
वक्फ कानून में सुधार करना जरूरी है
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हाल ही में वक्फ संशोधन कानून को लेकर काफी विवाद चल रहा है। वक्फ का उद्देश्य स्कूलों, अस्पतालों, पुस्तकालयों और अन्य धर्मार्थ संस्थानों जैसे सार्वजनिक निर्माण और रखरखाव के माध्यम से मुसलमानों के कल्याण के लिए काम करना था। इतनी महत्वपूर्ण संस्था होते हुए भी यह अक्षमताओं, कुप्रबंधन और पारदर्शिता की कमी से घिरी हुई है।
कुछ बिंदु –
- प्रस्तावित एकीकृत वक्फ प्रबंधन, सशक्तिकरण, दक्षता और विकास विधेयक या सामान्यतः वक्फ संशोधन कहे जाने वाले विधेयक का उद्देश्य वक्फ में लंबे समय से चले आ रहे मुद्दों को संबोधित करना है।
- वक्फ विधेयक की एक बड़ी कमी वक्फ संपत्तियों को 1950 में तय किए गए किराए पर चलाना है।
- वक्फ संपत्तियों की अवैध बिक्री और बर्बादी के कई मामले सामने आए हैं। इससे मिलने वाले ऐसे राजस्व की भारी हानि हुई है, जिसका उपयोग सामुदायिक कल्याण के लिए किया जा सकता था।
- अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के सर्वेक्षण से पता चलता है कि वक्फ संपत्तियों की वास्तविक संख्या 8.72 लाख से अधिक है। इनकी संभावित सालाना आय 20 हजार करोड़ रुपये तक हो सकती है। लेकिन वास्तविक राजस्व केवल 200 करोड़ रुपये ही है।
- वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद् के प्रशासन में सुधार करके, विधेयक एक अधिक जवाबदेह और पारदर्शी प्रणाली बनाने का प्रयास कर रहा है।
- ये सुधार प्रशासन तक ही सीमित न रहकर यदि राजस्व बढ़ाने के महत्वपूर्ण मुद्दे को भी संबोधित करें, तो अच्छा है। इस राजस्व से मुस्लिम समुदाय का सामाजिक-आर्थिक उत्थान किया जाना चाहिए। तभी यह संशोधन कानून सार्थक कहा जा सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित हाजी सैयद सलमान चिश्ती के लेख पर आधारित। 31 मार्च, 2025