जलवायु परिवर्तन की दिशा में व्यवस्थित प्रयास आवश्यक

Afeias
10 Sep 2021
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Date:10-09-21

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आई सी सी या इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज की छठी रिपोर्ट में वातावरण की उष्मा के बढ़ने में मानव की स्पष्ट भूमिका को पहली बार स्वीकार किया गया है। रिपोर्ट में बताए गए जीवाश्म ईंधन के माध्यम से होने वाले उत्सर्जन के प्रभावों पर हमने पहले एक लेख में चर्चा की है। इस लेख में, भारत में जलवायु परिवर्तन से संबंधित रिपोर्ट के तथ्यों पर चर्चा की जा रही है।

  • भारत में बड़ी संख्या में लोग आजीविका के लिए जलवायु निर्भर क्षेत्रों जैसे-कृषि, पशुपालन, वानिकी और मत्स्य पालन पर आश्रित हैं। इनमें से अधिकांश जनसंख्या गरीब है।
  • हिमालय और 7500 कि.मी. की लंबी तटीय रेखा भी पारिस्थितिकी की दृष्टि से जलवायु प्रभावों के लिए अत्यधिक संवेदनशील है।
  • भारत की भूमि में 65% सूखा-प्रवण क्षेत्र, 12% बाढ़-प्रवण और 8% चक्रवात की दृष्टि से संवेदनशील क्षेत्र हैं।
  • कृषि उत्पादन में होने वाली कमी, बढता समुद्री जल-स्तर और स्वास्थ्य की नकारात्मक स्थिति के साथ 1° C की ऊष्मा के बढ़ने पर जीडीपी की 3% हानि होती है।
  • भारत की आधी जनता कृषि पर निर्भर है। फसल योग्य भूमि का 68% वर्षा जल पर निर्भर है। परिवर्तनशील वर्षा से कहीं पानी की भयंकर कमी हो रही है, तो कहीं बाढ आ रही है।

समस्या का समाधान कहाँ है –

  • कृषि में नवीन दृष्टिकोणों के साथ अनुकूलन और शमन जैसा लचीलापन लाया जाना चाहिए। क्षेत्र के अनुकूल उपयुक्त फसलों का चुनाव, कुशल सिंचाई प्रौद्योगिकी का प्रचार, वित्तीय समावेशन और उचित मूल्य वाले कृषि-ऋण की उपलब्धता सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
  • बुनियादी ढांचे को लचीला बनाया जाना चाहिए। मात्र 3% के अधिक व्यय के साथ इस लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। इसका केंद्र गरीब क्षेत्रों को बनाया जाना चाहिए। जलवायु परिवर्तन से समाज के हाशिए पर रहने वाला वर्ग ही अधिक प्रभावित हो रहा है।
  • भारत के जलवायु परिवर्तन पर स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज के माध्यम से उप-राष्ट्रीय स्तर पर अनुकूलन गतिविधियों को संस्थागत रूप दिया गया है। इसे राज्य-स्तर पर सक्रिय करने का प्रयास किया जा रहा है।

2015-16 में इसकी शुरूआत से लेकर अब तक नेशनल एडेप्टेशन फंड फॉर क्लाइमेट चेंज ने 847 करोड़ के केवल 30 प्रोजेक्ट को ही निधि दी है, जो बहुत सीमित है। इसका विस्तार किया जाना चाहिए।

जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से अतिसंवेदनशील, भारत जैसे देशों को अपनी नीतियों और संसाधनों को अनुकूलन क्षमता बढ़ाने की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है। अगर भारत को 2030 के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित लक्ष्य को पूरा करना है, तो उसे जलवायु अनुकूलन और शमन परियोजनाओं पर 2.5 खरब डॉलर व्यय करने की आवश्यकता होगी। अतः भारत को बहुत ही व्यवस्थित तरीके से आगे बढना होगा।

द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित राजीव कुमार और सलोनी गोयल के लेख पर आधारित। 28 अगस्त, 2021

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