स्वतंत्र अभिव्यक्ति के पक्ष में न्यायालय का ठोस कथन

Afeias
07 May 2025
A+ A-

To Download Click Here.

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतंत्र अभिव्यक्ति के पक्ष में स्वागत योग्य निर्णय दिया है। इसका महत्व यह है कि यह ऐसे समय में आया निर्णय है, जब शक्तिशाली या प्रभावशाली लोगों की एक शिकायत पर किसी अभिव्यक्ति को आपराधिक माना जा सकता है।

कुछ बिंदु –

  • न्यायालय ने पुलिस को याद दिलाया है कि उन्हें नागरिकों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान और संरक्षण करना है।
  • न्यायमूर्ति ने कहा कि बोले गए या लिखे गए शब्दों के प्रभाव को उन लोगों के मानकों के आधार पर नहीं आंका जा सकता, जो हमेशा असुरक्षा की भावना रखते हैं, या जो आलोचना को अपनी शक्ति या पद के लिए खतरा मानते हैं।
  • न्यायालय ने इस पूरी सुनवाई में कांग्रेस सांसद प्रतापगढ़ी की तथाकथित भड़काऊ कविता का विश्लेषण किया, और पाया कि इसका किसी धर्म, जाति, भाषा आदि से कोई संबंध नहीं है। इसमें ऐसी कोई अपील नहीं है, जिससे वैमनस्य, या दुश्मनी, घृणा या दुर्भावना की भावना पैदा होने की आशंका हो।
  • न्यायालय के अनुसार कविता केवल शासकों को बताती है कि अगर अधिकारों की लड़ाई को अन्याय से रोका जाएगा, तो क्या प्रतिक्रिया होगी।
  • कुल मिलाकर, यह निर्णय पुलिस अधिकारियों के लिए एक मार्गदर्शन का काम करेगा। अक्सर देखा जाता है कि सरकार या मंत्रियों की तीखी आलोचना वाली अभिव्यक्ति पर भारतीय न्याय संहिता की धारा 196 को लागू कर दिया जाता है। इन धाराओं का उपयोग अक्सर लोगों को डराने के लिए किया जाता है। लेकिन इससे लोकतंत्र के मूल तत्वों को हानि पहुंचती ही है।

द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 31 मार्च, 2025