भारत की हिंद-प्रशांत नीति

Afeias
25 Nov 2020
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Date:25-11-20

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वर्तमान के भू-राजनीतिक विश्व में ‘हिंद प्रशांत’ क्षेत्र का तेजी से महत्व बढ़ता जा रहा है। भारत के आसियान मित्रों का इससे संबंध है, और इसने क्वाड साझेदारी को आगे बढ़ाने का रास्ता तय किया है। हमारे विदेश मंत्रालय ने इस क्षेत्र के महत्व को देखते हुए अलग से इंडो-पेसिफिक विभाग की स्थापना की है। ओशिनिया विभाग भी इसी भूक्षेत्र को आधारित कर बनाया गया है।

भारत के लिए हिंद प्रशांत वह विशाल समुद्री क्षेत्र है, जो उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तटों तक फैला हुआ है। भारत की इस परिभाषा को अधिकांश देशों ने स्वीकार भी किया है।

कुछ बिंदु –

  • भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में सिंगापुर के एक भाषण में सागर (एसएजीआर) सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया था। प्रधानमंत्री ने इसे “सिक्योरिटी एण्ड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रिजन’ के संदर्भ में प्रस्तुत किया था। यह आकांक्षा इस क्षेत्र में ‘एंड-टू-एंड सप्लाई चेन’ हासिल करने पर निर्भर करती है। इस विचार में किसी एक देश पर निर्भरता न होकर सभी लाभार्थियों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करना है।
  • भारत के लिए हिंद-प्रशांत का विचार ऐसा है, जिसमें नियमों का पालन, नेवीगेशन की स्वतंत्रता, खुले संपर्क और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए सम्मान हो।
  • भारत ने अपने इस सिद्धांत पर विषयगत और भौगोलिक पहल के माध्यम से काम भी किया है। इस क्षेत्र में सुरक्षा प्रदाता बनकर सुरक्षा और नेविगेशन की स्वतंत्रता को मजबूत करने की मांग की है। उपकरण, प्रशिक्षण और अभ्यास में पूरे क्षेत्र के देशों के साथ भागीदारी करते हुए मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए हैं।
  • मानवीय सहायता और आपदा राहत के क्षेत्र में भारत ने न केवल मजबूत क्षमताओं का निर्माण किया है, बल्कि खुद को एक विश्वसनीय मित्र के रूप में भी स्थापित किया है। 2019 में भारत और यू.के. द्वारा कोलीशन फॉर डिजास्टर रेसिलियेन्ट इंफ्रास्ट्रकचर (सीडीआरआई) गठबंधन किया गया था। कोविड-19 के शुरूआत में भी भारत ने रैपिड रेस्पोन्स मेडिकल टीम्स, खाद्यान्न, कोविड सामग्री आदि के माध्यम से इस क्षेत्र के देशों को बहुत सहयोग किया है।
  • हिंद-प्रशांत के भूगोल को संभवतः अर्ध-वृत के रूप में वर्णित किया जा सकता है। सबसे नजदीकी अर्ध- वृत्त में हमारे निकटतक पड़ोसी देश हैं। ये सभी दक्षिण एशियाई देश हैं, जिन्होंने भारत के साथ हिंद महासागर के जल के अलावा सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत की साझेदारी भी की है। बाहरी वृत्त पश्चिम और दक्षिणपूर्वी एशिया में खाड़ी देशों और आसियान देशों को समाहित करता है। एक अर्थ में यह भी हमारे प्राचीन समुद्री संबंधों की फिर से स्थापना है। इसमें ऊर्जा और निवेश प्रवाह, श्रम और कौशल, व्यापार और व्यवसाय आदि भी जुड़ गए हैं।
  • आगे बढ़ते हुए, भारत ने उन देशों के साथ साझेदारी की है, जिनके अवसर, सरोकार और हित हमारे साथ हैं। इसमें पश्चिमी हिंद महासागर के द्वीप समूह तथा अफ्रीका के पूर्व तटीय देश हैं। क्वाड, भारत जापान-अमेरिका, भारत-फ्रांस-आस्ट्रेलिया और भारत-इंडोनेशिया-आस्ट्रेलिया जैसे त्रिकोण और चतुर्भुज बने हुए हैं।
  • इन सब सहयोग संबंधों के बीच आसियान देशों की साझेदारी केंद्रीय भूमिका रखती है। आसियन एक ऐसे मंच के रूप में उभरा है, जहां विभिन्न हित आपस में मिल-बैठकर बातचीत कर सकते हैं, और मतभेदों को तर्कसंगत बना सकते हैं।

यह तथ्य है कि 21वी सदी की राजनीतिक और सुरक्षा चिंताओं, प्रतिस्पर्धा, विकास, प्रौद्योगिकी और नवाचार का केंद्र हिंद-प्रशांत क्षेत्र ही होने वाला है। यही कारण है कि जर्मनी जैसे देश ने, जिसके आर्थिक हित इस क्षेत्र से जुड़े हैं, क्षेत्र के लिए अभी से रणनीति तैयार कर रखी है। फ्रांस और नीदरलैंड भी इसी रास्ते पर हैं। भारत की नीतियां भी कुछ इसी प्रकार की हैं।

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित हर्षवर्धन श्रींगला के लेख पर आधारित। 7 नवम्बर, 2020

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