सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट)

Afeias
25 May 2018
A+ A-

Date:25-05-18

To Download Click Here.

किसी भी देश में संस्थाओं की विफलता से यह सिद्ध होता है कि प्रजातंत्र को सार्वजनिक सतर्कता की आवश्यकता है। भारत का संभ्रांत वर्ग असंतोष और चेतावनी की सार्वजनिक आवाजों को दबा देना चाहता है।प्रजातांत्रिक सरकार में नागरिकों को प्रश्न पूछने और शिकायतें दर्ज करने का अधिकार होना चाहिए। इस प्रकार प्रशासन में सुधार आता रहता है। भारत में सामाजिक अंकेक्षण (सोशल ऑडिट) एक ऐसा साधन है, जिसके माध्यम से जवाबदेही के संस्थागत स्वरूप में पारदर्शिता लाई जा सकती है।

  • 1990 के मध्य में, मजदूर-किसान शक्ति संगठन ने ग्राम विकास पर होने वाले व्यय में पारदर्शिता लाने के उद्देश्य से जन सुनवाई का प्रयोग किया था। इससे सूचना के अधिकार को शक्ति मिली।
  • राजस्थान के पाँच ब्लॉक में जनसुनवाई कार्यक्रम की शुरूआत की गई। सूचना मिलने से भ्रष्टाचार का भंडाफोड़ हुआ। आधे-अधूरे भवनों को पूरा दिखाया गया था। नकली विकास कार्यों पर पूरा भुगतान किया गया था।

इस प्रकार की अनियमितताओं को देखते हुए लोगों ने चार मुख्य मांगें रखीं। (1) विकास कार्यों पर व्यय होने वाली राशि के रिकार्ड का खुलासा किया जाए; (2) जनता के प्रश्नों का जवाब देने के लिए अधिकारियों की उपस्थिति एवं जवाबदेही सुनिश्चित की जाए; (3) शिकायतों को जल्द-से-जल्द सुलझाया जाय, और गबन की हुई राशि को निहित उद्देश्य में जल्द-से-जल्द लगाया जाए, (4) सामाजिक ऑडिट  अनिवार्य हो।

इन जन सुनवाई कार्यक्रमों के परिणामतः ‘‘हमारा पैसा, हमारा हिसाब’’ जैसे नारे दिए जाने लगे। यही सामाजिक अंकेक्षण की सार्थकता रही।

  • सामाजिक अंकेक्षण को सशक्त बनाने के लिए सूचना का अधिकार लाया गया। परन्तु इसके माध्यम से जब तक जनता को अपनी समस्याओं का समाधान नहीं मिलता, तब तक इसको सफल नहीं माना जा सकता।
  • सोशल ऑडिट की अवधारणा अति सरल है। इसमें सूचनाओं को लोगों तक पहुँचाया जाता है, ताकि किसी कार्यक्रम के लिए नीति बनाने से लेकर उसके कार्यान्वयन और मूल्यांकन तक का ब्यौरा पारदर्शी हो सके।
  • मनरेगा कार्यक्रम में पहली बार सोशल ऑडिट की कानूनी आवश्यकता को समझा गया।
  • आंध्रप्रदेश ने भी सोशल ऑडिट को प्रतिस्थापित करके अनेक सकारात्मक परिणाम पाए।
  • सिक्किम, तमिलनाडु और झारखंड आदि राज्यों ने भी सोशल ऑडिट को अपनाने में तत्परता दिखाई है।
  • 2017 में मेघालय ऐसा पहला राज्य बना, जिसने अपने सभी विभागों में सोशल ऑडिट को लागू किया।
  • हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने सोशल ऑडिट को ढांचागत मजबूती देने के लिए कई आदेश जारी किए हैं।

अगर सोशल ऑडिट  को उचित प्रकार से लागू किया जाता है, तो इससे वितरण और कार्यान्वयन में सुगमता आ जाएगी।

अभी लोकपाल विधेयक, मुखबिर सुरक्षा विधेयक आदि ऐसे पहलू हैं, जहाँ पारदर्शिता  लाए जाने की आवश्यकता है। जन समूहों को चाहिए कि वह सोशल ऑडिट  को सशक्त करने हेतु अभियान चलाए। तभी विकास परवान चढ़ सकेगा।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित निखिल डे और अरुणा रॉय के लेख पर आधारित। 30 अप्रैल, 2018

Subscribe Our Newsletter