ध्यानाकर्षण संरक्षण विधेयक

Afeias
16 Aug 2017
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Date:16-08-17

 

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भ्रष्टाचार या गलत कामों के विरूद्ध आवाज उठाने वाले 15 लोगों की पिछले तीन वर्षों में हत्या की जा चुकी है। सन् 2014 में संसद ने इसके लिए ध्यानाकर्षण संरक्षण विधेयक पारित किया था। परन्तु इसका संचालन उचित प्रकार से नहीं किया जा सका। इस विधेयक के माध्यम से सरकार उन लोगों को संरक्षण देना चाहती थी, जो पद की शक्ति एवं सत्ता के दम पर भ्रष्टाचार, शक्ति का दुरुपयोग एवं आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले जन-सेवकों का पर्दाफाश करते हैं। इस संबंध में बनाए गए कानून में गैर सरकारी क्षेत्र में भी व्याप्त अनियमितताओं पर ध्यानाकर्षण को शामिल किया गया है।

  • पिछले कुछ वर्षों में सरकारी महकमे में व्याप्त भ्रष्टाचार को सूचना के अधिकार या आर.टी.आई. के द्वारा उजागर करने पर लगभग 65 लोगों की हत्या की गई है। हांलाकि ध्यानाकर्षण संरक्षण कानून में अनियमितता को उजागर करने वाले की पहचान गुप्त रखने का प्रावधान है। परन्तु कहीं-न-कहीं से यह उजागर हो जाता है और उस व्यक्ति का ही अंत कर दिया जाता है।
  • इस कानून में शिकायतकत्र्ता और जाँच में उसके सहायक लोगों को भ्रष्टाचार से संरक्षण का प्रावधान है। अक्सर यह देखा गया है कि आवाज उठाने वाले व्यक्ति को निलंबन, पदोन्नति का मौका न मिलना, धमकी या हिंसा जैसे दांव-पेंचों का सामना करना पड़ता है। ऐसे में किसी सक्षम अधिकारी को उन्हें संरक्षण देने का काम सौंपा जाता है। इतना सब होते हुए भी ऐसे उदाहरण हैं, जब ध्यानाकर्षण करने वाले कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई।
  • इस कानून को उचित प्रकार से लागू करने के बजाय वर्तमान सरकार ने 2015 में कानून में संशोधन करके इसे और भी तरल बनाने का प्रस्ताव रखा था।संशोधन अधिनियम में ध्यानाकर्षण करने वाले व्यक्ति पर अभियोग न चलाए जा सकने के अधिकार को समाप्त करने का भी प्रस्ताव है। दरअसल, 1923 के ऑफिशियल सीक्रेट विधेयक के अंतर्गत किसी भी व्यक्ति को आधिकारिक दस्तावेजों या क्षेत्र के संपर्क में आने पर या इस प्रकार के अन्य अपराध के लिए 14 वर्ष के कारागर का दंड दिया जा सकता है।
  • ध्यानाकर्षण संरक्षण विधेयक का उद्देश्य तो अनियमितताओं केे विरूद्ध आवाज उठाने वाले व्यक्ति को भयमुक्त रखना था। लेकिन अगर अपने इस कार्य में उसे सरकारी कामकाज के ब्यौरे को यथेष्ट मात्रा में ऊजागर करने पर दंड दिए जाने का भय होगा, तो इस कानून का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा।
  • संशोधन अधिनियम में ध्यानाकर्षण करने वाले व्यक्तियों द्वारा उन शिकायतों पर कोई कार्यवाही या पूछताछ न करने की बात कही गई है, जिसमें देश की प्रभुता, अखंडता, सुरक्षा या आर्थिक मसलों पर आँच आने की संभावना हो।
  • साथ ही आर.टी.आई. के अतिरिक्त कहीं और से प्राप्त सूचना को आधार बनाकर पर्दाफाश न किए जाने की बात भी संशोधन प्रस्ताव का हिस्सा है।
  • व्यावसायिक हितों से जुड़े कुछ ऐसे रहस्य होते हैं, जिनके उजागर हो जाने पर तीसरे पक्ष को नुकसान हो सकता है। आर.टी.आई. के भाग 8(1) में ऐसे कुछ प्रावधान हैं, जिनके अंतर्गत नागरिकों को उसकी सूचना नहीं दी जाती है।
  • ध्यानाकर्षण संरक्षण कानून और आर.टी.आई. कानून दो अलग-अलग उद्देश्य को पूरा करते हैं। इन्हें एक में मिलाकर देखने से ध्यानाकर्षण करने वाले व्यक्ति की राह में अनेक बाधाएं आ जाएंगी। जैसे कि सरकारी महकमें में काम करने वाले व्यक्ति को यदि प्रत्यक्ष रूप में किसी प्रकार की अनियमितता दिखाई देती है, तो उसे आर.टी.आई. की क्या आवश्यकता है?

परमाणु विभाग या सेना जैसे संवेदनशील विभागों से जुड़ी अनियमितताओं या भ्रष्टाचार के विरूद्ध क्या सिर्फ इसलिए आवाज नहीं उठाई जानी चाहिए, क्योंकि वे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े हुए हैं।अगर सरकार को केवल राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता होती, तो वह ध्यानाकर्षण संरक्षण विधेयक में इस प्रकार की संवेदनशील सूचनाओं के लिए कुछ अतिरिक्त खण्ड जोड़ने की बात सोचती।संशोधनों पर पुनर्विचार और जन-भागीदारी के लिए सरकार को चाहिए कि वह इसके लिए राज्य सभा में एक समिति का गठन करे। विधेयक को रोकने के लिए कोई तर्क नहीं दिए जाने चाहिए। सरकार का यह नैतिक दायित्व है कि वह इस विधेयक को जल्द से जल्द कानून बनाकर लागू करे और भ्रष्टाचार व गलत कामों के विरूद्ध आवाज उठाने वालों को पर्याप्त संरक्षण दे।

हिंदू में प्रकाशित अंजलि भारद्वाज अमृता जौहरी के लेख पर आधारित।

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