वैटलैण्ड की सुरक्षा आवश्यक है।

Afeias
09 Aug 2017
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Date:09-08-17

 

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आज विश्व के अनेक भाग जलवायु परिवर्तन का शिकार हो रहे हैं। भारत के कई भागों में इसके दुष्प्रभाव पड़ रहे हैं। इसी के चलते 2015 से चेन्नई पर एक के बाद एक आपदाओं की मार पड़ती जा रही है। बाढ़, मानसून का असंतुलन, तूफान वर्षा के बाद अब वहाँ जल संकट से एक नई मुसीबत आ खड़ी हुई है।वैसे तो चेन्नई की भौगोलिक स्थिति ही इसे आपदा प्रभावित बनाती है। यह तीन नदियों के बाढ़ के बाढ़ के मैदानों से घिरा होने के साथ-साथ एक ओर समुद्र तट से घिरा हुआ है। इन स्थितियों के साथ यहाँ की सरकार चेन्नई के वैटलैण्ड्स के प्रति जैसी नीति अपना रही है, वह पूर्ण रूप से नगर को बर्बाद करने के कगार पर ले जा रही है।

जून माह में राज्य सरकार ने भारत सरकार अधिकृत कामराजार पोर्ट लिमिटेड की एन्नोर वैटलैण्ड की 1,000 एकड़ भूमि को औद्योगिक ढांचे के लिए देने के निवेदन को स्वीकार कर लिया। अभी यह प्रस्ताव केन्द्र सरकार की स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहा है। अगर इसे स्वीकृति मिल जाती है, तो चेन्नई की हालत 2015 की बाढ़ से भी ज्यादा खराब हो सकती है।

  • एन्नोर क्रीक का महत्व

यह 8,000 एकड़ में फैली ऐसी जलभूमि है, जो सामान्यतः सूखी दिखाई देती है, परन्तु समुद्र के बढ़ने की एवं बाढ़ से उफनी नदियों के समुद्र में गिरने की स्थिति में अतिरिक्त जल का फैलाव इसी भूमि पर होता है। यही जल चेन्नई नगर की जीवन रेखा की तरह काम करता है।क्रीक समुद्र की अरिन्यार-कोसास्थालय्यर घाटी के जलवाही स्तर को बढ़ा देता है, जिससे समुद्र का खारा जल चेन्नई शहर की जलापूर्ति करने वाले भूमिगत जल में नहीं मिल पाता। इस प्रकार भयंकर सूखे की स्थिति में भी चेन्नई को कभी पानी की कमी नहीं होती। तमिलनाडु सरकार ने 6,500 एकड़ की क्रीक की भूमि को कोस्टल रेग्युलेशन ज़ोन के अंतर्गत सुरक्षित रख छोड़ा था। परन्तु लालच के कारण 1000 एकड़ से अधिक भूमि अलग-अलग प्रकार के अतिक्रमण की भेंट चढ़ गई है। इसके कारण पानी का रास्ता रुक गया और 2015 की बाढ़ आई।

इस प्रकार की आपदा के कारणों के बारे में आगाह करने के बावजूद राज्य सरकार ने जून माह में औद्योगिक निर्माण को स्वीकृति देते हुए राज्य तटीय प्रबंधन प्राधिकरण से ऐसा नया नक्शा बनवा लिया है, जिसमें 6,500 एकड़ की क्रीक की भूमि ही नदारद है। इन सबके पीछे काम करने वाले अधिकारियों को इसके दुष्प्रभावों का पर्याप्त ज्ञान है।चेन्नई में आने वाली हर बाढ़ के बाद नदी किनारे रहने वाले गरीबों पर गाज गिरती है। एक तो बाढ़ की त्रासदी और ऊपर से अधिकारियों के जुल्म। बाढ़ का कारण इन गरीबों के अतिक्रमण को ही माना जाता है और मुख्य कारण को नजरअंदाज कर दिया जाता है।अगर चेन्नई के इस वैटलैण्ड को नहीं बचाया गया, तो भविष्य में वहाँ के जलामृत की समाप्ति हो जाएगी। चेन्नईवासी पीने के पानी को तरसेंगे, जबकि वर्षा का जल नगर को डुबोता रहेगा।

हिन्दू में नित्यानंद जयराम एवं टी.एम.कृष्णा के लेख पर आधारित।        

 

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