वैटलैण्ड की पहचान और संरक्षण

Afeias
04 Jul 2016
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CC 04-July-2016

Date: 04-07-16

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भारत में सूखे की समस्या को देखते हुए सरकार ने 2010 के वैटलैण्ड (कन्जरवेशन एण्ड मैनेजमेन्ट) को बदलकर 2016 में इसका नया रूप लाने की पूरी तैयारी कर ली है।

अभी तक वैटलैण्ड पर राज्य सरकारों को पूरी तरह से छूट होती है। परंतु अब केंद्र सरकार ने पर्यावरण की रक्षा के लिए इनका महत्व समझकर इनका बहुमुखी उपयोग करने तथा उस पर नियंत्रण रखने का विचार किया है।
वैटलैण्ड है क्या?

नमभूमि या वैटलैण्ड भूमि के उस भाग को कहते हैं, जहाँ जल का अधिक-से-अधिक अवशोषण और जमाव होता है। आमतौर पर ये प्राकृतिक होते हैं। परंतु किसी विशाल भूभाग पर इसका निर्माण भी संभव है।

ये विविभन्न प्रकार के जीवों; जैसे पक्षी, मछली या अन्य जीवों का संरक्षण करने में बहुत मदद करते हैं।

चूँकि यह भूमि किसी प्रकार की आय का साधन नहीं होती, इसलिए इसे वेस्टलैण्ड भी कह दिया जाता है।

 

कुछ तथ्य

  • भारत में अनुमानतः 188470 वैटलैण्ड हैं। इनकी वास्तविक संख्या और अधिक हो सकती है। केवल उत्तर प्रदेश में ही एक लाख से अधिक वेटलैण्ड हैं।
  • नदियों के किनारे की मिट्टी की सफाई या उनको हटाए जाने से नदियों का पाट चौड़ा हो जाता है। जल से जुड़ी इंजीनयरिंग तकनीकों के उपयोग से कर्नाटक राज्य ने अपनी नदियों को चैड़ा करवाया है। इस तरह की तकनीकों में अंदर छिपे जल स्त्रोतों के नष्ट होने की भी सभावना होती है। अतः इसे एक सीमा तक ही किया जा सकता है।
  • नदियों को आपस में जोड़ देने से भी जल-अभावग्रस्त क्षेत्रों को मदद पहुँचाई जा सकती है। संसद ने 111 नदियों को जोड़ने के लिए वॉटरवेज़ एक्ट पारित किया है। मध्य प्रदेश सरकार ने केन और बेतवा को जोड़ने की योजना बनाई है। नदियों को जोड़ने से जल-वितरण केवल कुछ ही क्षेत्रों तक हो पाएगा। बहुत से क्षेत्र अछूते रह जाएंगे।
  • बाँध बनाने से पारिस्थितिकीय पर तो असर पड़ता ही है, वित्तीय घाटा भी होता है। गंगा नदी पर बाँध बनाने से उससे जुड़ी पद्मा नदी में पाई जाने वाली हिलसा मछली खत्म हो गई। इन मछलियों की बाजार में बहुत माँग थी।
  • तालाब तथा झील जैसे छोटे-मोटे जलस्त्रोतों के विस्तार पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। बिहार की कंवर झील और जम्मू-कश्मीर की डल झील अतिक्रमण के कारण सिमटकर एक तिहाई रह गई हैं। झीलों से जुड़ी जलधाराएं कटती जा रही हैं। अभी तक राज्यों का इन पर कोई ध्यान नहीं रहा है।
  • 2016 के वैटलैण्ड एक्ट में भी पारिस्थितकीय से जुड़े आर्द्र प्रदेश; जैसे-  (Boidiversity) रीफ, कोरल रीफ, कच्छ वनस्पति (Mangroves) तथा अन्य आद्र्र क्षेत्रों के बारे में कोई बात नहीं की गई है।

सेट्रल वैटलैण्ड रेग्यूलेटरी अथॉरिटी जैसी पारिस्थिकीय और आर्द्र प्रदेशांे का ज्ञान रखने वाली संस्था को भी इससे अलग रखा गया है।

वैटलैण्ड का संरक्षण और इन्हें नष्ट करने वाली हानिकारक गतिविधियों की व्याख्या को इस एक्ट से हटा दिया गया है।

 

समाधान

  • वर्तमान एक्ट आर्द्र भूमि और भूमिगत जल स्त्रोतों को अलग-अलग मानकर भूमिगत जलस्त्रोतों से संबंधित कोई कानून फिलहाल नहीं बना रहा है, जिस पर कार्यवाही बहुत ही जरूरी है।
  • प्रस्तावित एक्ट में आर्द्रभूमि के सदुपयोग पर बहुत जोर दिया गया है। इसकी चर्चा रामसर अधिवेशन में की गई थी। इसका उद्देश्य सभी जलस्त्रोतों का मानवहित में अधिक से अधिक उपयोग करना था। इसका एक अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि वैटलैण्ड को उनके प्राकृतिक रूप में ही छोड़ दिया जाए, ताकि बाढ़ से बचा जा सके और जल पुनर्भरण हो सके।

‘‘दि हिन्दू’’ में प्रकाशित नेहा सिन्हा के लेख पर आधारित

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