संशोधित मूल्य (रिडेक्टिव प्राइसिंग) और कैग के दायित्व

Afeias
12 Jun 2019
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Date:12-06-19

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हाल ही में भारत सरकार द्वारा फ्रांस से किया गया राफेल विमान का सौदा काफी चर्चा में रहा है। इस सौदे को लेकर विपक्ष ने सरकार पर अनियमितताओं का आरोप लगाया था। इसी संदर्भ में उच्चतम न्यायालय ने देश की सर्वश्रेष्ठ ऑडिट एजेंसी नियंत्रक और लेखा परीक्षक (कैग) से सौदे से संबंधित रिपोर्ट पेश करने को कहा था। सौदे से संबंधित संशोधित मूल्य और चोरी हुई कुछ फाइलें ने कैग की रिपोर्ट को ही संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया है।

इस प्रकरण से जनता के समक्ष अनेक प्रश्न खड़े हो गए हैं। यह संशोधित मूल्य(रिडेक्वि प्राइसिंग) क्या है? क्या संवैधानिक शासनादेश में ऐसा कोई प्रावधान है कि संसद में रखे जाने से पूर्व राष्ट्रपति को दी जाने वाली कैग की रिपोर्ट में संशोधित मूल्य को प्रस्तुत करना जरूरी है? क्या कोई सुप्रीम ऑडिट संस्थान जैसे नेशनल ऑडिट ऑफिस, गवर्मेंट अकांउटेबिलिटी ऑफिस या कॉमनवैल्थ देश भी अपनी ऑडिट रिपोर्ट में संशोधित मूल्य का अनुसरण करते हैं?

1. रिडेक्शन या संशोधन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें किसी दस्तावेज को प्रकाशित करने से पूर्व उसमें से संवेदनशील सूचनाओं को हटा दिया जाता है। कैग जैसी संस्था के लिए यह अनिवार्य है कि वह सरकार के तीनों स्तरों (केन्द्र, राज्य व स्थानीय) से जुड़ी सभी रसीदों और व्यय को न्यायपूर्वक, स्वतंत्र व निष्पक्ष रूप से नियम-कानून के अंतर्गत, बिना किसी भय, दबाव, या पक्षपात के जांचे।

कैग, वित्तीय अनुपालन हेतु ऑडिट करता है, और अपनी रिपोर्ट विधायिका को सौंपता है। इस रिपोर्ट के आधार पर ही हमारे सांसद और विधायक, जनता के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह कर पाते हैं। पब्लिक एकांउट्स समिति और पब्लिक अंडरटेकिंग समिति जैसी विधायी समितियां, कैग की कुछ चुनी हुई रिपोर्ट की जाँच-परख करती हैं।

2. अपनी ऑडिट रिपोर्ट में कैग ने बताया है कि राफेल से संबंधित संशोधित मूल्य असामान्य थे। परन्तु सुरक्षा कारणों का वास्ता देते हुए मंत्रालय ने इसे स्वीकार करने को बाध्य किया। अतः इससे संबंधित व्यावसायिक विवरण और खरीद में किए गए समझौते को पूरी तरह से छुपाया गया। संविधान के अनुच्छेद 151 के अंतर्गत राष्ट्रपति को दी जाने वाली कैग रिपोर्ट में इस प्रकार का छिपाव पहले कभी नहीं किया गया। मंत्रालय के दबाव में आकर कैग द्वारा इस प्रकार की गोपनीयता बरतने के प्रकरण की जाँच अब उच्चतम न्यायालय, संवैधानिक प्रावधानों के अंतर्गत करेगा।

3. रिडेक्टिव प्राइसिंग का नेशनल ऑडिट ऑफिस की किसी भी रिपोर्ट में इस्तेमाल नहीं किया जाता है। विश्व के किसी देश के सुप्रीम ऑडिट संस्थान में ऐसा किए जाने का कोई चलन नहीं है।

4. राफेल सौदे पर संसद, उसकी समितियों, मीडिया और अन्य हितधारकों को संशोधित मूल्य के कारण कोई भी सटीक एवं विश्वसनीय सूचना नहीं मिल पायी।

5. किसी भी खरीद के निर्णय में मूल्य अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इसके साथ ही गुणवत्ता, मात्रा, तुलनात्मक गुण-दोष, स्थितियां, नियम और शर्तें, बाद में दी जाने वाली सेवाएं, कमीशन आदि का आकलन किया जाता है। कैग को इस प्रकार की खरीद के सभी विवरण जानने, हर स्तर पर लगने वाले मूल्य का मूल्यांकन करने, कानूनी दांव-पेंच देखने, मध्यस्थता संबंधी कानून की बारीकियों को जानने का संवैधानिक अधिकार प्राप्त है। यह उसका दायित्व भी है कि वह किसी भी खरीद से जुड़े अनिवार्य कारकों को जानकर उनकी समीक्षा करे और यह देखे कि उस खरीद समझौते से देश के हितों को कोई हानि न पहुँचे।

विश्व स्तरीय आधुनिक बाजारों की प्रतिस्पर्धा में मूल्य, वितरण और उसके बाद प्रदान की जाने वाली सेवाओं एवं अन्य स्थितियों को सुप्रीम ऑडिट संस्थान के ऑडिट में शामिल किया जाना आवश्यक होता है। यह एक जटिल ऑडिट प्रक्रिया होती है, जिसमें विशेषज्ञों की आवश्यकता भी पड़ती है। अगर कैग की टीम परफार्मेन्स  ऑडिट में कहीं चूकती है, तो विश्वसनीय संस्थानों से विशेषज्ञों का सहयोग लिया जाता है। खरीद का निर्णय, विस्तृत समीक्षा के बाद ही लिया जाता है। संसद को खरीद के निर्णय की स्थितियों आदि के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने का संवैधानिक अधिकार है। कैग के ऑडिट से अपेक्षा की जाती है कि वह खरीद के निर्णयों में देश के धन के इस्तेमाल को प्रमुखता देगा।

कोई भी परर्फामेन्स ऑडिट यह देखने के लिए किया जाता है कि वह अपेक्षित खरीद के दौरान अर्थव्यवस्था, सामथ्र्य, प्रभावशीलता, नैतिकता और न्याय नीति को ध्यान में रखा गया या नहीं। किसी भी खरीद के मूल्य संबंध में किया गया विस्तृत ऑडिट ही उसकी विश्वसनीयता को बचा सकता है। तभी सुप्रीम ऑडिट संस्थान का संवैधानिक दायित्व पूरा हो सकता है।

‘द हिन्दू’ में प्रकाशित के.पी.शशिधरन के लेख पर आधारित। 14 मई, 2019

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