वेटलैण्डस् या आर्द्रभूमि का संरक्षण जरूरी है

Afeias
06 Feb 2023
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  • किसी भी देश की प्रकृति के लिए वेटलैण्डस् बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये प्रकृति को मिलने वाले आघातों से उसकी रक्षा करते हैं। इंटरनेशनल डेटा से पता चलता है कि पिछले 30 वर्षों में भारत ने प्रति पाँच में से लगभग दो वेटलैण्डस् खो दिए हैं।
  • जो शेष हैं, उनमें से भी 40% ऐसे हैं, जो जलीय जंतुओं का पालन-पोषण नहीं कर सकते हैं।
  • भारत ने 1982 में वेटलैण्डस् से जुड़े रामसर कन्वेंशन की पुष्टि की थी। इसके अनुसार भारत के लगभग 75 वेटलैण्डस को अंतरराष्ट्रीय महत्व का बताया गया है। इन वेटलैण्डस का क्षेत्रफल दस लाख हेक्टेयर से भी अधिक है।
  • इन सबमें सुंदरवन वेटलैण्ड सबसे विशाल है। पिछले तीन वर्षों में क्षरण के कारण इसका 25% क्षेत्र खत्म हो चुका है। नदी पर बनने वाले बांधों के तलछट में आई कमी ही इस हानि का कारण है।
  • इसी तरह, चेन्नई के पल्लीकरनई मार्श जैसी शहरी आर्द्रभूमि पर अतिक्रमण और निर्माण कार्यों ने शहर को बाढ़ प्रवण बना दिया है।
  • 2005 और 2018 के बीच बड़ोदरा के लगभग 30% वेटलैण्डस् खत्म हो चुके हैं।
  • हैदराबाद ने अनियंत्रित शहरी विकास और अकुशल अपशिष्ट प्रबंधन के कारण अपने अर्ध-जलीय निकायों का 55% खो दिया है।
  • सच्चाई यह है कि भारत सरकार ने आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 को एक नियामक के रूप में अधिसूचित किया है। लेकिन केंद्र की ओर से राज्यों को दी जाने वाली वेटलैण्ड संरक्षण सहायता को रामसर कन्वेंशन में अधिसूचित स्थलों की ओर ही निर्देशित कर दिया जाता है।

जल-भंडारण और जलमृत (एक्वीफर) रिचार्ज के साथ-साथ वेटलैण्डस, तूफानों और बाढ़ों को रोकने या तीव्रता कम करने में मदद करते हैं। ये प्राकृतिक कार्बन सिंक भी हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में मदद करते हैं।

इनकी महत्ता को पहचानते हुए दिल्ली मास्टर प्लान-2041 में वेटलैण्डस के संरक्षण की बात की गई है। यह एक अच्छी शुरूआत कही जा सकती है। हमारी प्रकृति के लिए इनके महत्व के बारे में और अधिक जन-जागरूकता फैलायी जानी चाहिए।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 11 जनवरी, 2023