सोशल ऑडिट

Afeias
04 Aug 2017
A+ A-

Date:04-08-17

 

To Download Click Here.

वर्तमान केन्द्र सरकार के कार्यकाल को अगर हम पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और जनभागीदारी की की कसौटी पर कसें, तो वह उतनी खरी नहीं उतरती है। अभी तक लोकपाल जैसे जरूरी कानून भी लागू नहीं किए जा सके हैं। परन्तु जिस प्रकार से सरकार ने हाल ही में मुस्तैदी से जन लेखा परीक्षा (सोशल ऑडिट) की मुहिम चलाई है, वह स्वागतयोग्य है।हाल ही में सोशल ऑडिट से जुड़ी संयुक्त टास्क फोर्स की रिपोर्ट में जनता को जाँच के काम से जोड़ने की सर्वसम्मति से सिफारिश की गई है। उच्चतम न्यायालय ने भी इस प्रकार की एक जनहित याचिका पर विचार करते हुए न्यायपालिका में भी सोशल ऑडिट की जरूरत को स्वीकार किया है।

सोशल ऑडिट से जुड़ी कुछ खास बातें

  • इसकी जड़ें राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं। यहाँ पर चलने वाले कार्यक्रमों का आकलन लाभार्थियों से कराया जाता है। इससे सरकारी फाइलों में दर्ज कार्यक्रम और धरातल के स्तर पर उसके कार्यान्वयन की सच्चाई को आसानी से जाँचा जा सकता है।
  • अलग-अलग स्तरों पर होने वाली जनसुनवाई या जन भागीदारी मंच इस कार्यक्रम की आत्मा कहे जा सकते हैं। इसके माध्यम से लोगों में प्रजातंत्र के प्रति विश्वास दृढ़ होता है।
  • इसके अंतर्गत होने वाली कार्यवाही को लिखा नहीं जाता। बाहर से देखने पर यह नाटकीय भी लग सकती है, क्योंकि इस प्रकार की कार्यवाही में लोग गलत नीतियों, भ्रष्टाचार आदि के विरोध में खुलकर रोष प्रकट करते हैं।
  • सोशल ऑडिट के माध्यम से भ्रष्टाचारी या अपना प्रभाव जमाकर लाभ प्राप्त करने वाले व्यक्तियों पर शिकंजा कसा जा सकता है। इसके द्वारा मनरेगा में 100 करोड़ के घपले का पता लगाया गया, जिसमें से 40 करोड़ वसूले जा चुके हैं। लगभग 6,000 भ्रष्ट कर्मचारियों को निकाला जा चुका है।
  • सोशल ऑडिट को कारगर बनाने के लिए इसकी भर्ती प्रक्रिया में बहुत सी बाधाएं डाली जा रही हैं। कई क्षेत्रों में यह प्रभावशाली और भ्रष्ट लोगों की पकड़ से पूर्ण स्वतंत्र नहीं है। छोटे गांवों में भी कई जगह सोशल ऑडिट के कर्मचारियों को प्राथमिक दस्तावेजों की भी जाँच. नहीं करने दी जाती है।
  • बाधाओं के बाद भी सोशल ऑडिट अपनी गति से आगे बढ़ रहा है। 2016 में नियंत्रक एवं लेखा परीक्षक ने सोशल ऑडिट के लिए कुछ दिशा-निर्देश बना दिए हैं। विश्व में शायद, सोशल ऑडिट के लिए ऐसे मानक पहली बार तैयार किए गए हैं।

हमारी वर्तमान सरकार की डिजीटलीकरण की नीति से पारदर्शिता लगातार बढ़ती जा रही है। ऐसे में सोशल ऑडिट एक ऐसा मंच बन सकता है, जहाँ लोगों को सरकारी आँकड़ों और कार्यवाहियों की सही जानकारी मिल सकती है। आज यह जनता के लिए नैतिक, वैधानिक और प्रजातांत्रिक आवश्यकता बन गई है।

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रक्षिता स्वामी के लेख पर आधारित।

 

Subscribe Our Newsletter