आर्कटिक की रक्षा की पहल करे भारत

Afeias
16 Feb 2021
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Date:16-02-21

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पृथ्वी की जलवायु की स्थिरता के लिए आर्कटिक का बहुत महत्व है। इसकी समुद्री बर्फ वैश्विक जलवायु को संयत रखती है। जलवायु में हो रहे परिवर्तनों के प्रति यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील रहा है। परिणामतः वैश्विक औसत वार्मिंग की तुलना में आर्कटिक तेजी से गर्म हो रहा है , और 1970 के दशक के अंत से इसकी बर्फ भी तेजी से कम हुई है।

आर्कटिक के गर्म होने के चलते ग्रीनलैण्ड की बर्फ भी तेजी से पिघल रही है। हाल ही के अध्ययनों से पता चलता है कि ग्रीनलैण्ड की बर्फ 1990 के दशक की तुलना में आज , औसतन सात गुना अधिक तेजी से पिघल रही है। आर्कटिक में होते इन परिवर्तनों से समुद्री जल स्तर का बढ़ना , समुद्री पारिस्थिकी का बिगड़ना और मानसून जैसे मौसमी पैटर्न बदल रहे हैं।

भारत की स्थिति (प्रभाव) –

  • आर्कटिक परिषद् में भारत फिलहाल आब्जर्वर की भूमिका में है। हाल ही में भारत ने आर्कटिक नीति संबंधी मसौदा जारी किया है।
  • इस मसौदे के अनुसार भारत जलवायु संबंधी शोध , पर्यावरणीय निगरानी, समुद्री सहयोग और ऊर्जा सुरक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता है। इसके लिए वह हाइड्रोकार्बन की खोज एवं अन्य क्षेत्रों में भारतीय कंपनियों द्वारा निवेश को प्रोत्साहित करना चाहता है।

यह विरोधाभासी है, क्योंकि एक ओर तो भारत आर्कटिक में होने वाले परिवर्तनों से अपने देश के लिए चिंतित है, और दूसरी ओर वही दोहन और शोध जैसे प्रस्ताव ला रहा है।

  • हालांकि भारत सीधे-सीधे आर्कटिक क्षेत्र का हिस्सा नहीं हैं , परंतु आर्कटिक में आने वाले बदलावों के चलते जल सुरक्षा और धारणीयता , मौसम की स्थिति और मानसून पैटर्न , तटों के क्षरण और ग्लेशियर के पिघलन से, आर्थिक सुरक्षा एवं राष्ट्रीय विकास के अन्य पहलु से प्रभावित होंगे।
  • भारत की खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण जीवन क्षेत्रों की बेहतरी के लिहाज से मानसून का ठीक होना जरूरी है।
  • आर्कटिक मसौदे के अंत में इसे मानव जाति की सार्वजनिक विरासत बताते हुए मानव गतिविधियों को धारणीय , उत्तरदायी और पारदर्शी बनाने पर जोर दिया गया है।

आर्कटिक के दोहन के लिए मुख्यतः धनी देश जिम्मेदार हैं। वहाँ से तेल और गैस का निरंतर दोहन करने के अलावा ये देश इस क्षेत्र का इस्तेमाल आवाजाही के लिए करना चाहते हैं। भारत को इसके विरूद्ध आवाज उठानी चाहिए। आब्जर्वर की भूमिका को स्वीकार करके भारत ने पहले ही एक गलती कर दी है। इससे परिषद् के देशों को खुली छूट मिल गई है।

ज्ञातव्य हो कि भारत ने आर्कटिक क्षेत्र में ‘हिमाद्री’ नामक अपना अन्वेषण केंद्र बना रखा है।

अब भारत को चाहिए कि वह अंतरराष्ट्रीय मंच पर आर्कटिक की रक्षा के लिए आवाज उठाए। अंटार्कटिक की तर्ज पर आर्कटिक को बचाने के लिए भी कोई तंत्र तैयार करवाए , जिससे इस क्षेत्र के पवित्र वातावरण को बचाकर पूरी पृथ्वी की रक्षा में योगदान दिया जा सके।

‘द टाइम्स ऑफ इंडिया’ में प्रकाशित चंद्र भूषण के लेख पर आधारित। 28 जनवरी, 2021

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