भारतीय कृषक की आय में वृद्धि कैसे हो?

Afeias
06 Sep 2016
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CC 06-Sep-16Date: 06-09-16

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पिछले दो वर्षों के सूखे के बाद इस वर्ष अच्छे मानसून के कारण 250 लाख टन अनाज अधिक होने की उम्मीद है। अन्न के पर्याप्त उत्पादन के बावजूद खेती से होने वाली आय के अधिक बढ़ने की उम्मीद नहीं है। इसके पीछे कुछ कारण हैं, जिन पर सरकार को अधिक काम करने की आवश्यकता है।

  • भारतीय कृषि का मुख्य आधार अनाज-उत्पादन है। कुल उपजाऊ भूमि के आधे से अधिक भाग पर अनाज ही उपजाया जाता है। 60 प्रतिशत सिंचित भूमि में से मात्र 15-30 प्रतिशत पर दालें एवं तिलहन की खेती होती है। ये फसलें कमजोर मानसून से बहुत अधिक प्रभावित होती हैं। चूंकि प्रोटीन एवं वसा की मांग बढ़ रही है, इसलिए गत वर्ष मानसून के कमजोर होने पर बड़ी मात्रा में दालों का आयात किया गया।
  • विश्व में दालों का सबसे बड़ा उपभेक्ता भारत ही है। अगर भारत में खराब मानसून के कारण फसल ठीक नहीं हो पाती, तो विश्व-बाजार में इसके भाव तुरंत बढ़ जाते हैं। तिलहन के क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय बाजार ने संगठित होकर तेल के दाम काफी कम रखे, इतने कम कि भारतीय किसानों को नुकसान होने लगा। उन्हें नुकसान से बचाने के लिए सरकार को आयात दर में वृद्धि करनी पड़ी। इस वर्ष दालों एवं तिलहन के अच्छे उत्पादन से आयात एवं दालों की कीमतों में कमी आने की उम्मीद है।
  • दूध, फल एवं सब्जी जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के प्रबंधन में बहुत कमी है। 16 करोड़ टन दूध का केवल 40 प्रतिशत भाग ही बेचने के काम आता है। बाकी की खपत गांवों में ही करनी पड़ती है। पर्याप्त सड़कों के न होने, डेयरी उद्योग से जुड़े ग्रामीणों के पास दूध की कीमत को लेकर सही सूचना के न होने, दूध निकालने की एवं उसे प्रसंस्कृत-संरक्षित करने की सही तकनीक न होने से यह व्यवसाय अधिक आय नहीं दे पाता है।
  • यद्यपि सहकारी समतियां अपनी आवश्यकता से अधिक दूध खरीदकर कृषकों की मदद कर रही हैं, फिर भी गांवों के बुनियादी ढांचे एवं कीमतों में वृद्धि के बावजूद कृषकों की आय में बहुत कम वृद्धि हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में दूध की कीमतों का घटना भी इसका एक कारण है।
  • इसी प्रकार सब्जियों के पर्याप्त वितरण सुविधा की कमी से महाराष्ट्र में प्याज की बंपर पैदावार के चलते किसानों को बहुत नुकसान हुआ। शोधकर्ताओं का मानना है कि तकनीक में विकास से फसल-चक्र की अवधि घटने के साथ ही पैदावार में वृद्धि हुई है। अब किसान एक वर्ष में अधिक फसलें उगा सकते हैं।
  • पैदावार की दृष्टि से किसान के पास कमोवेश कोई कमी नहीं है। पिछले दो वर्षों से लगातार कम उपज के बाद भी कीमतों में वृद्धि नहीं हुई। इसका श्रेय न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं जमाखोरों पर शिकंजा कसने को दिया गया। परंतु इसका मूल कारण पर्याप्त अनाज का होना था।
  • कृषि आय के न बढ़ने के कुछ मुख्य कारण हैं। नीति-निर्धारकों के लिए निम्न कदम शायद चुनौतीपूर्ण हों और कार्यान्वित होने में समय लें, पर कारगर सिद्ध हो सकते हैं।
  1. खाद्य प्रसंस्करण में सुधार एवं विकास कर निर्यात को बढ़ाया जाए। हाल ही में प्याज के अधिक उत्पादन होने पर कृषि मंत्री ने किसानों को निर्यात की सलाह दी थी। पर कितने किसान समय पर निर्यात करने में सक्षम हैं?
  2. प्राकृतिक सांसाधनों की भरमार के बावजूद भारतीय कृषक आज अंतरराष्ट्रीय स्पर्धा में बहुत पीछे हैं। इसका कारण उत्पादकता में कमी से तो है ही, साथ ही हमारी मुद्रा का उठना-गिरना भी रहा है, जो कृषि व्यवसाय के लिए लाभप्रद सिद्ध नहीं हो रही है। उक्रेन, ब्राजील एवं रूस में मुद्रा की गिरावट से कृषक निश्चित रूप से लाभान्वित हुए हैं।
  3. नई तकनीकों के विकास का सीधा संबंध कृषकों की संख्या में कमी से है। हमारी 49 प्रतिशत के करीब जनसंख्या कृषि व्यवसाय से जुड़ी हुई है, जबकि अमेरिका में केवल 2 प्रतिशत लोग ही संपूर्ण देश के लिए पर्याप्त अन्न उत्पादन एवं उसका निर्यात भी कर लेते हैं। कृषि-आय को दुगुना तभी किया जा सकेगा, जब इस व्यवसाय में लगे लोगों की संख्या कम हो जाए।

चुनौती इस बात की होगी कि कृषि व्यवसाय के विकल्प के रूप में ग्रामीण जनसंख्या के लिए सरकार क्या लेकर आती है।

इंडियन एक्सप्रेसमें नीलकांत मिश्रा के लेख पर आधारित

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