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सुरक्षा परिषद के कार्यकाल का उपयोग करे भारत
Date:15-02-21 To Download Click Here.
भारत भी सदभाव के एक आदर्श संसार के बारे में काल्पनिक दावों के भ्रम में नहीं है, और न ही वह वैश्विक भू-राजनीति में कायर है। समकालीन भारत अधिक आत्मविश्वासी है, दृढ़ है। अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति के लिए वह भले ही भौतिक भटकाव, आर्थिक तंगी और घरेलू सर्वसम्मति के अभाव से जूझ रहा है, फिर भी वह हाशिए पर संतुष्ट होने के बजाय मंच के केंद्र पर आने को इच्छुक है।
ऐसे में भारत को चाहिए कि वह सुरक्षा परिषद के स्वरूप और भू राजनीतिक सीमाओं तथा इसकी ऊर्जाओं को स्पष्ट रूप से पहचाने जाने वाले एजेंडे पर ध्यान केंद्रित करे। इसी में भारत का हित है।
चीन का मुद्दा –
सुरक्षा परिषद् में भारत का यह कार्यकाल ऐसे समय में है, जब चीन से सैन्य-तनाव लगातार बढ़ रहा है। सुरक्षा परिषद् की बैठकों में इसकी झलक भी मिलने लगी है। चीन ने 2022 में आतंक विरोधी समिति की अध्यक्षता के लिए भारत के नाम का विरोध किया है। अगर बाइडन प्रशासन चीन की आक्रमकता को रोकने के लिए कोई प्रयास करता है, तो भारत को राहत मिल सकती है।
पश्चिम से बढ़ती भारत की नजदीकी का प्रभाव रूस से उसके संबंधों पर पड़ सकता है। कई मामलों में रूस, चीन पर निर्भर भी करता है। भारत का चुपचाप बैठना भी कोई हल नहीं है। चीन के खिलाफ अगर उसे सहयोग मिल सकता है, तो वह सुरक्षा परिषद् के मंच से ही मिलेगा।
आतंक पर निशाना –
सुरक्षा परिषद् में भारत के लिए आतंक एक मुख्य मुद्दा है। हमारे विदेश मंत्री का सुरक्षा परिषद् की मंत्रिस्तरीय बैठक में दिया गया वक्तव्य, संकल्प 1373 और आतंकवादरोधी समिति का गठन होना, इस बात के प्रमाण हैं।
हाल ही में भारत ने तालीबान सैन्कशन्स समिति की अध्यक्षता स्वीकार की है। इसके माध्यम से भारत तालिबान के साथ चर्चा और अफगानिस्तान में तेजी से होते विकास से जुड़ सकेगा।
आतंकवाद का मुद्दा देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति में दशकों से एक प्रमुख विषय रहा है। भारत को कूटनीतिक और राजनीतिक बारीकियों के साथ आतंकवाद के प्रति अपनी नीति तैयार करनी चाहिए। अगर इस पहल में भारत विश्व पटल पर अपनी छाप छोड़ना चाहता है, तो उसे बड़ी स्पष्टता और बौद्धिक सामंजस्य के साथ आगे बढ़ना होगा।
अन्य मामलों के लिए फोरम का उपयोग –
जलवायु परिवर्तन और परमाणु अप्रसार जैसे मुद्दों पर भारत एक जैसी सोच वाले देशों से कुछ संधियां कर सकता है, और इन मुद्दों को दशक की प्राथमिकता बना सकता है।
इसके अलावा भी भारत सुरक्षा परिषद् के कार्यकाल का उपयोग अन्य मंचों से जुड़ने और अपने राष्ट्रीय हितों को साधने में कर सकता है।
इस समय हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र की रणनीति सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में भारत की केंद्रीय भूमिका को देखते हुए, रणनीतिक पहल में उसकी भागीदारी बहुत मायने रखती है। वह सुरक्षा परिषद् के माध्यम से इस मामले के लिए रूस को कटघरे में खड़ा कर सकता है।
सुधारों से परे भी सोचे भारत –
सुरक्षा परिषद् में जल्द ही किसी नए सदस्य को स्वीकार करने की संभावना नहीं है। अतः भारत को अपनी ऊर्जा पर ध्यान केंद्रित करते हुए यह देखना चाहिए कि इस छोटी अवधि के दौरान वह अपने राष्ट्रीय हितों को कैसे आगे बढ़ा सकता है।
‘द हिंदू’ में प्रकाशित हैप्पीमन जैकब के लेख पर आधारित। 27 जनवरी, 2021