एक अंधा प्रहरी

Afeias
04 Mar 2020
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Date:04-03-20

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किसी भी क्षेत्र में ऑडिट की शुरूआत औद्योगिक क्रांति के दौरान हुई। इसका उद्देश्य वित्तीय नियमितताओं को बनाए रखना और धोखेबाजी की खोजबीन करना था। ‘ऑडिट’ का शाब्दिक अर्थ होता है- सुनना। इस प्रक्रिया में अनेक प्रकार के खतरों का मूल्यांकन किया जाता है। एक ऑडिटर की जिम्मेदारी होती है कि वह किसी व्यवसाय के सच्चे और निष्पक्ष मूल्यों को स्पष्ट रूप से पहचाने, और त्रुटियों एवं धोखेबाजी का विवरण उपलब्ध कराए। ऑडिटर का काम किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं होता। इसका भार मालिक के ऊपर होता है कि वह कंपनी में सुधार के लिए कैसी प्रतिक्रिया करता है।

हाल ही में कुछ बड़े प्रतिष्ठानों में हुए घोटाले इनके ऑडिटर की नाकामी को उजागर करते हैं। अधिकांश मामलों में घपलेबाजी की रकम अरबों में है। इनमें एन एस ई एल, पंजाब एण्ड महाराष्ट्र कॉपरेटिव बैंक आदि हाल ही में हुए कुछ बड़े घोटाले हैं। इसका कारण बैंकों का ऑडिट  कर रहे चार्टर्ड एकांउन्टेट की चुप्पी रही है। अगर वे शुरूआत में ही इनमें हो रही अनियमितताओं की खबर कर देते, तो अनेक मध्यवर्गीय लोगों की खून-पसीने की कमाई यूं व्यर्थ न जाती। इस घोटाले से पीड़ित लगभग 10 लोग मौत के मुँह में चले गए। सभी ऑडिटरों को बंदी बना लिया गया है।

सवाल यह है कि क्या इन ऑडिटरों को मिली सजा, उन परिवारों के लिए पर्याप्त होगी, जिन्होंने अपना सदस्य खो दिया है? क्या अनेक फर्मों का होने वाला वार्षिक ऑडिट विश्वास योग्य रह गया है? क्या ऑडिटरों की ही सारी गलती होती है? क्या कंपनी का प्रबंधन भी घोटाले के लिए जिम्मेदार माना जाए? ऑडिट के किसी नए प्रारूप को लाने से पहले इन सवालों का जवाब दिया जाना बहुत जरूरी है।

ऑडिट में हो रही अनियमितताओं पर नियंत्रण हेतु भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड (सेबी) ने कुछ परिपत्र जारी किए हैं। किसी ऑडिट के बीच में ऑडिटर का त्यागपत्र जल्द स्वीकृत न किया जाए। इसके लिए उसे हतोत्साहित किया जाए। कंपनी ऑडिटर रेग्यूलेशन ऑडिट, 2016 के पुनर्मूल्यांकन की  योजना है। महत्वपूर्ण वित्तीय अनुपात और ऋण लिए धन के बारे में रिपोर्टिंग के लिए विभिन्न कदम उठाए गए हैं। इससे समस्या का हल तो नहीं निकलेगा, परन्तु कुछ नियंत्रण किया जा सकेगा।

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकांउन्टेन्टस् की अपनी अनुशासनात्मक समिति है। साथ ही व्यावसायिक दुराचार से निपटने के लिए इसके पास सिविल कोर्ट जैसे अधिकार हैं। संस्था अपने सदस्यों के अनैतिक आचरण को नियंत्रित करने में अक्षम रही है। नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (नेरा) ने ऑडिटरों को नियंत्रित करने के लिए चार्टर्ड अकांउन्टेन्टस् इंस्टीट्यूट के अधिकार अपने अधीन कर लिए हैं। नेरा ने ऑडिट फर्मों के लिए नियमों को कड़ा कर दिया है।

वित्तीय अपराधों से निपटने के लिए भारतीय दंड संहिता की अलग धारा बनाई जानी चाहिए, जिसके अंतर्गत अधिकतम दंड और मामलों के जल्द निपटारे का प्रावधान रखा जाना चाहिए। सरकार को भी आईसीएआई और सेबी के बेहतर विकल्प पर विचार करना चाहिए। हमारे तंत्र में हानि के बाद प्रतिक्रिया पर काम होता है। परन्तु अब सुरक्षात्मक उपायों को अमल में लाया जाना चाहिए।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित राजेश एम कयाल के लेख पर आधारित। 15 फरवरी, 2020

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