स्वतंत्र अभिव्यक्ति पर रोक न लगाएं

Afeias
29 Apr 2025
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मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ माना जाता है। यह स्तंभ स्वतंत्र अभिव्यक्ति से शक्ति प्राप्त करता है। हाल ही में उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने न्यायालयों को स्वतंत्र अभिव्यक्ति के प्रति सहिष्णु होने की आवश्यकता की याद दिलाई है।

कुछ बिंदु –

  • न्यायालय ने स्पष्ट कहा है कि ‘न्यायलयों को अपने आदेशों के विरूद्ध की गई कुछ टिप्पणियों के प्रति क्यों संवेदनशील होना चाहिए।’ अक्सर ऐसा देखा जाता है कि न्यायालय मामूली सी टिप्पणियों पर अवमानना का नोटिस भेज देते हैं। इस वर्ष जनवरी में इससे जुड़े 1.45 लाख मामले न्यायालयों में लंबित थे।
  • विकिपीडिया के विरूद्ध मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष न्यायालय ने स्पष्ट संदेश दिया है कि ‘लोग कुछ कहते हैं, और न्यायालयों को इसे सहन करना पड़ता है —- लेकिन हम कानून के अनुसार निर्णय लेते हैं।’
  • पीठ ने यह भी कहा है कि ‘न्यायालय गैग ऑर्डर (रोक आदेश) पारित नहीं कर सकती —-।’ पीठ का यह भी मानना है कि न्यायालय के कामों की आलोचना को रोकना ठीक नही है।
  • न्यायालय की यह सुनवाई अवमानना शक्ति के मनमाने प्रयोग के विरूद्ध एक सुरक्षा उपाय के रूप में स्थापित हो सकती है।

फिलहाल, न्यायालय में चर्चा में आया मामला मीडिया के अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के बारे में है। निश्चय ही, यह अभिव्यक्ति पर मनमानी रोक को दूर करने में सहायक सिद्ध होगा।

द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 19 मार्च 2025