स्मार्ट शहरों के लिए जन भागीदारी आवश्यक है

Afeias
10 Sep 2018
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Date:10-09-18

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भारतीय नगर और कस्बे जनता से भरते जा रहे हैं। साथ ही प्रदूषण और सड़क दुर्घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। अप्रेल, 2018 में बोस्टन कंसलटिंग ग्रुप द्वारा किए गए एक अध्ययन में बताया गया है कि किस प्रकार भारत के मेट्रो शहरों में ट्रेफिक जाम के कारण 22 अरब डॉलर सालाना का नुकसान होता है।

भारत के नगर और कस्बे ही उसकी प्रगति के आधार हैं। इनका सुचारू प्रबंधन अति-आवश्यक है। यही सोचकर भारत सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन की शुरूआत की है। इसका उद्देश्य तकनीक के सदुपयोग से आर्थिक प्रगति और लोगों के जीवन-स्तर को सुधारना है।

जहाँ तकनीक के प्रयोग की बात आती है, तो वह आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के बिना पूरी नहीं होती। नीति आयोग ने 2018 में ‘नेशनल स्ट्रेटजी फॉर आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस’ नामक अपने दस्तावेज में स्मार्ट सिटी और स्मार्ट मोबिलिटी के लिए आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को नितांत आवश्यक बताया है। तीसरे नंबर पर जीरो-उत्सर्जन वाहनों की जरूरतों पर बल दिया गया है।

ए आई, इंटरनेट ऑफ थिंग्स और ब्लॉक चेन ऐसे रूपांतरकारी तकनीकें हैं, जिनका लाभ उठाकर हम अपनी बहुत सी समस्याओं का हल ढूंढ सकते हैं। परन्तु इन तीनों का प्रयोग एक निश्चित ढांचे की मांग करता है, जिसके लिए तीन कारक आवश्यक हैं : आर्थिक अवसर, सामाजिक और सम्मिलित प्रगति एवं विश्व पटल पर भारत को तकनीक हब के रूप में स्थापित करना।

इस ढांचे के निर्माण के लिए नीतियों के निर्माण और कार्यान्वयन में जन-भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऊपरी स्तर के बजाय, निचले स्तर से किया गया काम अधिक परिवर्तनकारी सिद्ध होता है। ऐसी ही धारणा को लेकर हाल में ही नीति आयोग ने मूवहैक नामक हैकाथन का आयोजन किया था, जिसमें गतिशीलता और परिवहन की समस्या से जूझ रहे भारत को रास्ता दिखाने के लिए पूरे विश्व से प्रोटोटाइप और विचारों को आमंत्रित किया गया था। इसमें नगरों में लोगों की गतिशीलता, किराए-भाड़े का प्रबंधन, परिवहन, सड़क-सुरक्षा आदि को समस्या के रूप में सामने रखकर इसको दूर करने के उपाय मांगे गए थे।

भारत के लिए इन समस्याओं से निपटने के लिए तकनीक से लैस जनसंख्या का बहुत बड़ा भाग है, जो भारत सरकार को प्रगतिशील और तकनीक सम्पन्न नीतियां बनाने में संपूर्ण सहायता दे सकता है।

आज हम वैश्विक चुनौतियों के युग में जी रहे हैं। अपनी स्थानीय समस्याओं के लिए जब तक हम विस्तृत और व्यापक दृष्टिकोण नहीं अपनाएंगे, तब तक हम अपने आपको एक शक्ति के रूप में स्थापित नहीं कर पाएंगे।

‘द इकॉनॉमिक टाइम्स’ में प्रकाशित अन्ना रॉय के लेख पर आधारित। 14 अगस्त, 2018

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