जलवायु-अनुकूलन-कृषि

Afeias
24 Jan 2019
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Date:24-01-19

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जलवायु परिवर्तन की व्यापकता और उसके चलते आर्थिक-सामाजिक क्षेत्र पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से पूरा विश्व परिचित है। ग्लोबल वार्मिंग पर ‘इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन  क्लाइमेट चेंज’ (आई पी सी सी) की छठी एसेसमेंट रिर्पोट में पेरिस समझौते को अधिक से अधिक अपनाने की अपील की गई है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व का सामान्य तापमान एक डिग्री सेल्शियस बढ़ गया है, जिसके और बढ़ने की संभावना है। इससे भारत जैसे विविध कृषि प्रधान देशों की स्थिति पर अधिक आंच आने की आशंका है। देश का पारिस्थितिकी तंत्र मानूसन पर निर्भर करता है, और यहाँ छोटे व सीमांत कृषक 85 प्रतिशत हैं। ऐसे में मौसम की अनियमिततता से जीविका व जीवन पर संकट बना रहता है। 2017-18 के आर्थिक सर्वेक्षण से पता चलता है कि इस बीच कृषि में 15 प्रतिशत से 18 प्रतिशत की हानि हुई है, जिसके बढ़कर 20 – 25 प्रतिशत होने का अनुमान है।

  • जलवायु-परिवर्तन से बढ़ती हानि को बचाने के लिए कृषि में जलवायु के अनुसार परिवर्तन किया जाना चाहिए। इसमें सूक्ष्म और मैक्रो, दोनों ही स्तर पर परिवर्तन करने होंगे।

माइक्रो स्तर पर, पुराने समय से चली आ रही मौसम संबंधी किसानों की मान्यताओं को बदलकर जलवायु का सही अनुमान लगाने वाली तकनीकों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।। कृषि आधारित प्रबंधन को सुदृढ़ करने हतु फसलों में अंतर और कई फसल, फसल-चक्रीकरण, गैर कृषि कर्म में संलग्नता, बीमा कवर, सोलर पंप का प्रचलन बढ़ाना, ड्रिप सिंचाई और छिड़काव आदि तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।

कृषकों की सहायता के लिए चलाई जाने वाली अनेक योजनाओं के प्रति उनमें जागरुकता लाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए कृषि विज्ञान केन्द्र जैसी जमीनी स्तर की अन्य संस्थाओं का योगदान सराहनीय होगा।

  • मैक्रो स्तर या व्यापक स्तर पर सबसे पहले वर्तमान विकास ढांचे में जलवायु अनुकूलन को मुख्यधारा से जोड़ना जरूरी है। सरकारी स्तर पर तो जलवायु परिवर्तन से हाने वाले नुकसान की आशंका से जुड़े अनेक कार्यक्रम तैयार हैं, परन्तु इनमें अनुकूलन योजना एवं संसाधन संरक्षण के लिए अपनाए जाने वाले प्रयासों का अभाव है। अतः नीतियों में एकजुटता लाए जाने की जरूरत है।

प्रमुख व्यवधान –

सिंचाई क्षमता का विकास, उपग्रह आधारित कृषि-खतरा-प्रबंधन, कृषि में सप्ताह के लिए सूक्ष्म स्तरीय प्रयास, रियल टाइम डाटा की उपलब्धता एवं हितधारकों की क्षमता में बढ़ोत्तरी आदि ऐसे कुछ कदम हैं, जिन्हें कृषि में लचीलेपन के लिए उठाए जाने की जरूरत है।

प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना, फसल बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, परंपरागत कृषि विकास योजना तथा राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) आदि कुछ ऐसे प्रयास हैं, जिन्हें कृषकों की सहायता की दृष्टि से सामने लाया गया है।

नेशनल इनोवेशन ऑन  क्लाइमेट रेसीलिएंट एग्रीकल्चर, राष्ट्रीय धारणीय कृषि मिशन (एन एम एस ए) नेशनल एडप्टेशन फंड एवं स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज आदि कुछ ऐसी योजनाएं हैं, जो जलवायु एवं अनुकूलन हेतु चलाई गई हैं। इन योजनाओं को ग्राम विकास की कुछ मुख्य योजनाओं के साथ जोड़कर बेहतर परिणाम पाए जा सकते हैं।

इस दिशा में स्टेट एक्शन प्लान या एस ए पी सी सी बहुत महत्वपूर्ण है। इसका विकास इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि इससे जलवायु से जन्मे क्षेत्रीय प्रभावों का मूल्यांकन किया जा सके। इस क्षेत्र में विशेषज्ञों की भूमिका भी बढ़ाई जानी चाहिए।

द हिन्दूमें प्रकाशित नवीन पी. सिंह एवं भावना आनंद के लेख पर आधारित। 15 दिसम्बर, 2018

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