति का गठन ही गलत किया गया है। इनमें क्षेत्र विशेष को समझने वाले विशेषज्ञों के स्थान पर वन्यजीवों में रुचि रखने वालों को कई बार शामिल कर लिया जाता है।
  1. वन्य जीवन को होने वाली ‘अपूरणीय क्षति’ के मानदंडों का चयन नितांत अव्यावहारिक है।

इस संदर्भ में कहा जा सकता है कि समिति को सी डब्ल्यू एच के प्रावधान का उपयोग वनवासियों को विस्थापित करने के लिए नहीं करना चाहिए। संभावनाएं तलाशी जानी चाहिए। कर्नाटक के बीआरटी बाघ अभ्यारण में पिछले दस वर्षों में वनवासियों के रहते हुए ही बाघों की संख्याक बहुत बढ़ी है। सामान्यत: तो वनवासियों को वन संरक्षण का ज्ञान और आवश्यकता दोनों होती हैं। अत: उनके विस्थापन को एकदम अंतिम समाधान के रूप में ही रखा जाना चाहिए।

“द इंडियन एक्सप्रेस” में प्रकाशित शरतचन्द्र लेले , अतुल जोशी और पूर्णिमा उपाध्याय के लेख पर आधारित। 19 अगस्त, 2020

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