वित्तीय वर्ष 2025-26 की छःमाही में असमान वृद्धि

Afeias
01 Dec 2025
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वित्तीय वर्ष 2025-26 की दूसरी तिमाही और पहली छःमाही में हुए औद्योगिक उत्पादन के आँकड़े जारी किए गए हैं। ये उपयोगी हैं, क्योंकि ये लंबी अवधि के बारे में जानकारी प्रदान करते हैं। आँकड़े पूरी तरह से बुरे नहीं हैं, लेकिन कुछ ऐसे क्षेत्र भी हैं, जिन पर ध्यान देने की जरूरत है।

कुछ बिंदु –

  • यदि अर्ध-वार्षिक आधार पर देखें, तो अप्रैल-सिंतंबर 2025 के आईआईपी या इंडैक्स ऑफ इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन के आँकड़े बताते हैं कि औद्योगिक वृद्धि कम से कम पांच वर्षों में सबसे धीमी रही है। यह केवल 3% की दर पर बढ़ी है।
  • तिमाही वृद्धि दर अपेक्षाकृत ठीक है। पहली तिमाही में 2% की तुलना में दूसरी तिमाही में वृद्धि दर 4.1% रही है।
  • इसमें भी विनिर्माण की वृद्धि दर 4.8% रही है।
  • खनन क्षेत्र में संकुचन देखने को मिलता है। भारत की ऊर्जा और खनिज सुरक्षा के लिए इस क्षेत्र को मजबूत करने की प्राथमिता होनी चाहिए।
  • विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि भी व्यापक नहीं है। यह कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित है। आईआईपी में मापे गए 23 मुख्य विनिर्माण उप क्षेत्र में से आधे से ज्यादा जुलाई-सितंबर 2025 की तिमाही में सिकुड़े हैं। चिंता की बात यह है कि श्रम प्रधान क्षेत्र; जैसे- परिधान, चमड़ा उत्पाद, रबर उत्पाद और प्लास्टिक सितंबर में कम पर रहे हैं। जबकि लकड़ी के उत्पाद, खनिज उत्पाद, मूल धातुएं और गढे हुए धातु उत्पाद में बढ़त दर्ज हुई है। इनमें से कई अधिक पूँजी गहन हैं।

ऐसी प्रवृत्ति से रोजगार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। दूसरे, उपभोक्ता गैर-टिकाऊ वस्तु क्षेत्र में पिछली छह तिमाहियों में संकुचन हुआ है। इनमें से कुछ आवश्यक वस्तुएं भी हैं। ऐसी सुस्त मांग से निपटने के लिए रोजगार सृजन और आय में वृद्धि ही एकमात्र समाधान हैं।

‘द हिंदू’ में प्रकाशित संपादकीय पर आधारित। 30 अक्टूबर, 2025